Wednesday, 13 February 2019

महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अम्बेडकर



मधु लिमये
            मुझे यह कहते हुये जरा भी संकोच नहीं होता है कि सामाजिक न्याय और समता के लिए हो रहे संघर्ष में मैं उनके साथ खड़ा हूँ जो जाति के आधार पर दलित हैं और पिछड़े हुये हैं | लेकिन इसके साथ ही साथ मैं यह भी बता देना चाहता हूँ की दलित वर्ग के ऐसे नेताओं का विरोधी भी हूँ जो आये दिन बिना प्रायोजन के महात्मा गांधी को बुरा भला कहते हैं |
            मैं स्वयं ऐसे लोगों को, जिनमें महात्मा ज्योति बा फुले, नारायण गुरु, रामास्वामी पेरियार, डॉ. अम्बेडकर और राम मनोहर लोहिया का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, श्रद्धा की दृष्टि से देखता हूँ | क्योंकि इन महापुरुषों ने सामाजिक बराबरी के सन्दर्भ में वर्ण विहीन और जाती विहीन समाज की रचना के लिए संघर्ष किया था, आन्दोलन किया था | लेकिन मेरे द्वारा इन महापुरुषों की प्रशंसा करने का अर्थ यह कदापि नहीं होता कि विश्व की पीड़ित मानवता के प्रतिनिधि महात्मा गांधी का मैं अपमान करने वालों में हूँ | उन्होंने अछूतों, महिलाओं, गरीब किसानों और शोषित-पीड़ित मजदूरों के प्रति हो रहे अन्यायों को चुनौती के रूप में स्वीकारा था और प्रतिकार स्वरुप उन्हें नेतृत्व प्रदान किया | उन्होंने भारत में अनेक धर्मों और सम्प्रदायों में विभाजित लोगों के बीच शांति और एकता स्थापित करने की दिशा में काम किया था | उन्होंने दलित वर्ग को, जो अस्त्र-शास्त्र विहीन था, सविनय अवज्ञा का शक्तिशाली शास्त्र दिया | अम्बेडकर की भांति वे भी विश्व नागरिकता के प्रवक्ता थे | उनकी मांग थी कि पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और महिलाओं को मताधिकार मिले | पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों के कतिपय नेता महात्मा गांधी के ऊपर झूठ-मूठ का आरोप लगाते हैं कि सन 1931-32 में उन्होंने शूद्रों को मताधिकार देने का विरोध किया था और जब ब्रिटिश सरकार ने मताधिकार दे दिया तो उन्होंने इसके विरोध में 18 अगस्त 1932 को अपना अनशन प्रारम्भ कर दिया |
            ऐसा नेता जिसने इस तरह के उजड्डपने का महात्मा गांधी के ऊपर आरोप लगाया, शायद उसे वस्तु स्थिति का ज्ञान नहीं है और उसका ऐसा आरोप अफवाहों पर ही आधारित है | यदि ऐसा है तो उसे अपनी भूल को सुधार लेना चाहिए और यदि उसने जान बुझकर ऐसा आरोप लगाया तो मैं कह सकता हूँ कि उनका ऐसा आरोप पूर्व विचारित एवं पूर्वाग्रह से प्रेरित है | ऐसे आरोप से दलित वर्ग को, जो ब्राह्मणवाद की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है, मुक्ति नहीं मिलेगी जबकि ऐसा कहने वाला नेता यह कहता है कि वह मुक्ति दिलाने के लिए पूर्ण समर्पित है |
            अब मैं मताधिकार के सवाल पर महात्मा गांधी और डॉ. अम्बेडकर के विचारों को एक जगह प्रस्तुत करना चाहूँगा | मांटेग्यू चेम्सफोर्ड की सुधार योजना विचारार्थ प्रस्तुत थी | साउथब्रो सामिति के समक्ष दलितों को मताधिकार दिलाने के पक्ष में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने बड़े ही जोश-खरोश में उनका पक्ष प्रस्तुत करते हुये, जो विशेष रूप से उल्लेखनीय है, कहा था, "वे लोग, जो मताधिकार की परिधि को कम करने का विचार बना चुके हैं, ऐसा सोच रहे हैं कि सिर्फ प्रज्ञावान ही मताधिकार का सही उपयोग कर सकता है, गलत है | क्योंकि मताधिकार का उपयोग अपने आप में एक शिक्षण है |"
            और लगभग 10 वर्ष बाद साइमन कमीशन के समक्ष जब डॉ. अम्बेडकर उपस्थित हुये तो उन्होंने अपने पूर्व विचारों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुये तत्कालीन मताधिकार के सन्दर्भ में संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र के लिए स्वीकृति दी | इसे निम्नलिखित अंशों द्वारा द्वारा देखना न्यायपूर्ण होगा -
            कर्नल लेनफाक्स : आपने अपने प्रत्येक स्मृति पत्र के द्वारा दलित वर्ग के लिए विशेष प्रतिनिधित्व देने के       लिए मांग की है | अब आप बालिग मताधिकार की मांग कर रहे हैं | आप जानते हैं कि बालिग मताधिकार की मांग बहुत बड़ी मांग है | इस मांग में वे लोग भी आते हैं जो आदमी जनजातियों के हैं और अपराध कर्मी जाति के भी हैं | आपकी मांग बड़े समुदाय के लिए या छोटे समुदाय के लिए है ?
