Friday, 29 September 2017

'भारतीय रेल बचाओ' धरना

29 सितम्बर 2017

प्रेस नोट/निमंत्रण
'भारतीय रेल बचाओ' धरना

     
    
  चाहे सफ़र हो या माल की ढुलाई, भारतीय रेल सेवा पूरे देश की सामाजिक-आर्थिक जीवन-रेखा है. दुनिया की सबसे बड़ी रेल सेवाओं में से एक भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक उद्यम है.    अंग्रेजों ने भारत के आर्थिक शोषण और अपने साम्राज्य की मजबूती के लिए रेल का बखूबी इस्तेमाल किया. आजाद भारत में रेल सेवा का निर्माण और विस्तार देश की संपर्क व्यवस्था, अर्थ व्यवस्था और सैन्य व्यवस्था को मज़बूत बनाने के उद्देश्य से किया गया. भारतीय रेल सेवा के निर्माण में देश के बेशकीमती संसाधन और करोड़ों लोगों की मेहनत लगी है.
      देश की उन्नति के लिए सभी नागरिकों के लिए सुरक्षित, सुविधाजनक और समय-बद्ध रेल सेवा सबसे पहली शर्त है. यह सरकार का काम है. लेकिन सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाय रेलवे को पूंजीपतियों के हवाले करने में लगी है. भाजपा सरकार ने रेल बज़ट को आम बज़ट के साथ मिलाने, और पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (पीपीपी) की आड़ में 23 रेलवे स्टेशनों को प्राइवेट हाथों में बेचने का फैसला करके रेलवे के निजीकरण की ठोस शुरुआत कर दी है.
      तर्क वही दिए जा रहे हैं जो दूसरे पब्लिक सेक्टर के उद्यमों को प्राइवेट सेक्टर को बेचने पर दिए जाते हैं - कार्यकुशलता का अभाव और घाटा.रेलवे में खाली पड़े लाखों पदों को भरने, ज़रुरत के मुताबिक नई रेल पटरियां बिछाने, खस्ताहाल पटरियों का नवीकरण करने, सुरक्षा, सुविधा और समय-बद्धता के पुख्ता उपाय करने के बजाय सरकार कार्यकुशलता की कमी और घाटे का ठीकरा रेलवे पर फोड़ रही है. सरकार की रणनीति है कि पहले पब्लिक सेक्टर को बदनाम करो और फिर प्राइवेट सेक्टर को बेच दो.
      
सरकार का जापान से एक लाख करोड़ का क़र्ज़ लेकर मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने का हवा-हवाई फैसला भारत की गरीब जनता के साथ एक क्रूर मजाक है. साथ ही वह शासक वर्ग की क़र्ज़ लेकर घी पीने की मानसिकता को दर्शाता है.        
                सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि किसी भी रूप में रेलवे के निजीकरण का कोई भी फैसला संविधान-विरोधी और जनता-विरोधी है. रेलवे का निजीकरण पब्लिक सेक्टर के बाकी उद्यमों से अलग है. रेलवे देश की ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था, समन्वित संस्कृति, शिक्षा और आंतरिक सुरक्षा से गहराई से जुड़ा है. सरकार ने रेलवे बेच दिया तो समझो देश बेच दिया.
      इस गंभीर संकट के मद्देनज़र  सोशलिस्ट पार्टी ने रेलवे को बेचने के सरकार के फैसले के खिलाफ पूरे देश में जागरूकता अभियान चलाया है. इस अभियान की शुरुआत 22 जून 2017 को दिल्ली में मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक 'भारतीय रेल बचाओ' मार्च का आयोजन करके की गई. उसी कड़ी में 2 अक्टूबर 2017 को दिल्ली के जंतर मंतर पर दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक 'भारतीय रेल बचाओ' धरना आयोजित किया गया है.
                
धरने में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर, नोर्दर्न रेलवे मेंस यूनियन के महामंत्री कामरेड शिवगोपाल  मिश्रा, सांसद अली अनवर, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के अध्यक्ष राजीब रे, दिल्ली विश्वविद्यालय अकेडमिक कौंसिल के सदस्य डॉ. शशि शेखर सिंह, वरिष्ठ समाजवादी नेता राजकुमार जैन, अरुण श्रीवास्तव, श्याम गंभीर, हरीश खन्ना, सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह, उपाध्यक्ष रेणु गंभीर, महासचिव मंजू मोहन, संगठन मंत्री फैज़ल खान, सोशलिस्ट पार्टी दिल्ली प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष सैयद तहसीन अहमद, उपाध्यक्ष शऊर खान, तृप्ति नेगी, महासचिव योगेश पासवान, सचिव शाहबाज़ मलिक, सोशलिस्ट युवजन सभा (एसवाईएस) के अध्यक्ष नीरज कुमार, महासचिव बन्दना पाण्डेय, एसवाईएस दिल्ली प्रदेश के सचिव राम नरेश समेत बड़ी संख्या में सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, लेखक-पत्रकार-बुद्धिजीवी और छात्र शामिल होंगे.
      धरने की समाप्ति पर राष्ट्रपति को रेलवे का निजीकरण रोकने के लिए ज्ञापन दिया जाएगा.
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम को कवर करने के अपने अखबार-पत्रिका-चैनल के रिपोर्टर/टीम को भेजने की कृपा करें.        

सोशलिस्ट पार्टी का नारा समता और भाईचारा


डॉ. प्रेम सिंह
अध्यक्ष
(मोबाइल : 8826275067)    

'Save Indian Railways' Dharna by Socialist Party

29 September 2917
Press Note/Invitation



Be it travel or freight transport, Indian Railways is the socio-economic lifeline of the country. Among the largest rail services in the world, Indian Railway is also the biggest public sector enterprise in the country. The British used the Railway very astutely to exploit the country in order to consolidate their empire. The railway services were built and expanded in free India with the view to strengthen communication networks, economy and defense networks.  Invaluable resources and labour of crores of Indian people went into building the Indian Railways.

