Sunday 28 September 2014

कारपोरेट घरानों के कब्जे के चलते जनसाधारण की पहुंच से बाहर हो गए हैं चुनाव

रपट: दसवां किषन पटनायक स्मृति व्याख्यान

कारपोरेट घरानों के कब्जे के चलते जनसाधारण की पहुंच से बाहर हो गए हैं चुनाव

देष की संसद के 543 सदस्यों में से 400 से ज्यादा करोड़पति - पन्नालाल सुराणा

भारत की चुनाव प्रणाली की दो प्रमुख खामियां हैं। पहली, इस पर धनाढ्य लोगों का कब्जा  हो गया है। संसद और एसेंबलियों में वही जीत हासलि कर सकता हे जिसके पास अकूत धनबल है। धनबल पर होने वाले चुनावों में गरीबों, मेहनतकषों, बेरोजगारों और वंचित तबकों के हित की बात करने वाले सदस्य संसद या विधानसभाओं में पहुंच ही नहीं पाते। इस समय  भारत की संसद में 543 सदस्यों में से 400 से ज्यादा करोड़पति हैं। यह संसद असली भारत ाक प्रतिनिधित्व नहीं करती; अलबत्ता कारपोरेट हितों का प्रतिनिधित्व भले करे। दूसरी खामी है कि किसी पार्टी को 31 प्रतिशत वोट मिलने पर बहुमत मिल जाता है जबकि 10 प्रतिशत वोट पाने वाली पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पाती। इन दो प्रमुख खामियों को दूर करने के लिए चुनाव सुधार जरूरी है। ये विचार समाजवादी विचारक और पत्रकार पन्नालाल सुराणा ने व्यक्त किए। वे समाजवादी चिंतक किशन पटनायक की पुण्यतिथि पर गांधी शांति प्रतिष्ठान दिल्ली में आयोजित दसवें किषन पटनायक स्मृति व्याख्यान में बोल रहे थे।
उन्होंने सुझाव दिया कि सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाले उम्मीदवार की जीत की प्रचलित पद्धति की जगह आनुपातिक प्रतिनिधित्व (प्रपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन) की पद्धति अपनाई जानी चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा पार्टियों का प्रतिनिधित्व विधायिका में हो सके । उन्होंने सुझाव रखा कि चुनाव प्रचार अभियान पर राजनीतिक पार्टियों के खर्च का हिसाब भी चुनाव आयोग को दिया जाना चाहिए। इससे देष की जनता को यह पता चलेगा कि कारपोरेट घरानों ने किस पार्टी को कितना धन दिया है और पार्टियों ने अपने प्रचार के लिए अनुबंधित कंपनियों पर कितना खर्च किया है। उन्होंने इस दिशा में ठोस कानून बनाने की मांग की। सूचना का अधिकार कानून राजनीतिक पार्टियों के जमा-खर्च पर भी लागू हो। चुनाव लड़ने के लिए जमानत राषि विधानसभा के लिए 1000 रुपया और लोकसभा के लिए  2000 रुपया होनी चाहिए।
साहित्य वार्ता की ओर से आयोजित स्मृति व्याख्यान का विषय चुनाव सुधार: जनसाधरण की भागीदारी का सवालथा। कार्यक्रम की अध्यक्षता पीयूसीएल के उपाध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता रविकिरण जैन ने की। उन्होंने कहा कि चुनाव लोकतंत्र की कसौटी होते हैं। विकेंद्रीकरण के बगैर लोकतंत्र एक निरर्थक प्रणाली भर रह जाता है और उसके तहत होने वाले चुनाव भी। भारत में केंद्रीकृत व्यवस्था उत्तरोत्तर मजबूत होती गई है। यह भारत के संविधान के विरुद्ध है। जब तक विकेंद्रीकरण के अवधारणा के तहत स्थानीय निकायों - पंचायत व नगरनिगम - की निर्णायक भूमिका सुनिष्चित नहीं की जाती न लोकतंत्र संभव हे न समाजवाद।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ. प्रेम सिंह ने किया। उन्होंने षुरुआत में किषन पटनायक के विचारों और संघर्ष का परिचय देते हुए कहा कि वे नवसाम्राज्यवाद के बरक्स वैकल्पिक राजनीति के सिद्धांतकार थे। इस मौके पर पत्रकार मदनलाल हिंद, अरविंद मोहन, हरिमोहन मिश्रा, अतुल कुमार, सतेंद्र यादव, राजेष मिश्रा, ‘सामयिक वार्ता के पूर्व प्रबंध संपादक महेष, शिक्षाविद् व लेखक प्रेमपाल शर्मा, मदन कष्यप, नंद किषोर, गांधी षांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेंद्र कुमार, वरिष्ठ सोशलिस्ट नेता बलवंत सिंह खेड़ा, डाॅ. सुनीलम, कामरेड बलदेव सिहाग, तारकेष्वर सिंह, जगदीष तिरोडकर, पुरुषोत्तम, बिहार के ओबरा क्षेत्र के निर्दलीय विधायक सोम प्रकाष समेत बड़ी संख्या में दिल्ली विष्वविद्यालय, जेएनयू व जामिया मिल्लिया इस्लामिया विष्वविद्यालय के छात्र, षोधार्थी व षिक्षक षामिल हुए। धन्यवाद ज्ञापन साहित्य वार्ता, दिलली, के संयोजक बलबीर ने किया।