            डॉ. अम्बेडकर : मैंने मताधिकार की मांग उनके लिए की है जो दलित वर्ग के हैं |
            कर्नल लेनफाक्स : तो क्या आदिम जन-जातियों और अपराधकर्मी जातियों के लिए भी ?
           डॉ. अम्बेडकर : मेरा विचार है कि ऐसे लोगों को वर्त्तमान में मताधिकार देना संभव नहीं होगा | यदि बालिग़     मताधिकार दिया जाता है तो हमारी मांग है कि हमें सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र भी दिया जाये |
            अध्यक्ष : और अगर बालिग मताधिकार नहीं मिला तो ?
            डॉ. अम्बेडकर : ऐसी स्थिति में हम पृथक निर्वाचन क्षेत्र की मांग करेंगे | 
            मई, 1946 तक आते-आते डॉ. अम्बेडकर ने आदिम जनजातियों को मताधिकार दिये जाने का निरंतर विरोध करना शुरू कर दिया | उनका विरोध इस आधार पर था | "आदिम जन जातियों में राजनैतिक ज्ञान का अभाव हैं जबकि राजनैतिक शक्ति का अपने हित में इस्तेमाल करने के लिए राजनैतिक ज्ञान का होना जरुरी हैं |" उन्होंने यह भी कहा कि वह सम्पूर्ण पीड़ित जनता का नेतृत्व करते हैं | जीवन बड़ा ही थोड़ा है | उनकी शारीरिक उर्जा चुक गयी है | इसलिए उन्होंने अपने को सिर्फ अछूतों तक ही सीमित कर लिया है | हालाँकि इसके लिए और भी जरुरी बहुत से कारण थे |
            महात्मा गाँधी ने अनुसूचित जातियों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाने के विचार का विरोध किया था, मगर इन्हें बालिग मताधिकार दिलाने के वे प्रबल पक्षधर थे | सन 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में आर्थिक परिवर्तनों और मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में जो प्रस्ताव पारित हुआ था उसे महात्मा गांधी ने स्वयं लिखा था और उस प्रस्ताव में इसका उल्लेख है कि सभी को बालिग मताधिकार, दासता से मुक्ति और निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था आजाद भारत में की जायेगी |
            सन 1928 में कलकाता में कांग्रेस का जो अधिवेशन हुआ था, उसमें महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरु के प्रतिवेदन, जिसमें सभी को बालिग मताधिकार देने का प्रस्ताव था, का जोरदार समर्थन किया था | 16 जुलाई, 1931 को 'यंग इंडिया' में महात्मा गांधी ने अपने एक लेख में लिखा था कि सांप्रदायिक समस्या, जिसकी नींव डाली जा चुकी है, को सुलझाने के लिए कांग्रेस योजना सभी वर्गों के बालिगों के लिए चाहे पुरुष हों या स्त्री, मताधिकार और संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र के लिए होनी चाहिए और जब भविष्य में भारत का संविधान निर्मित होगा उसमें इसका साफ़ तौर से उल्लेख होगा |
            गोलमेज सम्मेलन में संघीय ढांचा समिति के समक्ष महात्मा गांधी ने कहा था, "मैं बालिग मताधिकार से बंधा हुआ हूँ | बालिग मताधिकार एक बहुत बड़ी आवश्यकता है | कारण यह है कि इससे मैं अपने आप को समर्थ पाता हूँ कि उन लोगों की, सिर्फ मुसलमानों की ही नहीं वरन तथाकथित अछूतों और मेहनतकश ईसाईयों की भी आकांक्षाओं को संतुष्ट कर सकूँगा |" महात्मा गांधी ने यह भी कहा कि, "मैं नहीं चाहता हूँ कि सिर्फ धनिकों और साक्षरों को ही मताधिकार मिले | कुछ उदाहरण के तौर पर गरीबों में भी उच्चस्तर के लोग होते हैं | अगर धन को ही मताधिकार का मापदंड माना जाता है तो मैं बहुत दिनों तक इसके लिए प्रतीक्षा नहीं करूँगा |"
