Tuesday, 3 July 2018

नदियां साफ करो



नदियां साफ करो
डॉ. राममनोहर लोहिया

 
            आज मैं आपसे एक बात ऐसी करूँगा जिसे धर्म के आचार्यों को करनी चाहिए, लेकिन वे नहीं कर रहे हैं | वे तो गलत और गैरजरूरी कामों में फंसे हुए हैं | मैं अपने लिए कह देता हूं कि मैं नास्तिक हूँ | कोई यह न समझ बैठे कि ईश्वर से मुझे मुहब्बत हो गई है |

            हिन्दुस्तान का मौजूदा जीवन और पुराना इतिहास सभी, बहुत-कुछ नदियों के साथ-साथ चला, यों सारी दुनिया में, लेकिन यहाँ ज्यादा | अगर मैं राजनीति न करता और स्कूल में अध्यापक होता, तो इसके इतिहास को समझता | राम की अयोध्या सरयू के किनारे, कुरु सुर पंचाल और मौर्य तथा गुप्त गंगा के किनारे, और मुग़ल और शौरसेनी नगर और राजधानियां यमुना के किनारे रहीं | बारहों मॉस पानी के कारण, शायद विशेष जलवायु के कारण, या हो सकता है, विशेष संस्कृति के कारण ऐसा हुआ हो | एक बार मैं महेश्वर नाम के स्थान पर गया, जहां अहिल्या अपनी ताकत से गद्दी पर बैठी थी | वहां पर एक संतरी था | उसने पूछा कि तुम किस नदी के हो ? दिल में घर कर जाने वाली बात है | उसने शहर नहीं पूछा, भाषा भी नहीं, नदी पूछी | जितने साम्राज्य बढे, किसी न किसी नदी के किनारे बढे-चोल कावेरी के किनारे, पंड्या वैगई के और पल्लव पालार के किनारे बढे |

            आज हिन्दुस्तान में 40 करोड़ लोग बसते हैं | एक-दो करोड़ के बीच रोजाना किसी न किसी नदी में नहाते हैं और 50-60 लाख पानी पीते हैं | उनके मन और क्रीडाएं इन नदियों से बंधे हैं | नदियाँ हैं कैसी ? शहरों का गंदा पानी इनमें गिराया जाता है | बनारस के पहले जो शहर है, इलाहाबाद, मिर्जापुर, कानपुर, इनका मैला कितना मिलाया जाता है इन नदियों में | कारखानों का गंदा पानी नदियों में गिराया जाता हैं-कानपुर के चमड़े आदि का गंदा पानी | यह दोनों गंदगियाँ मिलकर क्या हालत बनाती हैं ? करोड़ो लोग फिर भी नहाते हैं और पानी पीते हैं | इस समस्या पर मैं, साल से ऊपर हो गया, कानपुर में बोला था |

            तैराकी का खेल दुनिया में सबसे ज्यादा खेला जाता है -क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल से ज्यादा | क्रिकेट कह गया | यह तो पाजी, पुराने सामंतों और जमींदारों का खेल है | यूरोप, अमेरिका में तैराकी के तालाब बनाए जाते हैं | अरबों रुपये खर्च होते हैं | वैसे तालाब यहाँ नहीं हैं | अगले 50-100 वर्षों में रूस और अमरीका के जैसे तैराकी के तालाब यहाँ नहीं बन सकते | जो राजा हैं या गद्दी पर बैठने का मंसूबा रखते हैं, वे थोड़े ही नहाने जाते हैं | वे तो आधुनिक हो गए हैं, किन्तु इतने आधुनिक भी नहीं कि करोड़ों के दुःख-दर्द का इलाज कर सकें |

