2 अक्टूबर 2017
प्रेस रिलीज़
रेलवे के निजीकरण के विरोध में सोशलिस्ट पार्टी का 'भारतीय रेल
बचाओ' धरना
सोशलिस्ट पार्टी ने रेलवे को बेचने के सरकार के फैसले के खिलाफ पूरे देश में जागरूकता अभियान चलाया है. इस अभियान की शुरुआत 22 जून 2017 को दिल्ली में मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक 'भारतीय रेल बचाओ' मार्च का आयोजन करके की गई. उसी कड़ी में 2 अक्टूबर 2017 को दिल्ली के जंतर मंतर पर दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक 'भारतीय रेल बचाओ' धरना आयोजित किया गया.
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा कि सोशलिस्ट पार्टी संविधान के मूलभूत सिद्धांतों और आज़ादी के मूल्यों को स्थापित करने का संघर्ष कर रही है. भारत के संविधान के मुताबिक पब्लिक सेक्टर को मज़बूत बनाना सरकार की ज़िम्मेदारी है. लेकिन सरकार पब्लिक सेक्टर की सबसे बड़ी इकाई रेलवे को प्राइवेट सेक्टर में धकेल रही है. यह संविधान और भारत की जनता के साथ धोखा है. सोशलिस्ट पार्टी रेलवे का निजीकरण रोकने का जो अभियान चलाया है मेरा उसे पूरा समर्थन है. मैं उम्मीद करता हूँ कि राष्ट्रपति महोदय रेलवे का निजीकरण करने की दिशा में लिए जा रहे फैसलों को वापस लेने के लिए सरकार को कहेंगे.
धरने को वरिष्ठ समाजवादी नेता अरुण श्रीवास्तव, श्याम गंभीर, चंद्र शेखर आज़ाद, अमर सिंह अमर, पुरुषोत्तम, एडवोकेट शौक़त मलिक, दिल्ली विश्वविद्यालय अकेडमिक कौंसिल के सदस्य डॉ. शशि शेखर सिंह, सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह, उपाध्यक्ष रेणु गंभीर, महासचिव मंजू मोहन, संगठन मंत्री फैज़ल खान, सोशलिस्ट पार्टी दिल्ली प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष सैयद तहसीन अहमद, सचिव शाहबाज़ मलिक, सोशलिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के संयोजक चरण सिंह राजपूत, सोशलिस्ट युवजन सभा (एसवाईएस) के अध्यक्ष नीरज कुमार, महासचिव बन्दना पाण्डेय, एसवाईएस दिल्ली प्रदेश के सचिव राम नरेश, ने संबोधित किया.
बड़ी संख्या में सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, लेखक-पत्रकार-बुद्धिजीवी और छात्र धरने में शामिल हुए. धरने की समाप्ति पर राष्ट्रपति को रेलवे का निजीकरण रोकने की प्रार्थना के साथ ज्ञापन दिया गया. (ज्ञापन की प्रति संलग्न है.)
कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ. हिरण्य हिमकर ने किया.
कार्यकारी अध्यक्ष
सोशलिस्ट पार्टी दिल्ली प्रदेश
2 अक्टूबर 2017
ज्ञापन
महामहिम श्री रामनाथ कोविंद जी
राष्ट्रपति
भारतीय गणराज्य
परम आदरणीय महोदय
चाहे सफ़र हो या माल की ढुलाई, भारतीय रेलसेवा पूरे देश की सामाजिक-आर्थिक जीवन-रेखा है. दुनिया की सबसे बड़ी रेल सेवाओं में से एक भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक उद्यम है. अंग्रेजों ने भारत के आर्थिक शोषण और अपने साम्राज्य की मजबूती के लिए रेल का बखूबी इस्तेमाल किया. आजाद भारत में रेलसेवा का निर्माण और विस्तार देश की संपर्क व्यवस्था, अर्थव्यवस्था और रक्षा-व्यवस्था को मज़बूत बनाने के उद्देश्य से किया गया. भारतीय रेलसेवा के निर्माण में देश के बेशकीमती संसाधन और करोड़ों लोगों की मेहनत लगी है.