प्रस्तुति
डाॅ. जयंत कुमार कष्यप

Socialist Party demands : Claim land under Chinese control

September 24, 2014
Press Release

Socialist Party demands : Claim land under Chinese control, Not bullet trains but safe, punctual and cheap train services, Complete ban on FDI in insurance sector, Bring finances of political parties under RTI

Socialist Party, in its three-day (19-21 Sept. 2014) national executive meet held in Udaipur has passed the resolution that the Chinese incursions into the Indian territories will continue till the 20,000 sq km land is reclaimed from the Chinese control. Socialist Party believes that the Indian visit of the Chinese premier Jin Ping and the agreements signed between the two countries portray India as the grantee and China as the grantor. This has exposed the hollowness of the patriotism of those who call themselves ‘Hindu nationalists.’ Socialist Party warned the toiling masses that the Indian ruling class lusting after consumerism is selling the invaluable resources of the country and on the other hand are begging for foreign investment.
Dr. Lohia had termed China’s invasion of Tibet as infanticide. The Prime Minister, in his talks with the Chinese premier has not even mentioned long pending issue of Tibet’s independence, which has been a long-standing demand of India.
Socialist Party, while strongly opposing the Bullet and High-speed trains has demanded that the government should make available, safe, punctual, hygienic, convenient and cheap train services, especially to the far-flung remote of India. In insurance, the money is paid by the policy holder. Hence, it is misleading to talk about foreign investment in the insurance sector. The party has demanded a complete ban on the entry of foreign companies in the insurance sector.
The present government and Prime Minister want to disband the Planning Commission and run the country’s economy solely for the corporate houses. Socialist Party believes that in a poor country like India, development and the related economic planning should be carried at the level of local bodies according to the Directive Principles of State as well as the 73rd and 74th amendments to the Constitution.  There should be a proper representation of tribals, dalits, farmers, laborers and women in it. The party believes that the deprived classes can be empowered only by establishing a decentralized system on the basis of the Four Pillar State as proposed by Dr. Lohia.
Socialist Party reiterated its demand of bringing the details of finances of political parties under the ambit of the RTI. The party will start a signature campaign for the same.
The party’s executive decided that a day’s fast will be observed by all the state units of the Socialist Party on the death anniversary of Dr. Lohia on the coming 12th October for the release of Irom Sharmila and the removal of the AFSPA.  
The meeting was presided over by Bhai Vaidya, former Home Minister, Maharashtra. Dr, Shriram Arya, president of the Socialist Party Rajasthan welcomed the office bearers and members of the executive.
Dr. Prem Singh
General Secretary/Spokesperson 