A safe, convenient and time-bound rail service is the first condition for the progress of the country. This is the job of the government. But this government instead of fulfilling its responsibilities, is busy handing over the Railways to the capitalists. By the decision of merging the Railway Budget with the General Budget, and by the decision to sell 23 railway stations to private bidders in the garb of public-private partnership (PPP), the BJP has made a solid beginning of privatizing Railways.

          The arguments given are the same ones that are given for selling public sector enterprises into private hands - lack of efficiency and losses. Instead of filling the lakhs of vacant positions in the Railways or laying new tracks as needed, or repairing worn out tracks or ensuring proper systems for safety, security and punctuality; the government is making the Railways the scapegoat for inefficiency and losses. It is the government’s strategy to first defame the public sector and then to sell it to the private sector.

          The government’s whacky decision to run a bullet train between Mumbai and Ahmedabad after incurring a debt of one lakh crores from Japan, is a cruel joke with the poor public. Besides, it also exposes the ruling elite’s mentality of indulging itself at the cost of others.      

          
The Socialist Party believes that the privatisation of Indian Railways in any form is unconstitutional and anti-people. The privatisation of Indian Railways is different from the privatisation of any other public sector undertaking. The Railways is intrinsically connected with rural and urban economy, composite culture, education and internal security. If the government sells the Railways, it is as if it sells the country.

          In view of this serious calamity, the Socialist Party has launched a nation-wide awareness campaign against the government’s decision to sell the Railway. This campaign was inaugurated by a ‘Save Indian Railways’ march from Mandi House to Jantar-Mantar in Delhi on 22 June 2017. In that series a ‘Save Indian Railways’ Dharna has been organized at Jantar-Mantar on 2 October 2017 from 12.00 to 5.00 pm.
          Kuldip Nayar (veteran journalist), comrade Shiv Gopal Mishra (general secretary, Northern Railway Men's Union), Ali Anwar (Member Parliament), Rajeeb Ray (president DUTA), Dr. Shahsi Shekhar Singh (member, Academic Council, Delhi University), senior socialist leaders Raj Kumar Jain, Arun Srivastav, Shyam Gambhir, Dr. Harish Khanna, Dr. Prem Singh (president, Socialist Party), Renu Gambhir (vice president), Manjoo Mohan (general secretary), Faizal Khan (organising secretary), Syed Tahseen Ahmed (acting president Socialist Party Delhi Pradesh), Shaoor Khan (vice president), Tripti Negi (vice president), Yogesh Paswan (general secretary), Shahbaz Malick (secretary), Niraj Kumar (president, Socialist Yuvjan Sabha), Bandana Pandey (general secretary), Ram Naresh (secretary, SYS, Delhi Pradesh), social-political activists, writers-intellectuals-journalists and students in large numbers will participate in dharna.
          A memorandum will be given to the President at the end of dharna requesting him to stop the privatisation of the railways.
          Kindly send reporter/team of your newspaper-magazine-channel to cover this important program.  
  

           
Thus Stands the Socialist Party
Upholding Brotherhood and Equality


Dr. Prem Singh
President  

Thursday, 28 September 2017

सोशलिस्ट पार्टी ने रेलवे स्टेशनों को बेचने के विरोध में भारतीय रेल बचाओ धरना

सोशलिस्ट पार्टी ने रेलवे स्टेशनों को बेचने के विरोध में भारतीय रेल बचाओ धरना


पिछले कुछ सालों से शासक वर्ग रेलवे के निजीकरण की कोशिशों में लगा है. मौजूदा भाजपा सरकार ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की आड़ में रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में बेचने की पहल करके पूरी रेलवे का निजीकरण करने की मंशा साफ़ कर दी है. 
सोशलिस्ट पार्टी ने सरकार के इस संविधान-विरोधी और जन-विरोधी फैसले के खिलाफ पूरे देश में जागरूकता अभियान चलाने का फैसला किया है. इस अभियान के तहत पार्टी के कार्यकर्त्ताओं ने 22 जून को सोशलिस्ट पार्टी दिल्ली प्रदेश के कार्यकर्ताओं ने मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक 'भारतीय रेल बचाओ' मार्च करके किया. पुनः इस अभियान को गाँव मोहल्लों में सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट युवजन सभा के कार्यकर्ता लेकर जा रहे हैं नागरिकों को रेलवे के निजीकरण के पक्ष में दिए जाने वाले समर्थकों के तर्कों की असलियत समझा रहे हैं . 2 अक्टूबर को 'भारतीय रेल बचाओ' धरने का आयोजन,जंतर-मंतर, दोपहर 12 बजे से 5 बजे तक सोशलिस्ट पार्टी कर रही है | आइये हम सब मिलकर इस अभियान का हिस्सा बने और सरकार के इस संविधान-विरोधी और जन-विरोधी फैसले के खिलाफ अपनी आवाज मजबूत करें |








Tuesday, 26 September 2017

जाति और योनि के दो कटघरे



डॉ. राममनोहर लोहिया


     
दुनिया में सबसे अधिक उदास हैं हिन्दुस्तानी लोग | वे उदास हैं, क्योंकि वे ही सबसे ज्यादा गरीब और बीमार भी हैं | परन्तु उतना ही बड़ा एक और कारन यह भी है कि उनकी प्रकृति में एक विचित्र झुकाव आ गया है, ख़ास करके उनके इधर के इतिहासकाल में बात तो निर्लिप्तता के दर्शन की करते हैं जो तर्क में और विशेषतः अंतर्दृष्टि में निर्मल है, पर व्यवहार में वे भद्दे ढंग से लिप्त रहते हैं | उन्हें प्राणों का इतना मोह है कि किसी बड़े प्रयत्न करने की जोखिम उठाने के बजाय वे दरिद्रता के निम्नतम स्तर पर जीना ही पसंद करते हैं, और उनके पैसे और सता के लालच का क्या कहना कि दुनिया के और कोई लोग उस लालच का इतना बड़ा प्रदर्शन नहीं करते |

