Saturday, 2 December 2017

खाद्दान्न समस्या (बहस) तीसरी लोकसभा का 7वां सत्र (12 फरवरी 1964 - 15 अप्रैल 1964)

खाद्दान्न समस्या (बहस)
तीसरी लोकसभा का 7वां सत्र (12 फरवरी 1964 - 15 अप्रैल 1964)

      डॉ. राममनोहर लोहिया : पिछली बहस में सरदार साहब ने फ़रमाया था कि जब अन्न मंत्रियों का सम्मेलन हो जाएगा तब वह बतला सकेंगे कि अनाज के दामों में उतार-चढ़ाव के बारे में क्या फैसला हुआ है, किंतु मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि उनकी तरफ से कोई जवाब और नीति नहीं आई |
      मैंने यह सलाह दी थी कि कोई भी अनाज दो फसलों के बीच में किसी एक जगह पर आने से या साढ़े 16 सैकडे से ज्यादा उतार-चढ़ाव न हो | इस पर बहस करने का क्या तरीका है ? व्यापारियों को गिरफ्तार करने की मंत्रियों को गिरफ्तार करने की बहुत कम उम्मीद हम रखते हैं | अलबता हम यह फैसला करें कि अनाज के दामों के बारे में क्या नीति बरती जाती है | फिर उस नीति को हासिल करने का कौन सा तरीका होता है उसपर बहस हो |
      मुझे सबसे पहले यहाँ पर यही बात जोर से कहनी है कि अनाज के दाम बांधने के बारे में अब इस लोकसभा में कोई फैसला हो जाना चाहिए | जब मैं बांधने की बात कह रहा हूँ तो कोई 6 आने या 7 आने सेर बांधने की बात नहीं कह रहा हूँ | अगर कम से कम 6 आने सेर का हो तो ज्यादा से ज्यादा 7 दाम उस चीज का 7 आने सेर होना चाहिए | 6 आने या 7 आने के बीच में दामों का उतार-चढाव, इससे ज्यादा फर्क न हो | बिल्कुल यह फैसला हो जाए |
      मैंने सरदार साहब के बयान को बहुत ध्यान से पढ़ा है | उसमें सिर्फ एक बात है कि मैं दोषी नहीं हूँ, दोषी या प्रकृति है या व्यापारी है | हम हिन्दुस्तानियों की आदत हो गई है कि हम हमेशा अपने दोष को किसी और पर डाल दिया करते हैं | मैं चाहता हूँ कि यह बात नहीं होनी चाहिए | दोषी कौन है यह बहस फिजूल है | अगर कोई मुझसे पूछे तो मैं कहूँगा कि सरकार तथा व्यापारी, मंत्री तथा करोड़पति या यह पक्के आढतिया, यह लोग इसके दोषी है | यह बहस फिजूल है और इस बहस को छोड़ देना चाहिए | दामों को बांधने के बारे में कोई फैसला लिया जाए | एक तरफ किसान की लूट बंद हो और दूसरी तरफ उपभोक्ता की लूट बंद हो | इसके साथ-साथ मैं यह भी कह दूँ कि किसान की उपज के दाम के बारे में जहां हम नीति का बंधन करें वहां कारखाने के दाम के बारे में जरुर फैसला करें | क्योंकि दोनों एक दुसरे से जुड़े हुए हैं | अब होता यह है कि कारखाने वाले अपनी वस्तुओं का दाम चढ़ा लिया करते हैं क्योंकि उनके पास साधन हैं, शक्ति है, लेकिन किसान चूँकि इतना शक्तिमान नहीं है और और इतना बिखरा हुआ है इसलिए वह ऐसा कर नहीं पाता हैं | इसलिए मैं चाहूँगा कि कारखानों में जरुरी चीजो के दाम भी लागत खर्च से डेढ़ गुना से ज्यादा किसी हालत में नहीं होना चाहिए | ऐसा मैं जरुरी चीजों के लिए कह रहा हूँ | अब रेशम, शराब या सिगरेट वगैरह के लिए मैं यह नहीं कह रहा हूँ | फैशन की चीजों के दाम ज्यादा हो सकते हैं दामों के बारे में जब यह नीति अपना लेते हैं तब जाकर कहीं उपभोक्ता और किसान यह दोनों आदमी हो पाते हैं | इस नीति के अभाव में आज किसान आदमी है ही नहीं | गाय से हम दूध ज्यादा पैदा करते हैं, कब, जब गाय को चारा दे देते हैं | लेकिन किसान को कहीं कोई चीज मिल ही नहीं पाती और उससे उम्मीद करते हैं कि वह पैदावार बढ़ाएगा | इसलिए मेरा कहना है कि किसान को अगर मनुष्य के जैसा नहीं तो कम से कम गाय, बैल का जैसा ही जीवन हम दें |
