Sunday, 23 October 2016

युद्ध की बात करने वाले देशद्रोही हैं

युद्ध की बात करने वाले देशद्रोही हैं
 
       उड़ी हमले के जवाब में हुए सर्जिकल धावे के बादजिसके बारे में देश को ठीक से बताया नहीं जा रहाभारत सरकार पाकिस्तान के खिलाफ लगभग विजयी मुद्रा में  गई है। उसी तरह जैसे 1998 में 11 मई को पोकरण नाभिकीयपरीक्षण के बाद। तब भी भाजपा नेताओं के स्वर चेतावनी से लेकर धमकी भरे थे। लेकिन महीना खत्म भी नहीं हुआ और पाकिस्तान ने भी नाभिकीय परीक्षण करके दिखा दिए। इसलिए जो भारतीय सेना के पराक्रम से आत्ममुग्ध हैं उन्हेंसावधानी बरतनी चाहिए। भारत ने ऐसी कोई कार्यवाही नहीं की है कि पाकिस्तान हमेशा हमेशा के लिए भारत का लोहा मान लेगा। पोकरण के नाभिकीय परीक्षण के बाद भी भारतीय सरकार ने अपने नागरिकों को यह बताया था कि अब भारतके पास ऐसा शस्त्र  गया है कि पाकिस्तान क्या अमरीका भी हमारी तरफ नजर उठा कर नहीं देखेगा। किंतु अटल बिहारी वाजपेयी का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही कारगिल में घुसपैठ हो गई।  

      जिस तरह पोकरण के नाभिकीय परीक्षणों की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच एक नाभिकीय शस्त्रों की होड़ शुरू हो गई तो दोनों ही देशोंजिनके सामाजिक मानक दक्षिण एशिया में सबसे खराब हैंके बहुमूल्य संसाधन जो आमगरीब जनता की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में लगने चाहिए थेतबाही की सामग्री जुटाने में लग गएउसी तरह भारत के सर्जिकल धावे से हथियारों की होड़ और तेज होगी। यह उम्मीद करना कि पाकिस्तान अब भारत पर हमलेकरने से बाज आएगापाकिस्तान को कम आंकना है। हथियारों की होड़ के साथ दिक्कत यह है कि वह कहां रुकेगी यह किसी को नहीं मालूम। जैसे जैसे प्रौद्योगिकी का विकास होगा एक से एक नवीन हथियारजिनकी पेचीदगी भी बढ़करहोगीबाजार में आएंगे। एक देश यदि इनमें से कोई हथियार खरीदता है तो दूसरे की मजबूरी हो जाती है कि वह भी उसे टक्कर देने वाला हथियार खरीदे। हथियार खरीदे तो जाते हैं सुरक्षित रहने के लिए लेकिन देखा यह जा रहा है कि हथियारोंसे असुरक्षा बढ़ जाती है। फिर हम और हथियार खरीदते हैं और इस तरह एक दुष्चक्र में फंस जाते हैं। पहले तो हमें सिर्फ अपनी चिंता होती है लेकिन फिर हथियारों की सुरक्षा की चिंता भी करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए नाभिकीय हथियारोंको सुरक्षित नहीं रखा गया तो उसके घोर विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। अमरीका को इस बात की चिंता करनी पड़ती है कि कहीं पाकिस्तान के नाभिकीय हथियार इस्लामी आतंकवादियों के हाथ में   जाएं।

       भारत ने ऐसा माहौल निर्मित कर दिया है कि अब भारत और पाकिस्तान की मजबूरी है कि वे नवीनतम हथियारों को हासिल करने की नई होड़ में लगेंगे। फायदा होगा उन शक्तिशाली देशों जैसे अमरीकाइजराइलरूसचीनफ्रांस,आदिका जिनसे भारत और पाकिस्तान अपने हथियार खरीदेंगे। जिन संसाधनों से वंचित जनता के लिए शिक्षास्वास्थ्यखाद्य सुरक्षाआवासशौचालयोंआदि का इंतजाम हो सकता थाजिनसे बच्चों का कुपोषण दूर हो सकता थावेमंहगे हथियारों को खरीदने में खपेंगे। अतः भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध का माहौल बनाना भी दोनों देशों की गरीब जनता के हितों के खिलाफ है।