      आत्मा के इस पतन के लिए, मुझे यकीन है, जाती और औरत के दोनों कटघरे मुख्यतः जिम्मेदार हैं | इन कटघरों में इतनी शक्ति है कि साहसिकता और आनंद की समूची क्षमता को ये ख़त्म कर देते हैं | जो लोग यह सोचते हैं कि आधुनिक अर्थतंत्र के द्वारा गरीबी मिटाने के साथ ही साथ ये कटघरे अपने-आप ख़त्म हो जायेंगे, बड़ी भारी भूल करते हैं | गरीबी और ये दो कटघरे एक-दुसरे के कीटाणुओं पर पनपते हैं |

      जब तक, साथ ही साथ, इन दो कटघरों को ख़त्म करने का सचेत और निरंतर प्रयत्न नहीं किया जाता तब तक गरीबी मिटाने का प्रयत्न छल-कपट है |

      भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति ने पुण्य नगरी बनारस में सार्वजनिक रूप से दो सौ ब्राह्मणों के पैर धोए | सार्वजनिक रूप से किसी के पैर धोना अश्लीलता है, इस अश्लील काम को ब्राह्मण जाती तक सीमित करना दंडनीय अपराध माना जाना चाहिए, इसे विशेषाधिकार प्राप्त जाती में अधिकांशतः ऐसों को सम्मिलित करना जिनमें न योग्यता हो न ही चरित्र, विवेक-बुद्धि का पूरा परित्याग है, जो कि जाती-प्रथा और पागलपन का अवश्यंभावी अंग है |

      राष्ट्रपति इस अश्लीलता का प्रदर्शन कर सके, यह मुझ जैसे लोगों पर बड़ा अभियोग है जो कि सिर्फ नपुंसक गुस्से में ही उबल सकते हैं |

      इस अपराध में उन दो सह-अपराधियों के बारे में मैं ज्यादा नहीं कहूँगा, जो उतर प्रदेश के शक्तिशाली स्थानों पर हैं | उनमें से एक तो बच्चों की तरह मचल रहे हैं कि बनारास उन्हें ब्राह्मण के रूप में मान्यता दे और दुसरे शायद हार कर बैठ गए हैं और अब हिंदुवाद की निम्नतम एकता को उसके विमर्श और संस्कृति कि उच्चतम चोटी समझ रहे हैं |

      इधर कुछ वर्षों में बनारस ने एक बुराई को जन्म दिया है, जिसमें कि द्विजों के दुसरे समूहों को ब्राह्मण का पद प्रदान करने का प्रयास होता है और जिसमें, जिसे वे 'कर्मणा ब्राह्मण' कहते हैं, उनके हित में जन्मना ब्राह्मण की भर्त्सना होती है | इस लत में पड़े लोगों की ब्राह्मण के प्रति एक विचित्र संकीर्णता होती है | उन्हें वे या तो अपमानित करते है या पूजते हैं | जो जन्म से ब्राह्मण होते हैं, उनके साथ ऐसे बनिये और कायस्थ बराबरी का स्वाभाविक मानवी सम्बन्ध बना ही नहीं पाते |

      मैं यह बतला दूँ कि इस घिनौने काम का पूरा किस्सा मुझे एक ब्राह्मण ने ही बतलाया | उसे उन दो सौ में सम्मिलित किया गया था | वही अकेला था जो अपने देश के राष्ट्रपति द्वारा पैर धुलवाने के नीच कर्म का अपराधी बनने के पहले ही येन मौके पर ग्लानी से भरकर अलग हो गया | उसकी जगह फ़ौरन ही दुसरे आदमी को दे दी गई |

      संस्कृत के इस गरीब अध्यापक को मैं हमेशा श्रद्धा से याद रखूँगा | इस भयंकर राक्षसी नाटक में वही तो एक मात्र मनुष्य था | ऐसे ही नर और नारियां, जो हालाँकि जन्म से ब्राह्मण हैं, दक्षिण के विकृत ब्राह्मण विरोध से समूचे देश को डूबने से बचा रहे हैं |

      बनारस और दूसरी जगहों के ऐसे ब्राह्मणों को मैं चेतावनी देना चाहता हूँ, जो मानवी आत्मा और भारतीय गणतंत्र के इस पतन से फुले नहीं समाते |

      बुरे कर्मों और उनमें मजे लुटने से पलटकर थप्पड़ लगती है |

      इस आधार पर कि कोई ब्राह्मण है, किसी के पैर धोने का मतलब होता है जाति-प्रथा, गरीबी और दुःख-दर्द को बनाये रखने कि गरंटी करना | इससे नेपाल बाबा और गंगाजली की सौगंध दिलाकर वोट लेना सब एक जंजीर है |

      वह आत्मा, जिससे कि ऐसे बुरे कर्म उपजते हैं, कभी भी न तो देश के कल्याण की योजना बना सकती हैं न ही ख़ुशी से जोखिम उठा सकती है |वह हमेशा लाखों-करोड़ों को दबे और पिछड़े बनाए रखेगी | जितना कि वह उन्हें आध्यात्मिक समानता से वंचित रखती है, उतना ही वह उन्हें सामाजिक और आर्थिक समानता से वंचित रखेगी |

      वह देश की खेती या कारखाने नहीं सुधार सकती, क्योंकि वह कूड़े के ढेर और गंदे तालाबों की मामी-मौसी है, जहाँ कीड़े और मच्छर पैदा होते हैं, भले ही वह ऊँची जाति के बड़े लोगों के घरों के चारों तरफ 'डी.डी.टी' का इस्तेमाल करे | खटमल, मच्छर, अकाल और सार्वजनिक रूप से ब्राह्मणों के पैर धोना एक-दुसरे के पोषक हैं | वे मन में भी एक प्रकार के व्यभिचार का पोषण करते हैं, विचार-क्षेत्र में एक प्रकार का अंतर्जन होता है, क्योंकि अलग-अलग धंधों में लगे और विभिन्न स्तरों पर जन्में लोगों के बीच खुलकर बातचीत करने की बात ख़त्म हो जाती है |