चीन के कब्जे से जमीन वापस हो और तिब्बत आजाद हो

22 सितंबर 2014
प्रैस रिलीज

चीन के कब्जे से जमीन वापस हो और तिब्बत आजाद हो
बुलेट ट्रेन नहीं सुरक्षित समयबद्ध सस्ती रेलसेवा चाहिए
बीमा क्षेत्र में बिदेशी निवेश पर पूर्ण प्रतिबंध लगे
राजनीतिक पार्टियों का जमा-खर्च सूचना अधिकार के दायरे में हो

            सोशलिस्ट पार्टी ने उदयपुर में आयोजित तीन दिवसीय (19-21 सितंबर 2014) राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पारित प्रस्ताव कहा है कि जब तक भारत की 20 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन को चीन के कब्जे से वापस नहीं लिया जाता तब तक भारतीय सीमा में चीनी सेना की घुसपैठ जारी रहेगी। चीन के अध्यक्ष जिन पिंग की भारत यात्रा और दोनों देशों के बीच होने वाले समझौतों के बारे मे सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि इससे दुनिया में भारत की छवि याचक की और चीन की छवि दाता की  बनी है। इससे खुद को हिंदू राष्ट्रवादीकहने वालों की राष्ट्रभक्ति का खोखलापन जगजाहिर हो गया है। सोशलिस्ट पार्टी ने मेहनतकश जनता को आगाह करते हुए कहा कि उपभोक्तावादी हविस का मारा भारत का शासक वर्ग एक ओर देश के बेशकीमती संसाधनों को बेचता है, दूसरी ओर विदेशी निवेश की भीख मांगता है।
            डाॅ. लोहिया ने तिब्बत पर चीन के हमले को शिशु हत्याकी संज्ञा दी थी। प्रधानमंत्री ने चीन के राष्ट्रपति के साथ अपनी बातचीत मे तिब्बत की स्वाधीनता, जो भारत की मांग रही है, का कोई जिक्र नहीं किया।
            सोशलिस्ट पार्टी ने बुलेट और हाई स्पीड टेªन चलाने का कड़ा विरोध करते हुए मांग की है कि देश में, खास कर दूरदराज पिछड़े इलाकों में, सुरक्षित, समयबद्ध, स्वच्छ, सुविधापूर्ण और सस्ती रेलसेवा उपलब्ध कराने का काम सरकार को करना चाहिए। इंश्योरंस में खुद पाॅलिसी धारक को धन देना होता है। लिहाजा, बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की बात करना भ्रामक है। पार्टी ने बीमा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के आने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
            मौजूदा सरकार और प्रधानमंत्री योजना आयोग को भंग करके सीधे कारपोरेट घरानों के लिए देश की अर्थव्यवस्था को चलाना चाहते हैं। सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि भारत जैसे गरीब देश में विकास और उसके मुताबिक आर्थिक योजना निर्माण का काम राज्य के नीति निर्देशक तत्वों व संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों के तहत स्थानीय निकायों के स्तर से शुरू होना चाहिए। उसमें आदिवासियों, दलितों, किसानों, मजदूरों, महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व होना चाहिए। पार्टी का मानना है कि डाॅ. लोहिया के चैखंभा राज की अवधारणा के आधार पर विकेंद्रित व्यवस्था कायम करके ही वंचित तबकों का सही मायने में सशक्तीकरण किया जा सकता है।
            राजनीतिक पार्टियों के जमा-खर्च के हिसाब को सूचना अधिकार के दायरे में लाने की अपनी मांग को सोशलिस्ट पार्टी ने फिर दोहराया है। पार्टी इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चलाएगी।
            कार्यकारिणी में फैसला किया गया कि इरोम शर्मिला की रिहाई और अफ्सपा को हटाने की मांग को लेकर सोशलिस्ट पार्टी की सभी राज्य इकाइयां डाॅ. लोहिया की पुण्यतिथि आगामी 12 अक्तूबर को एक दिन के उपवास का आयोजन करेंगी।
            बैठक की अध्यक्षता पार्टी के अध्यक्ष भाई वैद्य, पूर्व गृहमंत्री, महाराष्ट्र, ने की। सोशलिस्ट पार्टी राजस्थान के अध्यक्ष डाॅ. श्रीराम आर्य ने पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकारिणी सदस्यों का स्वागत किया।

