श्याम गंभीर
जब भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन
चल रहा था तो उसमें समाजवादी धारा के नेताओं आचार्य नरेन्द्र देव, डॉ. राममनोहर
लोहिया, जयप्रकाश नारायण, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, युसूफ मेहर अली, अशोक मेहता, एस.
एम. जोशी, मीनू मसानी, उषा मेहता आदि नेताओं के नेतृत्व में समाजवादियों ने बड़ी
भूमिका अदा की | जब देश आजाद होगा तब देश
की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्थिति क्या होगी इसी विचार मंथन के
रूप में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की
स्थापना 1934 में हुई, तभी से समाजवादी नेताओं ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी
के माध्यम से आजाद भारत की आर्थिक और
राजनीतिक स्थिति क्या हो उसके लिए नीतियां बनाना और काम करना शुरू किया | साथ ही साथ
वो आजादी के आन्दोलन को भी गति देते रहे | 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में जब सभी
वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तब आन्दोलन को समाजवादी नेता ही लंबे अरसे
तक चलाते रहे | परिणाम स्वरुप 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ | इसके बाद जब कांग्रेस ने अपनी सदस्यता के नियम
में संसोधन किया कि कांग्रेस का सदस्य किसी दुसरे संगठन का सदस्य नहीं हो सकता तब
सभी बड़े समाजवादी नेताओं ने कांग्रेस छोड़ कर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की
| 1952 के चुनाव में भारी पराजय के बाद समाजवादियों के बिच निराशा फैली, लेकिन
समाजवादी नेता आम जानता के जुड़े हुए मुद्दे पर निरंतर संघर्ष करते रहे | जब पहली
बार डॉ. लोहिया 1963 में संसद में पहुंचे तब संख्या में कम होते हुए भी
समाजवादियों ने यह एहसास कराया कि प्रतिपक्ष को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता | डॉ.
लोहिया, मधु लिमये जैसे नेताओं ने विपक्ष कि क्या भूमिका हो सकती हैं और विपक्ष का
होना क्यों जरुरी हैं इसका भी एहसास कराया | कम सदस्य होते हुए भी जनता से जुड़े हुए हर
मुद्दे को समाजवादियों ने पूरी ताकत से सदन में उठाया | लोहिया के गैर कांग्रेसवाद
के नीति ने 1967 में कांग्रेस को कई राज्यों में
हराया और विपक्ष की सरकार बनी | संभवतः यह समाजवादियों का स्वर्ण काल था | समाज
को बदलने और समता व समृद्धि पर आधारित समाज का निर्माण करने के लिए समाजवादी
निरंतर संघर्षशील रहते थे और अगर गुलाम भारत में अंग्रेजों ने समाजवादियों को कई बार गिरफ्तार किया तो आजाद भारत की सरकार ने उससे
भी ज्यादा बार गिरफ्तार किया | लेकिन समाजवादी पुरे साहस के साथ हर तरह के शोषण और
दमन का प्रतिकार करते थे फिर कीमत चाहे जो चुकानी पड़े | इसीलिए डॉ. लोहिया ने जेल,फावड़ा और वोट जैसे प्रतीक दिए थे | इसमें जेल संघर्ष का प्रतीक था तो
फावड़ा रचना का और वोट लोकतान्त्रिक तरीके से सत्ता का |
डॉ. लोहिया के अकास्मिक निधन
के बाद 1972 में जन असंतोष का नेतृत्व लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने किया | परिणाम
स्वरुप 1975 में आपातकाल लगा और 1977 के
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी पराजय
का सामना करना पड़ा | समाजवादियों को केंद्र और प्रदेशों में सरकार का नेतृत्व करने
का अवसर भी मिला | कुछ समय के बाद ही समाजवादियो के समर्थन से देश को प्रधानमंत्री