      उस देश में जिसका राष्ट्रपति ब्राह्मणों के पैर धोता है, एक भयंकर उदासी छा जाती है, क्योंकि वहां कोई नवीनता नहीं होती, पुजारिन और मोची, अध्यापक और धोबिन के बीच खुलकर बातचीत नहीं हो पाती है |

      कोई अपने राष्ट्रपति से मतभेद रख सकता है या उसके तरीकों को विचित्र समझ सकता है, पर वह उनका सम्मान करना चाहेगा, पर इस तरह के सम्मान का अधिकारी बनने के लिए राष्ट्रपति को सभ्य आचरण के मूलभूत नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए |

      नर और नारी के बीच सामाजिक संबंधों के बारे में राष्ट्रपति के विचारों पर एक अप्रकाशित आलोचना लिखने का इससे पहले भी मुझे अवसर मिला था, किन्तु तब वे पूरी तौर पर मेरे आदर से वंचित नहीं हुए थे | भाई भाई को मारने वाले इस अकाट्य काम से वे अब मेरे आदर से वंचित हो गए हैं, क्योंकि जिसके हाथ सार्वजनिक रूप से ब्राह्मणों के पैर धो सकते हैं, उसके पैर शुद्र और हरिजन को ठोकर भी तो मार सकते हैं |

      श्री राजेंद्र प्रसाद भले ही आज इसकी चिंता न करें कि मेरे जैसे लोगों का उन्हें आदर प्राप्त है या नहीं, क्योंकि अगर समाजवाद और जनतंत्र तक आज हिन्दुस्तान में इतना नपुंसक न होता जितना कि है, तो बनारस के युवजन अपने समूचे अस्तित्व में इस चोट से तड़प उठते और इतने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन करते कि ऐसी अश्लीलता करना असंभव हो जाता |
     
      अब भी ऐसे तरीके हो सकते हैं कि जिनसे राष्ट्रपति सार्वजनिक रूप से इस तरह अपने-आप को गिरने की इजाजत देने के लिए मैं प्रधानमन्त्री और उनकी सरकार को दोषी नहीं ठहराऊंगा |  उन पर तो मेरा आरोप और भी बड़ा है | वह आदमी, जो जाती-प्रथा की समस्या पर अपनी छाप चालाकी से छिपा सकता है, वह और अधिक घातक है |

      यह बात तो लिखी हुई मौजूद है कि पंडित नेहरु ने 'ब्राह्मणों की सेवा-भावना' की तारीफ़ की है | डॉ. राजेंद्र प्रसाद जो कुछ अपने काम से करना चाहते हैं पंडित नेहरु उसे कुछ न करके हासिल कर लेते हैं |

      जाति-प्रथा के विरुद्ध इधर-उधर की और हवाई बातों के अलावा प्रधानमंत्री ने जाति तोड़ने और सबके बीच भाईचारा लाने के लिए क्या किया, इसकी जानकारी दिलचस्प होगी |

      एक बहुत ही मामूली कसौटी पर उसे परखा जा सकता है | जिस दिन प्रशासन और फौज में भर्ती के लिए, और बातों के साथ-साथ, शुद्र और द्विज के बीच विवाह को योग्यता और सहभोज के लिए इंकार करने पर अयोग्यता मानी जायेगी, उस दिन जाति पर सही मायने में हमला शुरू होगा | वह दिन अभी आना है |

      मैं यह साफ़ कर दूँ कि शुद्र और द्विज के बीच विवाह को बनिए और ब्राह्मण इत्यादि के बीच विवाह नहीं समझ लेना चाहिए, क्योंकि ऐसे विवाह काफी आसानी से हो जाते हैं और जाती-प्रथा के अंग ही हैं |

      नागरिक अधिकारों के ऐसे हनन पर पवित्र विरोध का झूठा हल्ला मचाया जा सकता है, जैसे कि पैदायशी समूहों से आदमी को चुनने के इस गंदे रिवाज से नागरिक अधिकारों का हनन नहीं होता | सरकारी नौकरी के लिए अंतर्विवाह को एक योग्यता बनाने का मजाक भी उड़ाया जा सकता है |

      अपनी सुरक्षा और एकता के लिए प्रयत्न करने का और उस भयंकर उदासी को, जिनमें नवीनता रह ही नहीं गई है, दूर करने का अधिकार प्रत्येक राज्य को है |

      यहाँ आदमी से औरत के अलगाव की बात आ गई | जाती और योनि के ये दो कटघरे परस्पर सम्बंधित हैं और एक-दुसरे को पालते-पोसते हैं | बातचीत और जीवन में से सारी ताजगी ख़त्म हो जाती है और प्राणवान रस-संचार खुलकर नहीं होता |

      कॉफ़ी हाउस में बैठकर बातें करने वालों में एक दिन मैं भी बैठा था जब किसी ने कहा कि कॉफ़ी के प्यालों पर होने वाली ऐसी बातचीत ने ही फ्रांस की क्रांति को जन्म दिया था | मैं गुस्से में उबल पड़ा | हमारे बीच एक भी शुद्र नहीं था | हमारे बीच एक भी औरत न थी | हम सब ढीले-ढाले, चुके हुए और निस्तेज लोग थे, कल के खाए चारे की जुगाली करते हुए ढोर की तरह |

      देश की सारी राजनीति में- कांग्रेसी, कम्युनिस्ट अथवा समाजवादी-चाहे जानबूझ कर अथवा परंपरा के द्वारा राष्ट्रीय सहमति का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है, और वह यह कि शुद्र और औरत को, जो कि पूरी आबादी के तीन-चौथाई हैं, दबाकर और राजनीति से अलग रखो |

      औरतों की समस्या निःसंदेह कठिन है | उसकी रसोई की गुलामी तो वीभत्स है, और चूल्हे का धुंआ तो भयंकर है | खाना बनाने के लिए उसका वाजिब समय बाँध देना चाहिए और ऐसी चिमनी भी लगानी चाहिए कि जिसमें से धुंआ बाहर निकल जाए | उसे अपर्याप्त भोजन और बेकारी के खिलाफ आन्दोलन में जरुर हिस्सा लेना चाहिए | किन्तु उसकी समस्या इससे भी आगे हैं |