डाॅ. प्रेम सिंह
महासचिव/प्रवक्ता  

Monday 22 September 2014

BJP and AAP should jointly form government to avoid horse trading


Prem Singh

After speculations of over four months the official initiative has been taken towards formation of government in Delhi. Lieutenant Governor Najeeb Jung has written to the President Pranab Mukherjee seeking his permission to give a chance to the largest party in the Legislative Assembly to form the government. The President immediately sent Lieutenant Governor’s plea to the Home Ministry. In the 70 member Legislative Assembly the current number of MLAs is 67, three MLAs of the BJP having been elected to the Lok Sabha. In the 67 member assembly, the BJP is the largest party with 29 MLAs including one legislature of its ally Akali Dal. Even in the Delhi Assembly elections, the BJP was in the first place with 32 seats. However, it did not stake claim for forming the government.
The Lieutenant Governor has said that even though the BJP has not staked its claim, it may still be invited to form the government. Delhi BJP president has promptly responded that the party will consider a proposal as and when it comes. He met the Home Minister twice in the meantime. Nitin Gadkari, Union Minister and in-charge of the party affairs in Delhi too met the Home Minister Rajnath Singh in this regard. It is reported that the central party will also seriously consider the proposal. However, one theory is that the BJP has done this exercise only to go past September 9, the date set by the court; in reality it intends to have the elections in Delhi only after the election results of the four states are out. It is also being said that some senior BJP leaders are opposed to the idea of forming a minority government. They argue that if the government is not able to achieve majority then it can have a negative effect on the image of the Prime Minister Narendra Modi. However, the state leaders can place a counter argument as to how long would they sacrifice their political interests for such an image building project? A similar problem may arise in the four states where elections are due within one or two months.
The manner in which all the actions are taking place at high levels, there is a possibility of a BJP government in Delhi in the near future. It does not need to be stated that the decision of the BJP high command and the high ups in the central government have led to the beginning of this exercise. The Lieutenant Governor could swear in the candidate of the largest party as Chief Minister and then allow him/her to prove his/her majority in the next six months. It is said that the BJP has the support of two independent MLAs as well as one MLA who has been expelled from the Aam Aadmi Party (AAP). It will need the support of two more legislators to reach the required 34 figure for the majority. The way accusations and counter-accusations of ‘horse-trading by mainly AAP and to some extent by the Congress are being heard, it will not be very hard for the BJP to muster a majority after forming the government. In fact, there is a possibility that to avoid the ramifications of the anti-defection law, a group with the required numbers from AAP might break away and join the BJP government. Or some of the Congress MLAs might give way to the formation of the government by abstaining from the house. It is true that no MLA, except Kejriwal, from any party wants fresh election. Kejriwal has hopes that his dramatic politics will again make him chief minister of Delhi.           
The bargaining power of the AAP MLAs will be much more. It was heard that the BJP tried to swing four out of the eight Congress MLAs to their side. But the Congress somehow saved itself from possible harm. Ever since Arvind Kejriwal resigned, it is being hotly discussed that the several AAP MLAs are ready to go into the BJP fold. If there was no suspicion of a break in the ranks of the AAP MLAs, the AAP leadership would not have made such a hue and cry about the BJP leadership trying to bribe them. The AAP leadership has even made an appeal to the President in this regard. Although in the recent sting operation, passed on first to the press and then to the Lieutenant Governor by AAP, the Delhi BJP vice president purportedly offered only rupees 4 crores to buy the support of AAP legislator Dinesh Mohania, it is commonly discussed and has also been stated by Kejriwal that the amount set for one MLA by the BJP is rupees 20 crores.
