दिनांक: 16 जुलाई 2013
प्रैस रिलीज
कांग्रेस ने खुद माना कि वह भाजपा की बी टीम है
भाजपा के सांप्रदायिक फासीवादी नेता नरेंद्र मोदी के बयान पर यह कह कर कि ‘नंगी सांप्रदायिकता से धर्मनिरपेक्षता का बुर्का बेहतर है’, कांग्रेस ने खुद ही अपने को भाजपा की बी टीम स्वीकार कर लिया है। कांग्रेस का बयान बताता है कि धर्मनिरपेक्षता उसके लिए एक आवरण है। यानी भाजपा खुले तौर पर सांप्रदायिकता करती है और कांग्रेस उस पर धर्मनिरपेक्षता का परदा डाले रखती है। इस स्वीकारोक्ति का सीधा अर्थ है कि कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक मूल्य में सच्ची आस्था नहीं है।
नेहरूयुगीन कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टी थी। लेकिन उनके बाद की कांग्रेस ने सत्ता के लिए कई बार सांप्रदायिक कार्ड खेला है। उसीका नतीजा है कि आज कांग्रेस के नेता खुद कह रहे हैं कि धर्मनिरपेक्षता कांग्रेस के लिए महज आवरण है। वे इस आवरण के चलते कांग्रेस को भाजपा से बेहतर बता रहे हैं।
आरएसएस एक सांप्रदायिक संगठन है और भाजपा उसका राजनीतिक मंच है। भाजपा की विचारधारा और नेता आरएसएस से आते हैं। लिहाजा, सांप्रदायिकता भाजपा की राजनीति का मूल आधार है। नरेंद्र मोदी ने ‘धर्मनिरपेक्षता का बुर्का’ कह कर धर्मनिरपेक्ष संविधान के प्रति गहरी हिकारत व्यक्त की है। साथ ही अल्पसंख्यक मुसलमानों के प्रति भी, क्योंकि बुर्का मुस्लिम महिलाओं का लिबास है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता यषवंत सिन्हा ने सलाह दी है कि सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की बहस चला कर भाजपा कांग्रेस के जाल में न फंसे। लेकिन उल्टे कांग्रेस भाजपा के जाल में फंसी नजर आती है। वह खुद कह रही है कि कांग्रेस पोषीदा तौर पर सांप्रदायिक करती है जो भाजपा की खुली सांप्रदायिकता से बेहतर है।
धर्मनिरपेक्षता संविधान का एक मूलभूत मूल्य है। देष की प्रत्येक राजनीतिक पार्टी की उसमें संपूर्ण निष्ठा अनिवार्य है। लेकिन देष की दो सबसे बड़ी पार्टियों की निष्ठा धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक मूल्य में नहीं है। यह समाज और भारतीय राष्ट्र के लिए गंभीर समस्या है। सोषलिस्ट पार्टी की देष के नागरिकों, सुप्रीम कोर्ट और निर्वाचन आयोग से अपील है कि वे इस गंभीर समस्या का संज्ञान लेकर राजनीतिक पार्टियों के लिए संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्य का पालन सुनिष्चित करें।
डाॅ. प्रेम सिंह
महासचिव व प्रवक्ता
भाजपा के सांप्रदायिक फासीवादी नेता नरेंद्र मोदी के बयान पर यह कह कर कि ‘नंगी सांप्रदायिकता से धर्मनिरपेक्षता का बुर्का बेहतर है’, कांग्रेस ने खुद ही अपने को भाजपा की बी टीम स्वीकार कर लिया है। कांग्रेस का बयान बताता है कि धर्मनिरपेक्षता उसके लिए एक आवरण है। यानी भाजपा खुले तौर पर सांप्रदायिकता करती है और कांग्रेस उस पर धर्मनिरपेक्षता का परदा डाले रखती है। इस स्वीकारोक्ति का सीधा अर्थ है कि कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक मूल्य में सच्ची आस्था नहीं है।
नेहरूयुगीन कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टी थी। लेकिन उनके बाद की कांग्रेस ने सत्ता के लिए कई बार सांप्रदायिक कार्ड खेला है। उसीका नतीजा है कि आज कांग्रेस के नेता खुद कह रहे हैं कि धर्मनिरपेक्षता कांग्रेस के लिए महज आवरण है। वे इस आवरण के चलते कांग्रेस को भाजपा से बेहतर बता रहे हैं।
आरएसएस एक सांप्रदायिक संगठन है और भाजपा उसका राजनीतिक मंच है। भाजपा की विचारधारा और नेता आरएसएस से आते हैं। लिहाजा, सांप्रदायिकता भाजपा की राजनीति का मूल आधार है। नरेंद्र मोदी ने ‘धर्मनिरपेक्षता का बुर्का’ कह कर धर्मनिरपेक्ष संविधान के प्रति गहरी हिकारत व्यक्त की है। साथ ही अल्पसंख्यक मुसलमानों के प्रति भी, क्योंकि बुर्का मुस्लिम महिलाओं का लिबास है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता यषवंत सिन्हा ने सलाह दी है कि सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की बहस चला कर भाजपा कांग्रेस के जाल में न फंसे। लेकिन उल्टे कांग्रेस भाजपा के जाल में फंसी नजर आती है। वह खुद कह रही है कि कांग्रेस पोषीदा तौर पर सांप्रदायिक करती है जो भाजपा की खुली सांप्रदायिकता से बेहतर है।
धर्मनिरपेक्षता संविधान का एक मूलभूत मूल्य है। देष की प्रत्येक राजनीतिक पार्टी की उसमें संपूर्ण निष्ठा अनिवार्य है। लेकिन देष की दो सबसे बड़ी पार्टियों की निष्ठा धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक मूल्य में नहीं है। यह समाज और भारतीय राष्ट्र के लिए गंभीर समस्या है। सोषलिस्ट पार्टी की देष के नागरिकों, सुप्रीम कोर्ट और निर्वाचन आयोग से अपील है कि वे इस गंभीर समस्या का संज्ञान लेकर राजनीतिक पार्टियों के लिए संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्य का पालन सुनिष्चित करें।
डाॅ. प्रेम सिंह
महासचिव व प्रवक्ता
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