      भारतीय नारी की स्थिति पर श्रीमती शकुंतला श्रीवास्तव ने इधर बहुत ही सुन्दर लेखमाला लिखी है और यह जानकर मुझे प्रसन्नता हुई कि वे प्रायः स्त्रियों का सारा दोष पुरुषों के मत्थे मढने की प्रवृति से उबर गई हैं और अब यह मानने को तैयार हैं कि औरत और मर्द दोनों अलग-अलग मात्रा में दोषी हैं, लेकिन उन्हें और भी आगे जाना होगा |  

      वह दिन मुझे याद है जब एक महत्वपूर्ण सम्मेलन में उन्हें मंच पर बुलाया जा रहा था और उन्होंने निचे से उठने से इंकार कर दिया था, पर उनका इलाज मेरे पास था | मुझे सिर्फ धमकी देनी पड़ी कि मैं उनकी बांह पकड़कर ले जाऊँगा और वे चुपचाप निचे से उठकर मंच पर आ गई |

      पुण्य क्या है और पाप क्या है? अब इस सवाल से बचा नहीं जा सकता | मैं मानता हूँ कि अध्यात्मिक निरपेक्ष है, किन्तु नैतिकता सापेक्ष है, और हरेक युग और आदमी तक को अपनी-अपनी नैतिकता खोजनी चाहिए |
      एक औरत जिसने अपनी सारी जिन्दगी में सिर्फ एक बच्चे को जन्म दिया हो, चाहे वह अवैध ही क्यों न हो, और दूसरी ने आधे दर्जन या ज्यादा वैध बच्चे जने हों, तो इन दोनों में कौन ज्यादा शिष्ट और ज्यादा नैतिक है ? एक औरत जिसने तीन बार तलाक दिया और चौथी बार वह फिर शादी करती है, और एक मर्द चौथी बार इसलिए शादी करता है कि एक के बाद एक उसकी पत्नियां मर गई हैं, तो इन दोनों में कौन ज्यादा शिष्ट और ज्यादा नैतिक है ?

      मैं इस बात से इंकार नहीं करता कि तलाक और अवैध बच्चे इत्यादि एक मायने में असफलता है और एक पत्नी, एक पति किन्तु पारस्परिक विश्वास शायद वह आदर्श है जो नर-नारी संबंधों में प्राप्त हो | किन्तु, जैसे कि अन्य मानवी क्षेत्रों, इसमें भी प्रायः आदर्श से चूक जाते हैं, जब मर्द या औरत सम्पूर्णता का प्रयास करते हैं |

      तब, मेरे मन में कोई शक नहीं है कि सिर्फ एक अवैध बच्चा होना आधे दर्जन वैध बच्चे होने से कई गुना अच्छा है | उसी तरह इसमें भी कोई शक नहीं कि तीन पत्नियों या पतियों की, सभी की मृत्यु आकस्मिक हो, और अपेक्षा और गरीबी जरुर ही रही होगी, और इस तरह की अपेक्षा उन झगड़ों से कहीं ज्यादा बुरी है, जिनकी वजह से तीन बार या और ज्यादा तालाक हुए हों |

      इन निर्णयों का अब छिटपुट महत्व नहीं हैं | इनका व्यापक प्रभाव हो गया है क्योंकि आज विवाह और उसके बाद से सम्बंधित परिस्थितियां, अगर किसी को पाप कहा जा सकता है तो वे पापपूर्ण हैं | बिना दहेज़ के लड़की किसी मसरफ की नहीं होती, जैसे बिन बछड़े वाली गाय |

      कई माँ-बाप ने आँखों में आंसू भरकर मुझे बताया है कि अगर निश्चित दहेज़ पूरा न दिया तो किस तरह उनकी बेटियों को सताया गया और कभी-कभी मार भी डाला गया | खेती में ऐसी स्थितियां होती हैं जिनमें खुद मेहनत करने के बजाए खेत पट्टे पर दे देने से ज्यादा लाभ होता है | ठीक इसी तरह एक कम पढ़ी-लिखी लड़की ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की से अच्छी मानी जाती है, क्योंकि उस पर दहेज़ कम मिलेगा |

      हिंदुस्तान आज विकृत हो गया है; यौन पवित्रता ; यौन पवित्रता की लम्बी चौरी बातों के बावजूद, आम तौर पर विवाह और यौन के सम्बन्ध में लोगों के विचार सड़े हुए हैं |

      दहेज़ लेने और देने पर निःसंदेह, सजा मिलनी चाहिए, किन्तु दिमाग में और उसके मूल्यों में परिवर्तन होना चाहिए | नाई या ब्राह्मण के द्वारा पहले जो शादियाँ तय की जाती थीं उसकी बनिस्बत फोटू देखकर या सकुचाती, शर्माती लड़की द्वारा चाय की प्याली लाने के दमघोंटू वातावरण में शादी तय करना हर हालत में बेहूदा है | यह ऐसा ही है जैसे किसी घोड़े को खरीदते समय घोड़ा ग्राहक के सामने तो लाया जाए, पर न उसके खुर छू सकते हैं न ही उसके दांत गिन सकते हैं |

      आधे रास्ते में कुछ आना-जाना नहीं | हिंदुस्तान को अपना पुराना पौरुष पुनः प्राप्त करना होगा ; यानी, दुसरे शब्दों में, यह कहना हुआ कि उसे आधुनिक बनना चाहिए |

      लड़की की शादी करना मां-बाप की जिम्मेदारी नहीं; अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा दे देने पर उनकी जिम्मेदारी ख़त्म हो जाती हैं | अगर कोई लड़की इधर-उधर घुमती है और किसी के साथ भाग जाती और दुर्घटनावश उसके अवैध बच्चा होता है, तो यह औरत और मर्द के बीच स्वाभाविक सम्बन्ध हासिल करने के सौदे का एक अंग है, और उसके चरित्र पर किसी तरह का कलंक नहीं |