Obviously, there is a bid only when there is something to be sold. It is possible that the AAP leaders, who are being heard giving statements against the formation of the BJP government, might become part of the government holding important positions. One cannot have high expectations of commitment, and that too for long periods of time, from the MLAs of a party which does not believe in organization and ideology. AAP’s Pandora’s box is falling apart. Most of the apolitical AAP MLAs who got elected riding on the wave of the anti-corruption movement, will not join the Congress. Their destination can only be the BJP. In this scenario, protestations that the BJP will not be able to prove its majority do not have much strength.
AAP, which had the second position in the Delhi Vidhan Sabha elections with 28 members, formed the government with the support of the Congress. This government lasted merely for 49 days. Chief Minister Arvind Kejriwal used the Jan Lokpal Bill as an excuse to tender his resignation and requested the Lt. Governor to dissolve the Vidhan Sabha. The Congress did not withdraw its support. Actually, the intention of Krjriwal was not to work for the public of Delhi but to ‘create history’, and after doing that in Delhi he moved on to Benares.
Throughout this whole exercise, the people of Delhi, who voted for the AAP and BJP against the Congress, have simply been taken for a ride. The people of Delhi need a government, not one more election. The BJP and AAP should get together and form a stable government in Delhi to serve the people. There is no ideological or policy related obstacles in BJP and AAP coming together. Both the parties subscribe to neo-liberalism. The BJP never hides its allegiance to capitalism. In the last two decades it has scaled higher peaks on its path to corporate capitalism abandoning its earlier ranks of small traders. Kejriwal, in the meeting of the Confederation of Indian Industries (CII), clearly stated his commitment to capitalism. By now it has became clear that the socialist elements in AAP have been cornered. Now it is a group of non-ideology warriors who are destined to be the true servants of the corporate world. 
Opposition to the Congress also binds both the parties together. Both have won in the Vidhan Sabha elections by declaring their opposition to the Congress. If one looks back a little in time, it may be noticed that they were together in the India Against Corruption (IAC) and the anti-corruption movement from which AAP has emerged. The whole movement was managed under the auspices of the RSS. Kiran Bedi, a senior as well as active person of the IAC and the anti-corruption movement has already stated that there is no ideological difference between the BJP and AAP. This is why she was against the formation of AAP. The 'secular' face of AAP, Prashant Bhushan, protested against AAP forming the government with the support of the Congress and suggested that the government should be formed with the BJP support instead. The BJP and AAP are natural allies, the most authentic proof of this would be the fact that AAP supremo Arvind Kejriwal helped Narendra Modi win the election from Benares.
There is another facet of similarity between the two. Both believe in the ‘moral force’ as opposed to the Constitution and democratic institutions. This has made clear in the article titled ‘Rule by Messiahs’ by Prof. Prabhat Patnaik. Also, S. P. Shukla in his article, ‘Myopia, distortions and blind spots in the vision document of AAP’ has revealed the destructive approach of AAP leaders. It is a well known story that AAP leaders demonstrated their ‘bajrangi’ attitude by doing ‘justice’ to the foreign women on the streets at night in Malviya Nagar area of Delhi.
Given that there is no difference regarding the thinking and work-style between the two parties, it will be proper if both get together to form the government. This will mean that there will be no horse-trading, no unnecessary heavy election expenditure and no waste of precious time of government employees.