भारतीय रेल-पटरी की कुल लम्बाई लगभग 120,000 किलोमीटर है. इसमें से 28 हजार किलोमीटर पटरी रेलगाड़ियों के रखरखाव और ठहराने के लिए यार्ड के रूप में प्रयोग में लाई जाती है. शेष 92,000 किलोमीटर पटरी पर रेल दौड़ती है. परिचालन के हिसाब से भारतीय रेल की कुल लम्बाई 66,687 रूट किलोमीटर है. इसमें से 55,000 रूट किलोमीटर लाइन अंग्रेजों के ज़माने की है. यानी स्वतंत्रता के 70 सालों में मात्र 11 00 0 रूट किलोमीटर का विस्तार हुआ है, जो जरूरत के हिसाब से नगण्य है. 66 हज़ार रूट किलोमीटर में से 60 हज़ार रूट किलोमीटर ब्रोडगेज, बाकी नैरो और मीटर गेज लाइन हैं. इन्हें ब्रोडगेज लाइन में बदलने का लक्ष्य अभी पूरा नहीं हुआ है. पटरी के दोहरीकरण और तिहरीकरण का काम भी काफी धीमीगति से चल रहा है. इस दौरान रेलवे के विद्युतीकरण का काम अपेक्षाकृत तेजी से हुआ है. 1950-51 में कुल रेलवे लाइन का 7.5% हिस्सा विद्युतिकृत था, जो अब 36% के लगभग है.
रेलसेवा के गुणात्मक सुधार में सुरक्षा का सवाल सबसे ऊपर आता है. हर बजट के साथ रेलगाड़ियों, माल-ढुलाई और यात्रियों की संख्या बढ़ती है. साथ ही गाड़ियों की रफ़्तार बढ़ाने के फैसले होते हैं. यहाँ तक कि बुलेट ट्रेन चलाने का फैसला भी लिया जा चुका है. लेकिन सुरक्षा, समय-बद्धता और सुविधाओं में सुधार नहीं होता है. भारतीय रेल का सफर दुर्घटनाओं का सफर बन कर रह गया है. हर साल औसतन 100 छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं होती है. वर्ष 2017 में अब तक आठ बड़ी रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. कई बार प्लेटफार्मों और पुलों पर लोग भगदड़ में कुचल कर मर जाते हैं. हाल में हुआ मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन का हादसा इसका ताज़ा उदहारण है. सरकार ने सिर्फ 550 किलोमीटर की दूरी के लिए 1.20 हज़ार करोड़ का प्रोजेक्ट तुरंत पास कर दिया, लेकिन फंड के अभाव का हवाला देकर 1911 में बने पुल की जगह नया पुल बनाने की राशि उपलब्ध नहीं कराई।
देश की उन्नति के लिए सभी नागरिकों के लिए सुरक्षित, सुविधाजनक और समय-बद्ध रेलसेवा सबसे पहली शर्त है. इसके लिए रेलवे में खाली पड़े लाखों पदों को भरना, ज़रुरत के मुताबिक नई रेल पटरियां बिछाना, खस्ताहाल पटरियों का नवीकरण करना, नई तकनीक के साथ सुरक्षा, सुविधा और समय-बद्धता के पुख्ता उपाय करना सरकार का काम है. लेकिन सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाय रेलवे को पूंजीपतियों के हवाले करने में लगी है. वर्तमान भाजपा सरकार ने रेल बज़ट को आम बज़ट के साथ मिलाने, और पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (पीपीपी) की आड़ में रेलवे स्टेशनों और लाइनों को प्राइवेट हाथों में बेचने का फैसला करके रेलवे के निजीकरण की ठोस शुरुआत कर दी है.
रेलवे देश की ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था, समन्वित संस्कृति, शिक्षा और आंतरिक सुरक्षा से गहराई से जुड़ा है. लिहाज़ा, रेलवे के निजीकरण का कोई भी फैसला संविधान-विरोधी और जनता-विरोधी है. सोशलिस्ट पार्टी ने रेलवे के निजीकरण के सरकार के फैसले के खिलाफ पूरे देश में जागरूकता अभियान चलाया है. इस अभियान की शुरुआत 22 जून 2017 को दिल्ली में मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक 'भारतीय रेल बचाओ' मार्च का आयोजन करके की गई. उसी कड़ी में आज 2 अक्टूबर 2017 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर 'भारतीय रेल बचाओ' धरना आयोजित किया गया. धरने की समाप्ति पर आपको यह ज्ञापन सौंपा गया है. संविधान का अभिरक्षक होने के नाते हमारी आपसे प्रार्थना है कि आप भारतीय रेल का निजीकरण करने के सरकार के फैसले को निरस्त करें. हमें आशा है आप इस विषय पर जल्द से जल्द और निर्णायक कार्रवाई करेंगे.
(ज्ञापन का अंग्रेजी अनुवाद संलग्न है.)
सादर
आपका
डॉ. प्रेम सिंह
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