      लेकिन समाज क्रूर है और औरतें तो बेहद क्रूर बन सकती हैं | उन औरतों के बारे में, विशेषतः अगर वे अविवाहित हों और अलग-अलग आदमियों के साथ घुमती-फिरती हो, तो विवाहित स्त्रियाँ उनके बारे में जैसा व्यवहार करती हैं और कानाफूसी करती हैं उसे देखकर चिढ होती है | इस तरह के क्रूर मन के रहते मर्द का औरत से अलगाव कभी ख़त्म नहीं होगा |

      श्री विनोबा भावे को जन्म निरोध पर और जाती-प्रथा पर या कम से कम उसका बढ़ा-चढ़ाकर हवाला देने के अपवित्र विचारों से अपने सामान्य भू-दान आन्दोलन को भ्रष्ट करने का लोभ हुआ है |

      मैं मानता हूँ कि हरेक जोड़ों का, जिसने तीन बच्चे पैदा कर लिए हैं, अनुर्वरीकरण कर देना चाहिए और कि प्रत्येक मर्द और औरत को विवाहित अथवा आविवाहित जो गर्भधारण की जोखिम नहीं उठा सकते, उन्हें अनुर्वरीकरण की, या कम से कम गर्भनिरोध की सुविधा मिलनी चाहिए |

      ब्रह्मचर्य प्रायः कैदखाना होता है | ऐसी बंदी लोगों से कौन नहीं मिला, जिनका कौमार्य उन्हें जकड़े रहता हैं और जो किसी मुक्तिदाता की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं ?

      बंदी कौमार्य वाले श्री जे. सी. कुमारप्पा ने रुसी लड़कों और लड़कियों के अलग-अलग झुंडों में घुमने की- शायद वे उनकी जानकारी के बिना सामूहिक रूप से एक-दुसरे को आकर्षित या सामूहिक प्रणय कर रहे होंगे- तारीफ़ करके अपनी स्थिति का क्या सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया, और अपनी आत्मा के मुक्तिदाता कि चाह नहीं प्रकट की ?

      समय आ गया है कि जवान औरतें और मर्द ऐसे बचकानेपन के विरुद्ध विद्रोह करें | उन्हें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि यौन आचरण में केवल दो ही अक्षम्य अपराध है : बलात्कार और झूठ बोलना या वादों को तोड़ना | दुसरे को तकलीफ पहुँचाना या मारना एक और तीसरा भी जुर्म है, जिससे जहाँ तक हो सके बचना चाहिए |

      जीवन कितना स्थूल हो गया है ? समाज के नेताओं ने विवाह की निमंत्रण-पत्रिका छापने में पचास हजार रूपए खर्च किए हैं | उनकी शादियों का वैभव आत्मा के मिलन में नहीं है, जिसे प्राप्त करने का नवदंपति प्रयत्न करते, बल्कि 20 लाख की कंठियों और 50 हजार से भी ज्यादा कीमती साड़ियों में है |

      एक बार चाय की दावत में एक ऐसे करोड़पति से मेरी भेंट हो गई, जिसने मुझसे यह कहने की हिमाकत भी की कि ऐसी साड़ियां कहीं नहीं होती और मेरी इच्छा हुई कि उसे मिंक कोट की स्कूल में भेज दूँ | मिंक नामक छोटे से पशु की खाल से बने ये कोट लाखों रुपयों में बिकते हैं | कई वर्ष पहले सिर्फ एक बार मैं इस आदमी से मिला था, वह मेरे पास आकर पुरे दो घंटों तक मेरी खुशामद करता रहा, क्योंकि किसी शरारती आदमी उसे टेलीफोन कर दिया था कि उसके घिनौने कामों के कारन मेरे आदमी उसे कारखाने में उड़ा देंगे | वह इतना अभद्र था कि मुझसे यह कहने से भी नहीं चूका कि वह मेरे दल की कुछ मदद कर सकता हैं, और मैं इतना अभद्र न था कि उसकी काली करतूतों के बदले में कुछ लेकर चुप बैठ जाता, बाद में उसने कभी भी अपनी उदारता नहीं दिखलाइ |

      ऐसे ही क्षणों में आदमी कुछ देर के लिए बम और तेजाब की बोतलों के इस्तेमाल के चक्कर में आ जाता है |

      धर्म, राजनीति, व्यापार और प्रचार सभी मिलकर उस कीचड़ को संजो कर रखने की साजिश कर रहे हैं जिसे सांस्कृति के नाम से पुकारा जाता है | यथास्थिति की यह साजिश अपने-आप में इतनी अधिक शक्तिशाली है कि उससे बदनामी और मौत होगी | मुझे पूरा यकीन है कि मैंने जो कुछ लिखा उसका और भयंकर बदला चुकाया जाएगा, चाहे यह लाजमी तौर पर प्रत्यक्ष या तात्कालिक भले ही न हो|

      जब जवान मर्द और औरतें अपनी इमानदारी के लिए बदनामी झेलतीं हैं तो उन्हें याद रखना चाहिए कि पानी फिर से निर्बंध बह सके, इसलिए कीचड़ साफ़ करने की उन्हें यह कीमत चुकानी पड़ती है|

      आज जाति और योनि के इन वीभत्स कटघरों को तोड़ने से बढ़कर और कोई पुण्य कार्य नहीं है | वे सिर्फ इतना ही याद रखें कि चोट या तकलीफ न पहुंचाएं और अभद्र न हों, क्योंकि मर्द और औरत के बीच का रिश्ता बड़ा नाजुक होता है | हो सकता है, हमेशा इससे न बच पाएं | किन्तु प्रयत्न करना कभी नहीं बंद होना चाहिए | सर्वोपरि, इस भयंकर उदासी को दूर करें और जोखिम उठाकर ख़ुशी हासिल करें |

-1953 जनवरी
 

          

Sunday, 24 September 2017

बीएचयू के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी को तत्काल पद से हटाया जाए