Tuesday 9 September 2014

भाजपा और आप मिल कर बनाएं दिल्ली में सरकार, बिखर रहा है आप का भानुमति का कुनबा

प्रेम सिंह
पिछले करीब चार महीने की अटकलों के बाद दिल्ली में सरकार गठन की दिशा में आधिकारिक पहल हो गई है। उपराज्यपाल नजीब जंग ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सबसे बड़े दल को सरकार बनाने का मौका देने की अनुमति मांगी है। राष्ट्रपति ने उपराज्यपाल का अनुरोध तत्काल गृहमंत्रालय को भेज दिया। विधानसभा में सबसे बड़ा दल भाजपा है। 70 सदस्यीय विधानसभा की संख्या फिलहाल 67 है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के तीन विधायक सांसद चुन लिए गए थे। अब 67 सदस्यीय विधानसभा में सहयोगी अकाली दल को मिला कर भाजपा के 29 विधायक हैं। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा 32 सीटें जीत कर पहले स्थान पर थीं। हालांकि उस समय उसने सरकार बनाने का दावा पेष नहीं किया था।
उपराज्यपाल ने कहा है कि हालांकि भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया है, उसे सरकार बनाने को आमंत्रित किया जा सकता है। दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष ने कहा है कि सरकार बनाने का प्रस्ताव आने पर उनकी पार्टी विचार करेगी। वे इस बीच दो बार गृहमंत्री से मुलाकात कर चुके हैं। दिल्ली में पार्टी मामलों के प्रभारी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस बाबत गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की है। खबर है कि केंद्रीय पार्टी भी दिल्ली में भाजपा सरकार बनाने के प्रस्ताव पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगी। हालांकि एक अटकल यह सामने आई है कि भाजपा ने 9 सितंबर को अदालत की तारीख पार करने के लिए यह कवायद की है; असल में उसका इरादा चार राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद दिल्ली में चुनाव कराने का है। यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा के कतिपय बड़े नेताओं को इसलिए अल्पमत सरकार बनाने में आपत्ति है कि बहुमत साबित न हो पाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
लेकिन जिस तरह से उच्च स्तर पर सारी कार्रवाई हो रही है, निकट भविष्य में दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने की संभावना है। कहना न होगा कि भाजपा और केंद्र सरकार के षिखर नेतृत्व ने दिल्ली में सरकार बनाने का फैसला करके यह कवायद शुरू की है। उपराज्यपाल सबसे बड़े दल के नेता को मुख्यमंत्री की शपथ दिला कर उन्हें अगले छह महीने में बहुमत सिद्ध करने को कहेंगे। भाजपा को दो निर्दलियों और आम आदमी पार्टी (आप) से निष्कासित एक विधायक का समर्थन बताया जाता है। उसे बहुमत के लिए जरूरी 34 का आंकड़ा छूने के लिए दो और विधायकों की जरूरत होगी। जिस तरह से मुख्यतः आप और कुछ हद तक कांग्रेस की ओर से विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए हैं, सरकार गठन के बाद भाजपा के लिए बहुमत जुटा लेना मुश्किल नहीं होगा। बल्कि संभावना है कि दल बदल विरोधी कानून की जद से बचने के लिए दरकार संख्या के साथ आप का एक गुट टूट कर भाजपा का समर्थन कर दे।
कांग्रेस के मुकाबले आप के विधायकों की मोलभाव की ताकत ज्यादा होगी। ऐसी खबरें आई थीं कि भाजपा ने कांग्रेस के आठ में से चार विधायकों को अपने पाले में लाने की कोशिश की थी। लेकिन कांग्रेस ने किसी तरह वह नुकसान होने से बचा लिया। अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद से ही चर्चा गरम रही है कि आप के विधायक भाजपा में जाने को तैयार बैठे हैं। विधायकों के टूटने का अंदेषा नहीं होता तो आप नेतृत्व उन्हें भाजपा द्वारा लालच देकर तोड़ने की कोशिशों का हल्ला बार-बार नहीं मचाता। इधर उन्होंने इस बाबत राष्ट्रपति से भी गुहार लगाई है। आम चर्चा है और केजरीवाल भी कहते हैं कि भाजपा ने एक विधायक की कीमत 20 करोड़ लगाई है। हालांकि ताजा स्टिंग आपरेशन में केवल 4 करोड़ की पेशकश की गई है। हो सकता है यह पेशगी हो। जाहिर हैबोली वहीं लगती है जहां बिकाऊ माल होता है। आप के जो नेता आज भाजपा के सरकार गठन के विरोध में बयान दे रहे हैं, हो सकता है कल बड़ा ओहदा लेकर सरकार में बैठे नजर आएं!