मधु दंडवते
संभव है कि मृत्यु ही जीवन को तुम्हारा अंतिम उपहार हो, परंतु यह विश्वासघात
का कृत्य नहीं होना चाहिए | - डाग हैमरशोल्ड
2 जुलाई 1950 | सूर्य उगने से पहले ही भोर बेला में युसुफ़ मेहरअली की जीवन
ज्योति बंबई के जस्सावाला नर्सिंग होम में बूझ गयी | युसुफ़ के घनिष्ठ मित्र और
सहकर्मी जयप्रकाश नारायण अंतिम क्षणों में उनके साथ थे | उन्होंने अश्रुपूर्ण
नेत्रों से उनको दम तोड़ते देखा | ऊर्जा और गतिशीलता से भरपूर एक स्पंदनशील जीवन का
समय से पूर्व ही 47 वर्ष के अल्पायु में अवसान हो गया | यह हृदयद्रावक समाचार जंगल
की आग की तरह देशभर में फैल गया तथा युसुफ़
के प्रति सौहार्दपूर्ण और संवेदनशील श्रद्धांजलि दी जाने लगीं | भावना के आवेग में
जयप्रकाश नारायण ने कहा :
"मैं युसुफ़ मेहरअली की जीवन को सर्वदा समर्पण की एक ऐसी अभिव्यक्ति के
रूप देखता रहूँगा जिसका स्थान
गांधी जी के बाद सर्वप्रथम है |"
राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने युसुफ़ की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित
करते हुए कहा :
"मेरे लिए वे एक आत्मीय मित्र और देश के एक समर्पित सेवक थे | अल्पायु में
ही उनके निधन से हमारे सार्वजनिक जीवन को
भारी क्षति पहुंची है |"
प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मेहरअली की मृत्यु पर टिप्पणी करते हुए
कहा :
"मुझे यह जानकर गहरा दुःख हुआ कि युसुफ़ मेहरअली का बंबई में निधन हो गया
| एक लम्बी बीमारी ने उन्हें पंगु
बना दिया था तथापि उनके चेहरे पर सदा मुस्कान खेलती रहती थी | वे अपने परिचितों के लिए एक प्रिय मित्र थे | वे देश के
स्वतंत्रता संग्राम के एक वीर तथा दुर्दमनीय सेनानी तो थे ही, उनके चरित्र में
उच्चकोटि की प्रामाणिकता का विरल गुण भी विद्यमान था जिसके कारण वे सबके लिए आदर
के पात्र बन गए थे | इस उदार मानव और प्रिय मित्र के निधन से हमें भारी क्षति
पहुंची है |"
आचार्य नरेंद्र देव ने कहा :
"मेहरअली एक शक्तिशाली और गतिशील व्यक्तित्व के धनि तथा भारतीय राजनीति
में अपने ढंग के एक अनूठे व्यक्ति थे |"
आचार्य कृपलानी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा :
"मेहरअली आदि से अंत तक भारतीय थे अर्थात उनमें उन सभी तत्वों का
सामंजस्यपूर्ण संयोग हुआ था, जिन्होंने
आधुनिक भारत का निर्माण किया है |"
डॉ. राममनोहर लोहिया ने अपनी श्रद्धांजलि में उनका वर्णन इस प्रकार किया :
"मेहरअली का जीवन राजनीतिक दलों तथा धर्मों के बीच आपसी मतभेदों की खाई
को आदर्शों और मानवाहित के प्रति
प्रेम से पाटने का एक जीता-जागता उदाहरण था |"
अशोक मेहता ने युसुफ़ को 'समाजवादी आन्दोलन का अंतःकरण' बताया तथा कहा :
"रोग ने उनका शरीर नष्ट कर दिया था परंतु वह उनकी आत्मा को तनिक भी घायल
नहीं कर पाया|"
कमला देवी चट्टोपाध्याय ने अपने श्रद्धापूर्ण सन्देश में कहा :
" युसुफ़ मेहरअली एक विलक्षण व्यक्ति थे | उनके निधन से उनकी मित्रमंडली
में एक अपूरणीय रिक्तता की चेतना व्याप्त
हो गयी है | उनकी आत्मीयतापारक मानवीयता और अपने प्रत्येक साथी में व्यक्तिगत
दिलचस्पी लेने तथा उसके हितों का ध्यान रखने की वृति ने उन्हें एक महामानव बना दिया
था | साहस और बलिदान के महान कार्य तो बहुत लोग सम्पन्न कर सकते हैं किन्तु व्यक्ति
के चरित्र की महानता निर्बलता के प्रति उसकी उदारता तथा दयालुता पर निर्भर करती है
| निर्भय तथापि कोमल, साहसी तथापि उदार, प्रत्येक बलिदान के लिए तैयार तथापि प्रेम
और स्नेह से परिपूर्ण मेहरअली एक अनूठे पुरुष थे | उन्हें ऐसे समर्पित मित्र तथा
निष्ठावान सहकर्मी प्राप्त हुए जो विविध राजनीतिक पक्षों और धर्मों के अनुयायी थे | युसुफ़ सभी के लिए उस
जीवनसूत्र का मूर्त स्वरुप बन गए थे, जो स्वयं उन्हें अत्यंत प्रिय था : 'खतरों
में जियो' |"
बॉम्बे क्रानिकल ने युसुफ़ मेहरअली के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अपने एक संपादकीय
लेख द्वारा अर्पित की, जिसमें कहा गया था :
" ऐसे संसार में जहां ढेरों असत्य खुले में फैला हुआ है और ढेरों सत्य
नीचे दबा पड़ा है, एक ऐसे व्यक्ति
के अभाव को शब्दों द्वारा नहीं आँका जा सकता जो सादगी और पारदर्शी निश्छलता का प्रतीक बन गया था |"
युसुफ़ मेहरअली बम्बई विधान
सभा के सदस्य थे, इस नाते राज्य विधानमंडल के सदस्यों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि
अर्पित की |
मुंबई के मुख्यमंत्री बी. जी.