      मैं बतलाऊं कि सफ़ेद दुनिया में जहाँ 3,500 कैलोरीज का औसत पड़ता है और पीली दुनिया में 3,000 या 2,500 हरारा का औसत पड़ता है वहां हिंदुस्तान में मुश्किल से 1,700 हरारा का ही औसत पड़ता है | अगर हिंदुस्तान के 27 करोड़ आदमियों के तरफ ध्यान दिया जाए तो वह करीब 800 या 900 हरारा का ही जाकर औसत पड़ेगा | मैं बहुत अफ़सोस के साथ कह रहा हूँ कि अभी मैं राजस्थान और पंजाब के कुछ इलाकों में गया था | वहां मैंने कुछ लोगों को सड़क पर बैठा देखा | वहां पर अकाल सा दृश्य दिखाई देने लग गया है | एक आदमी का चेहरा तो अभी कुछ दिनों मुझे याद रहेगा | वह बन्दर जैसा हो गया था | खाने को उसके पास कुछ भी नहीं था और वह बेचारा बेर बीन-बीनकर खा रहा था | अकाल की स्थिति अब अपने देश में आ गई है | मुझे इस बात का भय है कि अगले तीन-चार महीनों में कुछ इलाकों में अकाल हो जाएगा | यूँ कभी और भुखमरी की हालत तो हमेशा ही रहती है, लेकिन इस वक्त बड़े पैमाने पर अकाल की स्थिति है |
      पैदावार बढाने की बातचीत जब हमेशा हुआ करती है, तो उसके बारे में भी हम फैसला करें कि आखिर पैदावार कैसे बढ़ाएंगे | जब कभी होता है, जब कभी कोई चर्चा उठती है तो सरकार की ओर से कहा जाता है कि हम दो सौ ट्यूबवेल खोद देंगे, हम 500 यह कर देंगे | यह हिन्दुस्तान की खेती का मखौल उड़ाना है | हिन्दुस्तान की तीस करोड़ एकड़ खेती के बारे में सरकार की क्या नीति है, सरकार स्पष्ट करे | वह साफ़-साफ़ कहे कि हमारी यह नीति है इसपर हमें चलना है |
            मैं समझता हूँ कि आज हिन्दुस्तान में सबसे बड़ी कमी यह है कि जवाबदेही बिल्कुल रह ही नहीं गई है | ख़ासतौर से लोकशाही में जवाबदेही के बिना कोई काम काज नहीं हुआ करता है और ख़ासतौर पर बहस में | बहस की जवाबदेही इस लोकसभा में बिलकुल नहीं रह गई है | हंमेशा सरकार को मौका मिल जाता हैं कि वह बिना कुछ नीति बताए हुए अपना कुर्ता झाड़कर अलग चली जाए | उसको जवाबदेही के बंधन में फांसना चाहिए | बतलाओं कि कितने समय के अन्दर-अन्दर तुम हिन्दुस्तान का पेट भर दोगे - मैं नहीं कहता कि 3,000 कैलोरीज  के हिसाब से 1,500, 1,700, 2,000 जो भी बांधो कितने समय में तुम हिंदुस्तान का पेट भर दोगे और किस ढंग से भर दोगे ? अगर पिछली बातें भुला भी दें, तो अगले दो साल के लिए या तीन साल के लिए वक्त दिया जाए, ताकि सरकार पर यह जिम्मेदारी हो जाए कि ख़ास ढंग पर, एक नीति को अपनाकर, एक बंधे हुए समय के अन्दर-अन्दर वह हिंदुस्तान का पेट भर देगी | और अगर उस समय तक वह न हो, तो फिर उसके बाद अगर सरकार हयादार है, मैं सिर्फ बोलने के लिए बोल रहा हूँ- तो उसे हट जाना चाहिए |