      राजनाथ सिंह ने ऐलान किया है कि 2018 तक भारत-पाकिस्तान के बीच 3,323 किलोमीटर सीमा सील कर दी जाएगी। सीमाओं को इंसान ने बनाया है। हतिहास में ये बदलती रही हैं। भारत पाकिस्तान के बीच लोगों और सामग्री काआना जाना बना रहेगा क्यों कई परिवारों की रिश्तेदारियां और कई के धार्मिक स्थल सीमा के उस पार हैं। लोग सीमा के आर-पार जाना चाहते हैं। दोनों देश सांस्कृतिक रूप से एक हैं। दुनिया में और कोई देश नहीं है जहां उत्तर भारत के बड़ेहिस्से में बोली जाने वाली भाषाजिसे भारत में हिन्दी और पाकिस्तान में उर्दू कहते हैंसमझी जाती हो। यह बड़ी अजीब बात है कि यूरोप के देशों के बीच सीमाएं खत्म कर दी गई हैं और हम अपनी सीमा को पक्का बनाना चाहते हैं। पूर्वी औरपश्चिमी जर्मनी के बीच दीवार गिर गई। हम दीवार खड़ी करना चाहते हैं। यदि भविष्य में कोई ऐसी सरकारें आती हैं जो मित्रता कर लें तो इन दीवारों पर खर्च होने वाला पैसा बेकार जाएगा। इसलिए कोशिश तो यह होनी चाहिए कि सीमा खुले, कि बंद हो। दीवार दुश्मनी का प्रतीक है और सीमा खुल जाना मित्रता का। दुश्मनियां अस्थाई होती हैंअल्पकालिक होती हैंमित्रता और सम्बंध लम्बे समय के लिए होते हैं। इसलिए भारत सरकार द्वारा सीमा को पक्का बनाने का निर्णयएक अविवेकपूर्ण और जन-विरोधी निर्णय है। यह भी जनता के पैसे की बरबादी है। और क्या पक्की सीमा बन जाने से आतंकवादियों का आना रुक जाएगावे तो फिर भी  सकते हैं। अतः हमें समाधान ऐसा चाहिए कि आतंकवादियों काआना ही बंद हो जाए।

       युद्ध में लोग मरते हैं। हमेशा सैनिक और आतंकवादी ही नहीं मरते। जैसे हमने हाल ही में कश्मीर में देखा सुरक्षा बलों की बंदूकों से छोटे बच्चेमहिलाएंबूढ़े भी मरते हैं। सैनिक का परिवार भी नहीं चाहता कि उसे शहीद होना पड़े। वह उसेजिंदा वापस लौटते देखना चाहता है। उसका काम है सीमा की सुरक्षा करना। शहीद तो वह विशेष परिस्थिति में होता है। सरकारें वह परिस्थिति निर्मित करती हैं जिसमें सैनिक शहीद हो सकता है या सुरक्षित भी रह सकता है। यदि सरकारेंपड़ोसी देश के साथ आपसी समस्याएं नहीं सुलझा पा रही तो सैनिकों को शहीद होना पड़ सकता है। यदि सरकारें समस्याओं को सुलझाने की मंशा रखती हैं तो सैनिकों को अपनी जान की बाजी नहीं लगानी पड़ेगी। युद्ध सरकार की असफलताका प्रतीक है और शांति उसकी सफलता का। जो सरकार अपने नागरिकों की परवाह करेगी वह कभी युद्ध नहीं चाहेगी। जो नागरिकों के प्रति असंवेदनशील है वही नागरिकों की जान खतरे में डालेगी।

       पूरे देश में युद्धोन्माद की परिथिति का निर्माण करना देशभक्ति नहीं बल्कि देशद्रोह है क्योंकि वह देश को बरबादी की तरफ ले जाएगा। यह किसी जिम्मेदार सरकार की निशानी नहीं जो ऐसी परिस्थिति बनने देती है। युद्ध या युद्ध कामाहौल बनाने से सरकार और भारतीय जनता पार्टी को कुछ तात्कालिक फायदे मिल सकते हैं लेकिन लम्बे समय में आम जनता का नुकसान होगा।

 
लेखकः संदीप पाण्डेय
उपाध्यक्षसोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया)
लोहिया मजदूर भवन, 41/557 तुफैल अहमद मार्गनरहीलखनऊ-226001
फोनः 0522 2286423, मो. 9506533722
 

No comments:

Post a Comment

New Posts on SP(I) Website

लड़खड़ाते लोकतंत्र में सोशलिस्ट नेता मधु लिमए को याद करने के मायने आरोग्य सेतु एप लोगों की निजता पर हमला Need for Immediate Nationalisation ...