            क्या हिन्दुस्तान की नदियों को साफ़ रखने और करने का आन्दोलन उठाया जाए ? अगर यह काम किया जाए तो दौलत के मामले में भी फायदा पहुंचाया जा सकता है | मल-मूत्र और गंदे पानी की नालियां खेतों में गिरें | उनको गंगामुखी या कावेरिमुखी न किया जाए | दूर, कोई 10-20 मील पर नालियों द्वारा मल-मूत्र ले जाया जाए | खर्च होगा | दिमाग के ढर्रे को बदलना होगा | मुमकिन है, इस योजना में अरबो रुपयों का खर्च हो | 2,200 करोड़ रूपए सरकार हर साल खर्च करती है | पंचवर्षीय योजना के कुछ काम बंद करने होंगे, हालांकि इसमें रूकावटे जबरदस्त हैं | राजनैतिक व्यक्ति, चाहे गद्दी पर हो चाहे बाहर, अपने दिमाग से नकली यूरोपी हो गए हैं | कौन हैं हिंदुस्तान के राजा ? करीब एक लाख लोग होंगे, या उससे भी कम, जो थोड़ी बहुत अंग्रेजी जानते हैं, कांटे-छुरी से खाना और कोट-टाई पहनना जानते हैं | ताकतवर दुनिया के प्रतिक हैं | पंडित नेहरु मूर्ति हैं ऐसी दुनिया की | किसी कदर श्री संपूर्णानंद भी मूर्ति हैं, हालाँकि शक्ल में भिन्न हैं और यूरोपी जैसे नहीं लगते | श्री नेहरु भी अमरीका में तो रंगीन ही समझे जाएंगे |

            बनारस में विश्वनाथ को लेकर झगड़ा चला | दूसरा मंदिर बनाया जा रहा है | किस विश्वनाथ का झगड़ा चला-ब्राह्मणनाथ अथवा चमारनाथ ? इन बातों में हिन्दू दिमाग बे मतलब फंस जाता है | करपात्री जी, जैसा मैंने कहा  वैसे करते तो अच्छा होता | किस दुनिया के सहारे चलते हैं ये ? ये लोग करोड़पति और राजस्थान के राजाओं के नुमाइंदे हैं | एक विश्वनाथ की जगह पर दो खड़ा करने से काम नहीं चलेगा | सारे राष्ट्र के निर्माण की बात है | बेहद गरीबी है | वह कैसे मिटे ?

            आखिर पलटन में आज सिपाही कौन हैं ? गरीबों के लड़के | वे ही गरीबों पर गोली चलाते हैं | वही खड़गवासला, देहरादून और सैंडहर्स्ट के नकली यूरोपी रंग में रंगे अफसर का हुक्म मानते हैं | उनके पास पैसा है, साधन हैं, और आधुनिक दुनिया के प्रतिक वे हैं ही | करोड़ो से उनका क्या वास्ता ? आज राजगद्दी चलाने वाले हैं कौन ? नकली आधुनिक विदेशी लोग - दिमाग ज़रा भी हिन्दुस्तानी नहीं, नहीं तो हिन्दुस्तान की नदियों की योजना बन जाती | मैं चाहता हूँ कि इस काम में, न केवल सोशलिस्ट पार्टी के, बल्कि और लोग भी आएं, सभाएं करें, जुलूस निकालें, सम्मेलन करें और सरकार से कहें कि नदियों के पानी को भ्रष्ट करना बंद करो | फिर सरकार को नोटिस दें कि 3 से 6 महीने के भीतर वह नदियों का गंदा पानी खेतों में बहाए, इसके लिए ख़ास खेत बनाए, और वह अगर यह न करें तो मौजूदा नालियों को तोड़ना पड़ेगा | इससे हिंसा नहीं होती |

कबीर ने कहा था :
            माया महा ठगिनि हम जानी |
            तिरिगुन फांस लिए कर डोलै,
            बोलै मधुरी बानी |
            केसो के कमला होए बैठी,
            सिव के भवन भवानी |
            पंडा के मूरित होय बैठी,
            तीरथ महं भई पानी |

सब अपने ढंग से इसका अर्थ लगाते हैं | तीर्थ है क्या-पानी | पानी को साफ़ करने के लिए आन्दोलन चाहिए | लोगों को सरकार से कहना चाहिए - बेशर्म, बंद करो यह अपवित्रता ! यह सही है कि दुनिया से सीखना है, लेकिन करोड़ो का ध्यान रखना है | मैं फिर कहता हूँ कि मैं नास्तिक हूँ | मेरे साथ तिर्थबाजी का मामला नहीं है | मुख्य बात यह है कि 30 लाख का देश बने या 40 करोड़ का | इसके लिए अगर कुछ लोग आन्दोलन करना चाहें तो मैं मदद करूँगा |


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