      एक माननीय सदस्य : हया नहीं है |

      डॉ. राममनोहर लोहिया : लेकिन वह तो होता नहीं है | असल बात है कि फिर लोकशाही में जनता की भी जिम्मेदारी हो जाती है कि वह बहस की जवाबदेही को समझा करे | जब एक ढंग और एक नीति से काम नहीं हो पाया, तो फिर दुसरे ढंग ढंग और दूसरी नीति की तरफ जनता को चलना चाहिए |
            इसलिए सबसे बड़ी बात तो यह हो गई है कि हिंदुस्तान की खेती की पैदावार को बढाने के लिए सबसे पहले किसान को इंसान बनाना है | आज किसान खा नहीं रहा हैं | उसके हाथ की मसलियाँ पिघल चुकी है | वह पैदावार बढ़ा नहीं सकता | नई जमीन तोड़ी नहीं जा रही हैं | किसान में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि वह नई जमीन को तोड़े, साल-दो साल तक अपने घर से खाए और फिर अनाज की पैदावार बढाए | नई जमीन को तो खाली सरकार तोड़ सकती है | और मेरा मतलब कोई दस-बीस लाख एकड़ से नहीं, करोड़-डेढ़ करोड़ से है |
      उसी तरह से जो पुरानी खेती है उसको सिंचाई का पानी देने के लिए जरुरी है कि कोई एक बड़ी योजना ले लो, कोई एक चीज ले लो- जैसे मैंने एक दफा यहीं एक भाषण में कहा था कि कम से कम दो-तीन करोड़ एकड़ जमीन हिंदुस्तान में जलमग्न रहा करती हैं | सरकार के जो वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाले हैं, जो वैज्ञानिक मंत्रालय हैं, उनको यह काम सौंप दिया जाए कि यह जो तीन-चार करोड़ एकड़ जमीन हर साल जलमग्न रहा करती हैं, इसको किसी तरह से उससे छुटकारा दिलाया जाए, ताकि खेती की पैदावार बढे व बाकी और जमीन को जितना भी पानी दिया जा सके, उसकी व्यवस्था की जाए | अध्यक्ष महोदय, इस सिलसिले में आपको याद दिलाऊं कि यहाँ पर हमारी किसी बात का जवाब नहीं दिया जाता हैं | आपने बहुत कृपा की है और कहा है कि आप मंत्री को दबायेंगे कि वह हमारी बातों का जबाब दें |

      अध्यक्ष महोदय: क्या मैंने दबाएँगे कहा था ?

      डॉ. राममनोहर लोहिया: हम यूरोप से सब चीजें सिख रहे हैं, अंग्रेजी में जो शब्द होता हैं, उसी को मैंने उल्टा कर दिया | 'दबाएँगे' का मतलब यह नहीं है कि कोई शारीरिक ढंग से आप उनको दबाएँगे, बल्कि मानसिक ढंग से दबाएँगे, आप उनके जवाब दिलवाएंगे |
      1947, 1948 या 1949 के आस-पास दुनिया में जो सिंचाई का सबसे बड़ा विद्वान था, उससे इस सरकार ने राय ली थी | उस विद्वान ने बताया था कि बड़ी सिंचाई से दस-पंद्रह सैकड़ा से ज्यादा हिन्दुस्तान की जमीन को पानी नहीं मिल सकता और अस्सी, पचासी सैकड़ा जमीन को छोटी सिंचाई से ही पानी मिलेगा | लेकिन उसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया है और पंद्रह बरस से हम हमेशा इस मामलें में दबाव में सड़ते जा रहे हैं | आखिर अब कहीं कोई नीति तो होनी ही चाहिए | मुझे बातें तो और भी कहनी थीं, लेकिन मैं तो अपना समय बांधकर चलता हूँ | असल में तो यह श्री मनीराम बागड़ी का सवाल है | वह इस पर ज्यादा बोलेंगे, हालाँकि स्पष्ट बात है कि मैं खुद बोलना चाहता हूँ |

      अध्यक्ष महोदय: एक बात तो उलट गई | मुझे बताया गया था कि पांच मिनट आप लेंगे और दस मिनट बागड़ी साहब लेंगे | अब आपने 10 मिनट ले लिए तो उनको कितना समय मिलेगा?

