Thursday 27 December 2018

'समाजवाद के साथ ही बचेंगे धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र' - डॉ. प्रेम सिंह

जस्टिस राजेंद्र सच्चर की याद में जालंधर में सेमिनार


      सोशलिस्ट पार्टी ने 22 दिसंबर 2018 को जस्टिस राजेंद्र सच्चर के 95वें जन्मदिवस के अवसर पर पंजाब के जालंधर शहर में 'संवैधानिक मूल्यों और संस्थाओं को कैसे बचाएं?' विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया. इस अवसर पर जस्टिस सच्चर को श्रद्धांजलि देने के लिए पूरे पंजाब से विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े नागरिक जालंधर पहुंचे. सेमिनार का उद्घाटन पार्टी के अध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह ने किया. अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि संविधान में निहित समाजवाद के मूल्य को त्याग कर न धर्मनिरपेक्षता को बचाया जा सकता है, न लोकतंत्र को. 1991 में नई आर्थिक नीतियों को अपना कर देश के राजनैतिक और बौद्धिक नेतृत्व ने समाजवाद के संवैधानिक मूल्य को छोड़ दिया. इसके साथ देश में कारपोरेट राजनीति का रास्ता साफ़ हो गया. तीन दशक बाद देश बुरी तरह से कारपोरेट-सम्प्रदायवाद के गठजोड़ के चंगुल में फंस चुका है. इस भारी गलती को सुधारे बिना धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल्यों को नहीं बचाया जा सकता है. संवैधानिक संस्थाओं को बचाने के लिए भी समाजवाद की बहाली और नवउदारवाद की विदाई जरूरी है. क्योंकि ये संवैधानिक संस्थाएं प्राइवेट सेक्टर की सेवा के लिए नहीं कायम की गई थीं. उन्होंने श्रोताओं को अवगत कराया कि सोशलिस्ट पार्टी अपने तीन दिवंगत नेताओं - भाई वैद्य, राजेंद्र सच्चर और कुलदीप नैयर - की याद में देश के छोटे शहरों और कस्बों में क्रमश: शिक्षा, संविधान और आपसी भाईचारा विषयों पर सेमिनार और परिचर्चा का आयोजन करेगी. इस कड़ी में पार्टी का अगला कार्यक्रम भाई वैद्य की याद में इंदौर में और कुलदीप नैयर की याद में अमृतसर में होगा. 
      कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पीयूसीएल के उपाध्यक्ष एनडी पंचोली ने जस्टिस सच्चर की संविधान के प्रति अटूट निष्ठा को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी. उन्होंने बताया की 1984 के सिख नरसंहार पर पीयूसीएल और पीयूडीआर ने दिल्ली उच्च न्यायालय में पेटीशन दायर की थी. जस्टिस सच्चर ने बतौर न्यायधीश सरकार को जवाब देने का नोटिस दिया. लेकिन पेटीशन की सुनवाई की बेंच बदल दी गई और उच्च न्यायालय ने पेटीशन खारिज कर दी. उच्चतम न्यायालय ने भी वही किया. पंचोली ने संविधान पर दरपेश गंभीर संकट को विस्तार से रेखांकित किया. उन्होंने खास तौर पर कांग्रेस के 1931 के कराची अधिवेशन का हवाला देते हुए बताया कि भारत के संविधान में आज़ादी के संघर्ष के दौर के मूल्यों का योगदान है. जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष का विरोध किया, वे ही सबसे ज्यादा संवैधानिक संस्थाओं और मूल्यों को चोट पहुंचा रहे हैं. देश की जनता की ताकत को एकजुट करके ही संवैधानिक संस्थाओं और मूल्यों को बचाया जा सकता है.     
      लोहियावादी विचारक प्रोफेसर एसएस छीना ने सेमीनार को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य का तेजी से निजीकरण संवैधानिक मूल्यों और संस्थाओं का सीधा उल्लंघन है. पंजाब में 12 और जालंधर में 3 प्राइवेट यूनिवर्सिटीज हैं. क्रांतिकारी समाजवादी विचारधारा से जुड़े विद्वान/एक्टिविस्ट प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने कहा कि समाजवाद का नारा सबसे पहले भगत सिंह और उनके साथियों ने लगाया था. उन्होंने संवैधानिक मूल्यों और संस्थाओं को बचाने के लिए क्रांतिकारी चेतना जगाने पर बल दिया. कई श्रोताओं ने भी चर्चा में हिस्सा लिया और  सेमिनार में अपने विचार रखे.
      सेमिनार की अध्यक्षता सोशलिस्ट पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बलवंत सिंह खेडा ने की. सोशलिस्ट पार्टी की पंजाब इकाई के अध्यक्ष हरेन्द्र सिंह मानसाइया ने अतिथियों का स्वागत किया और महासचिव ओम सिंह सटीयाना ने कार्यक्रम का संचालन किया.

डॉ. हिरण्य हिमकर      

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