दिनांक : 25 सितम्बर 2017 
प्रेस विज्ञप्ति 

सोशलिस्ट युवजन सभा बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में लड़कियों पर लाठीचार्ज की कड़ी निंदा करती है। साथ ही SYS बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की बहादुर बेटियों के आंदोलन के समर्थन का भी एलान करती है । हमारी मांग है कि बीएचयू के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी को तत्काल पद से हटाया जाए। देश के एक पुराने और मशहूर केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्राएं छेड़खानी के विरोध में लगातार कैंपस के गेट के पास धरने पर बैठी है। और कुलपति को इतनी भी शर्म नहीं है कि वो छात्राओं से मिलकर उनकी मांगे सुने। उलटे सत्ता का इस्तेमाल कर बहादुर बेटियों पर बर्बरता से लाठियां भांजी जा रही है। शनिवार की देर रात जिस तरीके से त्रिवेणी हॉस्टल पर प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सुरक्षा गार्ड ने लाठीचार्ज किया वो ये जाहिर करता है कि प्रशासन की मंशा लड़कियों के आंदोलन को ताकत के दम पर दबाने की है। लाठीचार्ज के साथ-साथ कैंपस में 23 थानों की फोर्स, पीएसी और आरएएफ को तैनात किया गया है। विद्यार्थियों पर लाठियों, टियर गैस और रबर बुलेट दागे गए । छात्राओं के हॉस्टल में तालेबंदी की गई है। और बिजली भी काट दी गई । ये बर्बर घटना केंद्र की बीजेपी सरकार और यूपी की योगी सरकार के संवेदनहीन और क्रूर चेहरे को बेनकाब कर रही है। 

लड़कियों की मांग बस इतनी है कि वॉयस चांसलर मौके पर आकर उनकी समस्याओं को सुनें और उनका समाधान निकालें। वे कैंपस में 24 घंटे सुरक्षा की मांग कर रही हैं। साथ ही सुरक्षाकर्मियों को जवाबदेह बनाने के साथ साथ हॉस्टल आने-जाने वाले रास्ते पर पर्याप्त रोशनी की मांग कर रही है। कैंपस में महिला सुरक्षाकर्मियों की तैनाती और सीसीटीवी कैमरे लगाने की मांग भी लड़कियों ने प्रशासन से की है। सोशलिस्ट युवजन सभा का मानना है कि ये सारी मांगे वाजिब है और विश्वविद्यालय प्रशासन को तुरंत लड़कियों की इन मांगों को मानना चाहिए। लड़कियों की मांग मानने में हो रही देरी इस आंदोलन की चिंगारी और भड़काएगी जिसकी लपटें बर्दाश्त करने की हिम्मत ना तो विश्वविद्यालय प्रबंधन में है और ना ही देश की सरकारों में। 

RSS और उसकी छात्र इकाई AVBP दरअसल इस देश की विश्वविद्यालयों को मनुवाद की प्रयोगशाला बनाना चाहती है। पुरुषवादी मानसिकता ही है जो लड़कियों को बुनियादी हक़ के लिए भी आंदोलन कर लाठियां खानी पड़ रही है। ऐसे में इस दौर में हमें मनुवादी ताक़तों को पूरी ताक़त से जवाब देना है। 

देश की तीसरी सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटी बीएचयू में लड़कियां सुरक्षा से जुड़ी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए आंदोलन कर रही है। और प्रशासन उनपर दमनकारी रवैया अपना रहा है। सरकारें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के जुमले से काम चला रही है। और RSS की छात्र इकाई ABVP दमनकारियों के साथ खड़ी है। SYS सभी लोकतांत्रिक छात्र संगठनों से अपील करती है कि बीएचयू की बहादुर बेटियों का साथ दे। 

नीरज कुमार
अध्यक्ष, सोशलिस्ट युवजन सभा

बंदना पांडेय
महासचिव, सोशलिस्ट युवजन सभा

BHU VICE CHANCELLOR MUST BE REMOVED

Press Release



            Professor Girish Chandra Tripathi, according to his own admission, became the Vice Chancellor of nationally and internationally renowned Banares Hindu University because of his service to the Rashtriya Swayamsewak Sangh (RSS), the ideological parent of the ruling dispensation of Bhartiya Janata Party in India. He is not particularly known for his academic credentials. So, it came as no surprise that he restricted the hours of a 24 hours cyber library started on campus by his predecessor, as he believed that students use the facility to watch pornography. His further decisions shocked even the most conservative of citizens. Girls' hostel gates were to shut at 6 pm, they were not to use mobile phones after 8 pm, they would not be served non-vegetarian food in mess and worse, would be required to sign a statement declaring that they'll not participate in any protest against the university. The VC justified these rules saying they would make them 'cultured.'    
   
            In spite of iron clad system for security of girls a Bachelor of Fine Arts student was sexually harassed by motorcycle borne youth on campus on the evening around 6 pm on 21 September. Security guard posted near the site of incident did not come forward to help and Proctor and Dean shamed the student by admonishing her for being out so late. The attitude of authorities provoked a backlash and the next day hundreds if not thousand female students were protesting at the main gate defying the statement all of them had signed for keeping away from such an activity.

            The Prime Minister Narendra Modi, was visiting his constituency of Varanasi, home to this University, when the protests broke out. Within hours of his departure on 23 September there was a crackdown by male police on female students, which is illegal, in the dark hours close to midnight. Number of students received bruises, some even had to be admitted to Trauma centre of the University hospital.

            University authorities blamed the 'outsiders, mischief makers, propagandists and anti-national' elements for instigating the protests. Obviously they were more worried about the outsiders and miscreants who infiltrated the protests than the ones who were responsible for sexual harassment on campus. 
       
            There were further lathi charges on protesting students twice on 24 September during the day on campus. The students have been asked to proceed on an early Dussehra holiday and vacate their hostels. What can be more irresponsible act by the University administration than this? The girl students who are not feeling safe on campus are being evicted from the safe environment of their hostels and without any travel bookings being asked to leave for home.

