Monday, 15 April 2019

जलियांवाला बाग : कुर्बानी के सौ साल



प्रेम सिंह



आज 13 अप्रैल 2019 को जलियांवाला बाग नरसंहार का सौवां साल है. वह बैसाखी के त्यौहार का दिन था. आस-पास के गावों-कस्बों से हजारों नर-नारी-बच्चे अमृतसर आये हुए थे. उनमें से बहुत-से लोग खुला मैदान देख कर जलियांवाला बाग में डेरा जमाए थे. रौलेट एक्ट के विरोध के चलते पंजाब में तनाव का माहौल था. तीन दिन पहले अमृतसर में जनता और पुलिस बलों की भिड़ंत हो चुकी थी. पुलिस दमन के विरोध में 10 अप्रैल को 5 अंग्रेजों की हत्या और मिस शेरवूड के साथ बदसलूकी की घटना हुई थी. कांग्रेस के नेता डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू गिरफ्तार किये जा चुके थे. शाम को जलियांवाला बाग में एक जनसभा का आयोजन था जिसमें गिरफ्तार नेताओं को रिहा करने और रौलेट एक्ट को वापस लेने की मांग के प्रस्ताव रखे जाने थे. इसी सभा पर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर (जिन्हें पंजाब के लेफ्टीनेंट गवर्नर माइकेल फ्रांसिस ओ'ड्वायर ने अमृतसर बुलाया था) ने बिना पूर्व चेतावनी के सेना को सीधे गोली चलाने के आदेश दिए. सभा में 15 से 20 हजार भारतीय मौजूद थे. उनमें से 500 से 1000 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए. फायरिंग के बाद जनरल डायर ने घायलों को अस्पताल पहुँचाने से यह कह कर मना कर दिया कि यह उनकी ड्यूटी नहीं है! 13 अप्रैल को अमृतसर में मार्शल लॉ लागू नहीं था. मार्शल लॉ नरसंहार के तीन दिन बाद लागू किया गया जिसमें ब्रिटिश हुकूमत ने जनता पर भारी जुल्म किए.

जनरल डायर ने जो 'ड्यूटी' निभायी उस पर चश्मदीदों, इतिहासकारों और प्रशासनिक अधिकारियों ने, नस्ली घृणा से लेकर डायर के मनोरोगी होने तक, कई नज़रियों से विचार किया है. ब्रिटिश हुकूमत ने जांच के लिए हंटर कमीशन बैठाया और कांग्रेस ने भी अपनी जांच समिति बैठाई. इंग्लैंड में भी जनरल डायर की भूमिका की जांच को लेकर आर्मी कमीशन बैठाया गया. इंग्लैंड के निचले और उंचले सदनों में में भी डायर द्वारा की गई फायरिंग पर चर्चा हुई. हालांकि निचले सदन में बहुमत ने डायर की फायरिंग को गलत ठहराया लेकिन उंचले सदन में बहुमत डायर के पक्ष में था. इंग्लैंड के एक अखबार ने डायर की सहायता के लिए कोष की स्थापना की जिसमें करीब 70 हज़ार पौंड की राशि इकठ्ठा हुई. भारत में रहने वाले अंग्रेजों और ब्रिटेन वासियों ने डायर को  'राज' की रक्षा करने वाला स्वीकार किया.

जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि ट्रेन से लाहौर से दिल्ली लौटते हुए उन्होंने खुद जनरल डायर को अपने सैन्य सहयोगियों को यह कहते हुए सुना कि 13 अप्रैल 1919 को उन्होंने जो किया बिलकुल ठीक किया. जनरल डायर उसी डिब्बे में हंटर कमीशन के सामने गवाही देकर लौट रहे थे. जनरल डायर ने अपनी हर गवाही और बातचीत में फायरिंग को, बिना थोड़ा भी खेद जताए, पूरी तरह उचित ठहराया. ऐसे संकेत भी मिलते हैं कि उन्होंने स्वीकार किया था कि उनके पास ज्यादा असला और सैनिक होते तो वे और ज्यादा सख्ती से कार्रवाई करते. इससे लगता है कि अगर वे दो आर्मर्ड कारें, जिन्हें रास्ता तंग होने के कारण डायर जलियांवाला बाग के अंदर नहीं ले जा पाए, उनके साथ होती तो नरसंहार का पैमाना बहुत बढ़ सकता था!

हंटर कमीशन की रिपोर्ट और अन्य साक्ष्यों के आधार पर जनरल डायर को उनके सैन्य पद से हटा दिया गया. डायर भारत में ही जन्मे थे. लेकिन वे इंग्लैंड लौट गए और 24 जुलाई 1927 को बीमारी से वहीँ उनकी मृत्यु हुई. क्रांतिकारी ऊधम सिंह ने अपने प्रण के मुताबिक 13 मार्च 1940 को माइकेल ओ'ड्वायर की लंदन के काक्सटन हॉल में गोली मार कर हत्या कर दी. ऊधम सिंह वहां से भागे नहीं. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 31 जुलाई  1940 को फांसी दे दी गई. ऊधम सिंह का पालन अनाथालय में हुआ था. वे भगत सिंह के प्रशंसक और हिंदू-मुस्लिम एकता के हिमायती थे. बताया जाता है कि अनाथालय में रहते हुए उन्होंने अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आज़ाद रख लिया था.     

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोरे ने 'नाईटहुड' और गाँधी ने 'केसरेहिंद' की उपाधियां वापस कर दीं. इस घटना के बाद भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने नए चरण में प्रवेश किया. करीब तीन दशक के कड़े संघर्ष और कुर्बानियों के बाद देश को आज़ादी मिली. भारत का शासक वर्ग वह आज़ादी सम्हाल नहीं पाया. उलटे उसने देश को नए साम्राज्यवाद की गुलामी में धकेल दिया है. 'आज़ाद भारत' के नाम पर केवल सम्प्रदायवाद, जातिवाद, परिवारवाद, व्यक्तिवाद और अंग्रेज़ीवाद बचा है. इसी शासक वर्ग के नेतृत्व में भारत के लोग नवसाम्राज्यवादी लूट में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा पाने के लिए एक-दूसरे से छीना-झपटी कर रहे हैं. कहा जा रहा है यही 'नया इंडिया' है, इसे ही परवान चढ़ाना है!

जलियांवाला बाग की कुर्बानी के सौ साल का जश्न नहीं मनाना है. साम्राज्यवाद विरोध की चेतना को सलीके से बटोरना और सुलगाना है. ताकि शहीदों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं चली जाए. इस दिशा में सोशलिस्ट पार्टी आज से साल भर तक कुछ कार्यक्रमों का आयोजन करेगी. उनमें साथियों की सहभागिता और सहयोग की अपेक्षा रहेगी. जलियांवाला बाग के शहीदों को सलाम!                                   

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