एक संगठनहीन और विचारधाराहीन पार्टी के विधायकों से प्रतिबद्धता की ज्यादा उम्मीदवह भी ज्यादा दिनों तक, नहीं की जा सकती। आप का भानुमति का कुनबा बिखर रहा है। भ्रष्टाचार विरोध की लहर पर चुन कर आए आप के ज्यादातर अराजनीतिक विधायक फिलहाल कांग्रेस में तो जाएंगे नहीं। उनकी मंजिल भाजपा ही हो सकती है। ऐसे में यह कयास कि आगे चल कर भाजपा बहुमत साबित नहीं कर पाएगी, मजबूत नहीं लगता।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 28 सदस्यों के साथ दूसरे स्थान पर रही आप ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी। वह सरकार महज 49 दिन चली। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जनलोकपाल विधेयक के बहाने अपना इस्तीफा देकर उपराज्यपाल से विधानसभा को स्थगित करने का अनुरोध किया था। कांग्रेस ने समर्थन वापस नहीं लिया था। दरअसल,आप सुप्रीमो की नीयत दिल्ली की जनता का काम करने की नहीं, ‘ इतिहास’ बनाने की थी, जिसे दिल्ली में बनाकर वे बनारस निकल गए! इस सारी कवायद में भाजपा और आप को समर्थन देने वाले दिल्ली के मतदाताओं के साथ खिलवाड़ ही हुआ है।
लिहाजा, दिल्ली में भाजपा और आप को मिल कर दिल्ली की जनता की सेवा के लिए एक मजबूत और स्थायी सरकार बनानी चाहिए। भाजपा और आप के मिल कर सरकार बनाने में कोई विचारधारात्मक या नीतिगत बाधा नहीं है, क्योंकि दोनों नवउदारवादी घराने की पार्टियां हैं। आप सुप्रीमों ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की बैठक में साफ तौर पर कहा था कि वे पूंजीवाद के पक्षधर हैं। कांग्रेस विरोध भी दोनों का साझा है। दोनों ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विरोध का झंडा बुलंद करके जीत हासिल की। थोड़ा पीछे लौटें तो देख सकते हैं कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, जिससे आप निकली है, में दोनों साथ थे। वह पूरा आंदोलन आरएसएस के अनुषासन में हुआ था। आईएसी और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की वरिष्ठ और सक्रिय हस्ती किरन बेदी कह चुकी हैं कि भाजपा और आप की विचारधारा में कोई अंतर नहीं है। इसीलिए वे आप के गठन के खिलाफ थीं। आप के ‘सेकुलर’ चेहरे प्रषांत भूषण ने कांग्रेस के समर्थन से आप की सरकार बनाने का विरोध करते हुए कहा था कि वह भाजपा के समर्थन से बनाई जानी चाहिए। आप और भाजपा-आरएसएस के संबंध का सबसे पुख्ता आधार आप सुप्रीमो केजरीवाल का बनारस से नरेंद्र मोदी को चुनाव जितवाना है।
दोनों में परस्परता का एक और आयाम है। दोनों भारतीय संविधान और संस्थाओं के बजाय ‘नैतिक ताकत’ में विश्वासस करती हैं। प्रभात पटनायक ने अपने लेख ‘रूल बाई मसीहाज’ में यह स्पष्ट किया है। एसपी शुक्ला ने भी अपने लेख ‘मायोपिया, डिसटोर्संस एंड  ब्लाइंड स्पोट्स इन दि विजन डाक्युमेंट ऑफ आप’ में आप के संविधान पर आधारित संस्थाओं के प्रति नकारात्मक सोच का खुलासा किया है। यह सर्वविदित है कि सरकार गठन के बाद आप के नेताओं ने नई दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में विदेशी महिलाओं का रात के वक्त सरेराह न्याय’ करके अपना ‘बजरंगी’ तेवर दिखा दिया था।
जब दोनों पार्टियों की सोच और कार्यशैली में अंतर नहीं है तो उचित यही होगा कि दोनों पार्टियां मिल कर सरकार बनाएं।इससे होर्स ट्रेडिंग नहीं होगी, दोबारा भारी-भरकम चुनाव खर्च नहीं होगा, सरकारी कर्मचारियों का कीमती समय बरबाद नहीं होगा और कांग्रेस के विरुद्ध उन्हें समर्थन देने वाले दिल्ली के मतदाताओं को राहत मिलेगी।

About The Author

डॉ. प्रेम सिंह, लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक और सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव हैं।