            Tripathi who first prayed to Lord Vishwanath in the famous Vishwanath temple in city and then in a temple by the same name on campus, before taking over as VC three years back now must realize that running a university is more difficult than running a teachers' union or a RSS shakha. But it doesn't look like that Lord Vishwanath is going to stand by him for very long. It should dawn upon him that his days are numbered. This anti-academic, regressive, arrogant person has vitiated the atmosphere of BHU and the University needs to be saved from its own VC. The Socialist Party demands his immediate removal from his post.        
            The Socialist Party would also like to register its protest against the removal of vendors from outside BHU main gate in Lanka whenever the Prime Minister visits Varanasi. The vendors who suffered a loss in income over the past few days because of PM's visit could not set up their carts/shops because of the lathi charge by police on students. The vendors' association stands with the demands of girl students.

Chintamani Seth
District President, Socialist Party (India), Varanasi
President, Gumti Vyavsayee Kalyan Samiti, Lanka, Varanasi
Mobile : 9450857038

Sandeep Pandey
Member, National Executive
Socialist Party (India)
Ph: 0522 2347365/4242830

TAKING EDUCATIONAL INSTITUTIONS BACKWARDS

TAKING EDUCATIONAL INSTITUTIONS BACKWARDS

Sandeep Pandey

Sandeep Pandey, Senior Member Socialist Party (India)
            On 11 September, 1893 Swami Vivekanand delivered his famous speech in the Parliament of World's Religions in Chicago. The Bhartiya Janata Party government decided to celebrate the event and Prime Minister Narendra Modi addressed the youth of the country. Incidentally, he shares his first name with Vivekanand's original name Narendra Nath Datta.

            Vivekanand has inspired the youth of this country for long. His preachings are thought provoking. For example, he says, 'As certain religions of the world say that a man who does not believe in a Personal God outside of himself is an atheist, so the Vedanta says, a man who does not believe in himself is an atheist. Not believing in the glory of our own soul is what Vedanta call atheism.'  At another place he pleads with his audience, 'If you are not a prophet, there never has been anything true of God...Everyone of us will have to become a prophet.'

            However, when this occasion was celebrated on 11 September, 2017 on university campuses, students were asked to memorise the speech of Swami Vivekanand delivered in 1893 and regurgitate it. When students did not even bother to learn it by rote, they were allowed to read it from paper. Such is the sorry state of affairs of our academic institutions. If Swami were alive today he would have cringed in despair.

            He wanted everybody to have complete faith in themselves and feel like a sovereign but our higher educational institutions do not want our students to develop independent thinking. Had the students been asked to give their comments on Vivekanand's speech they would have had to exercise their brain. But it is amazing that university level students are just being asked to memorise and reproduce a speech. The entire idea of putting a curb on students' thinking is contradictory to Vivekanand's idea of empowerment. How can the students have belief in themselves if they are merely activating not the analytical power of brain but only its photographic ability? Quite clearly the authorities want to produce followers and not leaders.

            That Vivekanand is not taken seriously by the Rashtriya Swayamsewak Sangh, the ideological parent of ruling dispensation in India,  is also clear from his statement in the same speech, 'We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true. I am proud to belong to a nation which has sheltered the persecuted and the refugees of all religions and all nations of the earth.' However, in the context of current migration of Rohingya Muslims from Myanmar the Home Minister Rajnath Singh says they are illegal immigrants and not refugees who have not followed the procedure to apply for asylum, but it is not clear whether Government of India would welcome them even if they were to seek entry through proper channel. They obviously don't have Vivekanand's large heart. Narendra Modi chose not to raise the issue of persecution of Rohingya Muslims during a meeting with its famous leader, Aung San Suu Kyi in his recent maiden visit to Myanmar. That demonstrates India's overall insensitivity towards Rohingyas.

            Vivekanand also said in Chicago, 'Sectarianism, bigotry, and its horrible descendent, fanaticism, have long possessed the beautiful earth. They have filled earth with violence, drenched it often and often with human blood, destroyed civilisation and sent whole nations to despair. Had it not been for these horrible demons, human society would be far more advanced than it is now.'  However sectarianism, bigotry, fanaticism and violence have increased with the BJP's ascent to power. Some Sangh parivar loyalists can argue that this is in response to the rise of similar tendencies in Islam globally. The moot question is could there have been a different response rooted in Vivekanand's and Mahatma Gandhi's ideologies to it?

Also it is worrisome that senior functionaries of the BJP governments are indulging in negating scientific and rational thinking. The Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath while speaking at the convocation of the Sanjay Gandhi Post Graduate Institute of Medical Sciences in Lucknow on 16 September claimed that China was researching how Hindu God Ganesh's head slain by his father Lord Shiv was replaced with an elephant's head and exhorted the Indian doctors to delve into the treasure of our scriptures. He also beseeched the faculty and students to find the herb which brought back Laxman to life. According to him Dr. A.P.J. Abdul Kalam was inspired by the Mahabharat to work on missiles. Yogi Adityanath holds a Bachelor's degree in Mathematics.

            The State Minister for Human Resources Development at the centre Satya Pal Singh claimed in a programme of All India Council for Technical Education on 20 September in Delhi that Shivakar Babuji Talpade in India invented the air plane 8 years before the Wright brothers. According to him plants in Ravana's kingdom were not required to be watered as they contained a mythical elixir Chandramani. He wants engineering students to learn about Hindu deity Vishwakarma, puranas and mythology. Singh holds a Masters degree in Chemistry and is a former Indian Police Services officer.

            By not letting analytical thinking develop in students the RSS is ensuring that there will be no one to ask Yogi when he makes the suggestion to doctors to research how an elephant's head replaced beheaded Lord Ganesh that if indeed doctor's were successful in doing this surgery whose brain would the resultant creature possess - human's or elephant's? Or they don't want any students to ask Satya Pal Singh if India possessed the know-how of making planes why is it not investing in rediscovering that knowledge rather than buying Rafale jets from France?

By Sandeep Pandey
A-893, Indira Nagar, Lucknow-226016
Ph: 0522 4242830, Mobile: 9415022772

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