का पद भी प्राप्त हुआ | समाजवादी नीतियों को लागू करने का यही सही समय था लेकिन
सत्ता मिलने के बाद भी इन नीतियों को लागू करने से समाजवादी चुक गए | ऐसा प्रतीत
होता हैं कि समाजवादी नीतियों को लागू करने के बजाए उनमें सत्ता भोग कि प्रवृति ने
जगह बना ली | लम्बें समय तक नीतियों कि जगह खुद को स्थापित करने का मोह भी कुछ
नेताओं ने पाल लिया | सत्ता को बनाए रखने के लिए
वंशवाद और जातिवाद का गठजोड़
समाजवादी नेता करते रहे, 2000 आते-आते
सत्ता में रहने के लिए कई नेताओं ने फासीवादी और सांप्रदायिक ताकतों से हाथ मिलाने
में भी गुरेज नहीं किया | अधिकतर नेता जो एक बार विधायक या संसद बना सभी विचारों
और नीतियों को त्याग कर दोबारा बनने के लिए हर तरह के गठजोड़ करने लगा | इसमें
सफलता न मिलने पर समाजवादी शब्द के साथ सभी अपने-अपने राजनीतिक दल बनाने में लग
गये, फलस्वरूप आज दो दर्जन से भी अधिक समाजवादी दल बने हुए हैं | जो अस्तित्वहीन
हालत में हैं |
डॉ. लोहिया के जेल, फावड़ा और
वोट के आधार पर संगठन कार्य करे | इसके लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य को ध्यान में
रख कर हम छोटी-छोटी इकाइयों का पहले गठन करें | यह इकाइयां गाँव, क़स्बा या तहसील
का हो सकता हैं | हमें उस गाँव, कस्बे या तहसील के समस्याओं को ध्यान में रखते हुए
वहीं पर रचना और संघर्ष के कार्यक्रम करने चाहिए | जब वहां के इकाइयों में इन
कामों का नतीजा दिखाई दे तो जिले में इन कार्यों को पूरा विस्तार दिया जाए और इसी प्रकार
से राज्य व्यापी संगठन खड़ा किया जाए | इसके लिए सभागारों से निकल कर जनता के बीच
आना होगा और आम कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन देकर दुसरे पंक्ति के नेता तैयार करना
होगा | डॉ. लोहिया के एक सूत्री कार्यक्रम जैसे दाम बंधों, जाति तोड़ो, हिमालय बचाओ
इत्यादि कार्यक्रमों के लिए अन्य सामान धर्मी दलों को भी साथ जोड़ा जा सकता हैं |
संगठन निर्माण के लिए युवा, मजदूर किसान, अल्पसंख्यक, दलित, महिलाओं के बीच रहकर
और उन्हीं के नेतृत्व में संघर्ष चलाकर संगठन को विस्तार दिया जाए |
आज कांग्रेस समेत सभी
विपक्षी दल आम जनता के दुःख तकलीफों से मुह मोड़ कर वंशवाद और जातिवाद की राजनीति
कर रहे हैं जिसके फलस्वरूप जनता उनसे दूर हो रही हैं और वो सिकुड़ते जा रहे हैं और
अपना अस्तित्व भी बचाने में नाकामयाब हो रहे हैं | दूसरी ओर फासीवादी ताकतें भाजपा
के नेतृत्व में पूरी तरह अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है | संवैधानिक संस्थाओं पर
हमले हो रहे हैं | जनतंत्र और आजादी खतरे में हैं | ऐसे में विपक्ष का खाली होता
हुआ स्थान सिर्फ समाजवादी नीतियों से ही
भारा जा सकता हैं और यह तब संभव होगा जब हम कार्यकर्ताओं में मजबूत निष्ठां, विचार
और संकल्प भर सकेंगे | युवाओं के बीच हमें काम करने की आवश्यकता अधिक हैं | युवा
समाजवादी विचारधारा से नहीं जुड़ पा रहा है उन्हें हमें भरोसा दिलाना होगा कि
समजावाद ही हर समस्या का समाधान कर सकता हैं और अधिक से अधिक युवाओं को नेतृत्व
देना होगा | एक आशावान व्यक्ति होने के
नाते मुझे विशवास हैं कि समाजवादी कार्यकर्ता इस स्थान को भरने में सफल होंगे और
समजावाद का स्वर्णकाल भविष्य में अवश्य आएगा |
(लेखक वरिष्ठ समाजवादी नेता हैं)
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