खेर ने युसुफ़ मेहरअली के बारे में कहा : "वे एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने
अपने आपको कर्म में निचोड़ डाला |"
विधानसभा में युसुफ़ मेहरअली के समाजवादी सहकर्मी पीटर अलवारिस ने कहा : "वे
उग्रता और मधुरता का मिश्रण थे | उनकी चिंता का एक मात्र विषय प्रत्येक मनुष्य का
हित था, स्वार्थ नहीं |"
युसुफ़ को समर्पित इन सब
श्रद्धांजलियों में जो सत्य उजागर हुआ है वह अगले पृष्ठों में प्रस्तुत उनके
जीवनचरित से प्रमाणित होता है |
युसुफ़ की मृत्यु के पश्चात
उनके पार्थिव शरीर को पहले समाजवादी दल के लाल झंडे में और फिर तिरंगे राष्ट्रिय
झंडे में लपेटकर स्वाधीनता संग्राम के पावन गौरव से जुड़े बंबई के जिन्ना हॉल में
रखा गया जिससे कि हजारों नागरिक अपने उस प्रिय युवा नेता के अंतिम दर्शन कर सकें
जिसे मृत्यु ने विश्वासघात करके उनसे छीन लिया था | मृत्यु ने जीवन की डाली से एक
ऐसा फूल तोड़ लिया था जो पूरी तरह खिल भी नहीं पाया था |
युसुफ़ मेहरअली की शवयात्रा
सायंकाल ठीक चार बजे प्रारम्भ हुई | युसुफ़ की इस अंतिम यात्रा में मोरारजी देसाई,
जीवराज मेहता, गणपति शंकर देसाई, नगीनदास टी. मास्टर, एन. एम. चोकसी, मीनू मसानी,
आबिद अली जाफर भाई, सिरखे स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों तथा जयप्रकाश नारायण,
डॉ. राममनोहर लोहिया, अशोक मेहता, एम. हैरिस, अचुत्य पटवर्धन, एन. जी गोरे, एस.
एम. जोशी सरीखे युसुफ़ के समाजवादी सहकर्मीयों के अतिरिक्त हजारों औद्योगिक श्रमिक,
गुमाश्ते, युवा बुद्धिजीवी और मध्यवर्गीय कर्मचारी भी शामिल हुए | यह सोचकर आज भी
दुःख होता है कि एक निर्भीक राजनीतिज्ञ और उत्कट समाज सुधारक युसुफ़ को जिस समय
कब्रिस्तान ले जाया जा रहा था, उनके अनेक सहधर्मियों ने उस अंतिम घड़ी में भी उनके
साथ चार कदम चलने और उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया था | उनमें से कुछ ने तो
शवयात्रा को सामने से गुजरते देखकर रोषपूर्वक अपने घरों की खिड़कियाँ तक बंद कर ली
थीं | युसुफ़ अपनी सुधारवादी और क्रन्तिकारी भावना के कारण ही उनके क्रोधभाजन बन गए
थे |
रोग की यंत्रणाओं से जर्जर
युसुफ़ मेहरअली की देह बंबई के डोंगरी कब्रिस्तान में संगमरमर की एक कब्र में
शाश्वत शान्ति में सोयी पड़ी है, परंतु जैसा कि उनके साथी अशोक मेहता ने ठीक ही कहा
था - 'वह पंगुकारी रोग उनकी आत्मा को तनिक भी घायल नहीं कर पाया |' उनकी आत्मा की
ज्योतिर्मयी शालीनता आज तक उनके लोगों को मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध समर्पित जीवन
जीने की प्रेरणा दे रही है | यही वह धरोहर है जो युसुफ़ अपने पीछे छोड़ गए हैं |
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