      डॉ. राममनोहर लोहिया : 10 मिनट ? तो मैं फ़ौरन बैठ जाता हूँ | मैं थोड़ा सा अर्ज कर दूँ कि अगर सात मिनट समझें तो अच्छा होगा |

      अध्यक्ष महोदय: आप कहें कुछ और मैं समझूँ कुछ और ?

            श्री एस. एम. बनर्जी : ...... हमारे नेहरु जी के जो आदर्श थे, वे ख़त्म हो गए | अपने पूज्य प्रधानमंत्री जी को देखकर आज ऐसा मालुम होता है कि वह शाहजहाँ हैं, लाल बहादुर शास्त्री जी दारा हैं और पाता नहीं इस सदन में कौन औरंगजेब छिपा हुआ है, जो उनके सिद्धांतों पर कब्ज़ा करने वाला है |

      एक माननीय सदस्य : सिद्धांत थे ही नहीं |

      श्री एस. एम. बनर्जी : इस बजट को पढ़ने के बाद मेरे मन में इस समाजवाद के बारे में कोई भ्रम नहीं रहा | मैं समझता हूँ कि सरकार फ़ूड ग्रेन्स की स्टेट ट्रेडिंग नहीं कर सकती, लेकिन फिर भी मैं यह सुझाव माननीय मंत्री जी के सामने रखना चाहता हूँ |

      डॉ. राममनोहर लोहिया: माननीय सदस्य यह बताते चलें कि दारा और शाहजहाँ का क्या हुआ |

      श्री एस. एम. बनर्जी : मैं चाहता हूँ कि दारा और जहांआरा मिलकर किसी हालत में शाहजहाँ को बचाएं |

      डॉ. राममनोहर लोहिया: मैं भी एक अर्ज कर दूँ | मंत्री महोदय नीति के बारे में कभी कुछ नहीं बताते | खाली आंकड़ो का विवरण दे दिया करते हैं | नीति नहीं रहती है | इसलिए बहस में कोई दिलचस्पी नहीं आ पाती |

      श्री स्वर्ण सिंह : फिर भी आप तो मेहरबानी करके बैठे हुए हैं |
     
      अध्यक्ष महोदय : जो तकरीर कर चुकते हैं, उनमें से बहुत से चले जाते हैं, जवाब सुनने का इन्तेजार नहीं करते हैं |

      श्री काशीराम गुप्त : अधिकतर तो उनमें से यहाँ बैठे हैं | कांग्रेस के साथी चाय पार्टी में चले गए हैं |

      श्री हरिविष्णु कामथ : उनको पार्टी का समय 6 बजे रखना चाहिए था | (अंग्रेजी में)

      अध्यक्ष महोदय : घंटी बजाई जा रही हैं- अब कोरम है | गृहमंत्री जी भाषण जारी रखें |

      डॉ. राममनोहर लोहिया : फुटकर दाम तो आदमी जब खरीदता हैं, तभी वह जानता हैं | मंत्री महोदय खाली अखबारों पर चलते हैं | पिछली बहस में यह बात आ गई हैं |

      अध्यक्ष महोदय : मंत्री जी कबुल नहीं कर रहे हैं |

      श्री स्वर्ण सिंह : डॉ. लोहिया शायद कभी बाजार में जाकर नहीं खरीदते | इन्होने भी शायद बहुत सा इधर-उधर से सूना हुआ है | शायद मुझसे भी कम वह बाजार में खरीदने के लिए जाते हैं | वह बड़े लीडर हैं | उनको पार्टी का काम बहुत रहता हैं |