            हैराल्ड लास्की, जे. एस. होराबीन, एच. एन. वेल्स फोर्ड और दूसरों के साथ एक बातचीत के अवसर पर 3 दिसम्बर, 1931 को महात्मा गांधी ने कहा था, "जब तक सभी को बालिग मताधिकार नहीं मिलता मुझे संतोष नहीं होगा | एक ही झटके में दलितों को मैं ऐसे शक्तिशाली शास्त्रों से लैस कर दूंगा |" ऐसा नहीं कि महात्मा गांधी के ये विचार बाद में पैदा हुये, अपितु जीवन के प्रारम्भ काल से ही इन विचारों के बिज उनमें थे | सिर्फ अहिंसा और पीड़ित मानवता की सेवा की भावना और आदर्श ही बाद में उनमें उत्पन्न हुआ | अन्य बहुत से सवालों पर महात्मा गांधी ने विचार बनाया और सार्वजनिक जीवन में प्रयोग करते हुए उसे बदल भी दिया |
            बचपन में उन्होंने वर्णव्यवस्था का समर्थन किया था लेकिन बाद में वे इस तरह बदल गए कि बिना भेदभाव के उन्होंने सवर्णों और हरिजनों के बीच अंतर्जातीय शादी को प्रोत्साहित किया | महात्मा गांधी का यह कर्म हम सभी को दलितों की सेवा करना और उनसे शक्ति अर्जित करने की प्रेरणा देता है | ठक्कर बापा उन अनेक लोगों में से एक हैं जिन्होंने भारतीय संविधान के अस्तित्व में आ जाने के बाद दलितों की मदद करनी शुरू कर दी | पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों से सम्बंधित भारतीय संविधान में उल्लिखित सभी प्रावधानों को लागू करने के लिए उन्होंने सरकार पर भारी दबाव डालने का काम किया था | यह हम लोगों का कर्तव्य है कि हम उन सभी लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करें जिन्होंने दलितों और शोषितों के उद्धार के लिए संघर्ष किया है |
            यह तो महात्मा गांधी का ही प्रभाव था जिसकी वजह से बहुत से नेताओं को बालिग़ मताधिकार स्वीकार करना पड़ा और जिसका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 अंतर्गत अनुसूचित जातियों और जन जातियों के लिए आबादी के अनुपात में निर्वाचन क्षेत्रों को सुरक्षित किए जाने का उल्लेख है | इसी अनुच्छेद के अनुसार लोकसभा में सदस्यों की कुल संख्या के 1/5 से ज्यादा सदस्य अनुसूचित जाती और जन जाती से आते हैं | हमारे जैसे लोग महात्मा गांधी के वर्ण व्यवस्था समर्थक विचार, जो उनके प्रारंभिक दिनों में था, को मान्यता नहीं देते हैं और न तो डॉ. अम्बेडकर के उन विचारों को मान्यता देते हैं, जबकि उन्होंने सन 1928 से 1946 तक आदिवासियों और तथाकथित अपराधकर्मी जातियों को बालिग मताधिकार देने का विरोध किया था |
            भारतीय संविधान, जो डॉ. अम्बेडकर के देखरेख में लिखा गया था, में अनुसूचित जाति और जन जातियों को उच्च सदन और निचले सदन में बराबर प्रतिनिधित्व दिया गया है और न सिर्फ इसी क्षेत्र में अपितु राजकीय सेवाओं में भी आरक्षण प्रदान किया गया है | इसलिए राष्ट्र का कर्तव्य होता है कि महात्मा गांधी और डॉ. अम्बेडकर दोनों विभूतियों को उचित सम्मान दे | 

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