      डॉ. राममनोहर लोहिया : आपके जितना हम बाजार में नहीं जाएंगे क्योंकि मेरा उतना बड़ा खानदान नहीं है |

      श्री नंबियार : दक्षिण क्षेत्र में वृद्धि मामूली या छोटी सी नहीं हैं | कभी-कभी 50 प्रतिशत से ज्यादा होती हैं | (अंग्रेजी में)

      श्री स्वर्ण सिंह मैं नहीं सोचता कि कहीं भी इस तरह से हैं | (अंग्रेजी में)

      डॉ. राममनोहर लोहिया : 100 फीसदी उतार-चढ़ाव हो जाता हैं |
      श्री स्वर्ण सिंह : मेरा ख्याल हैं कि माननीय सदस्य को साउथ का ज्ञान नहीं है |
      डॉ. राममनोहर लोहिया : ज्ञान बढाने की बात हुई तो लम्बी बहस हो जायेगी |
      डॉ. राममनोहर लोहिया : अध्यक्ष महोदय, आप इजाजत दें तो मैं साफ़ कर दूँ कि मैंने कभी नहीं कहा .......
      श्री स्वर्ण सिंह : मैंने माननीय सदस्य जब बोल रहे थे उनके भाषण में बाधा नहीं डाली | वे हमेशा कड़ी बात कहते हैं | कभी उनको समस्या को भी समझने का प्रयत्न करना चाहिए | मेरा रास्ता उनके रास्ते के जैसा प्रभावशाली नहीं हैं, यह हो सकता हैं, किन्तु मुझे एक कर्तव्य करना हैं | उन्हें समस्या को समझने का प्रयत्न करना चाहिए बजाय इस तरह खड़े होने के | (अंग्रेजी में)

      डॉ. राममनोहर लोहिया : मैंने दामों के उतार-चढ़ाव के बारे में कहा था | मैंने दामों को किसी एक जगह बांधने को नहीं कहा था | मैंने कहा था कि दो फसलों के बीच में दामों के उतार-चढ़ाव को बाँधा जाए | यह मैं कई बार पहले भी कह चूका हूँ |

            श्री स्वर्ण सिंह :  एक और विषय हैं जिसका उल्लेख श्री बागड़ी ने किया था जिन्होंने मुझे उतर देते व सुनते यह सौभाग्य भी प्रदान नहीं किया | जबकि उन्होंने कहा था कि इस प्रकार की बहस ओर सदन का ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने एक या दो बार बहिर्गमन किया था | (अंग्रेजी में)

      डॉ. राममनोहर लोहिया : उनके बदले हम लोग बैठे हुए हैं |

      डॉ. राममनोहर लोहिया : अध्यक्ष महोदय, मैं तो सिर्फ आपसे यह अर्ज़ कर रहा हूँ कि कभी किसी समय जल्दी ही मंत्री महोदय से आप अनाज के दाम के उतार-चढ़ाव का कुछ ठोस जवाब दिलवाइये, क्योंकि आज भी खाली एक किताबी उपदेश था | न तो फर्श की कोई कीमत बताई गई |

      अध्यक्ष महोदय : अब इस नुक्ताचीनी और कमेंट की कोई जरुरत नहीं है | माननीय सदस्य चाहते हैं कि उसमें वेरिएशन एक सरटेन लिमिट में हो | उसके जवाब में मिनिस्टर साहब ने कहा है कि हाँ, सरकार इसी पर गौर करके कोई फैसला करेगी |

      डॉ. राममनोहर लोहिया : पिछली दफा भी यही था | किसी सैकड़े में जवाब आना चाहिए | मान लीजिए, सोलह सैकड़ा या बीस सैकड़ा तक उतार-चढ़ाव होगा | दूसरी बात मैंने आपसे यह अर्ज़ की थी कि कोई समयबद्ध नीति होनी चाहिए खेती की पैदावार बढाने के लिए, लेकिन वह नीति अभी तक नहीं आई है | आप कभी किसी समय वह नीति दिलवाइए |

अध्यक्ष महोदय : बाकी बहस हम डिमांडज में करेंगे | आज की बहस सिर्फ इतनी ही थी |  

                            


   

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