Sunday 9 December 2012

मायावती क्यों नहीं करती एफडीआई का सीधा विरोध?

प्रैस रिलीज
मायावती ने खुदरा व्यापार में 51 प्रतिषत प्रत्यक्ष विदेषी निवेष के यूपीए सरकार के फैसले जैसे अहम मुद्दे पर अपनी राय स्पष्ट नहीं की है। हालांकि इस फैसले को दो साल से ऊपर हो गए हैं। अमित भादुड़ी, कमल नयन काबरा, प्रभात पटनायक, अरुण कुमार चलपतिराव, जस्टिस राजेंद्र सच्चर जैसे कई मूर्द्धन्य अर्थषास्त्री और विद्वान अध्ययन करके बता चुके हैं कि यह फैसला देष की अर्थव्यवस्था के लिए आपदायी है और सरकार इसे गलत तरीके थोप रही है। खुदरा क्षेत्र के संगठनों ने नवंबर 2011 में इस फैसले का न केवल निर्णायक विरोध किया था, सारे तथ्य सामने रख कर आगाह किया था कि यह फैसला भारत के खुदरा व्यापार को वालमार्ट, कारफुर, टेस्को जैसी विदेषी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बंधक बना देगा। मुख्यतः सोषल मीडिया में बहुत-सी ऐसी खबरें, रपट और अध्ययन प्रकाषित हैं जिनमें इन कंपनियों के स्वेच्छाचारी और षोषणकारी चरित्र और बर्ताव को सामने लाया गया है। 2009 में विकीलीक्स के खुलासे से लेकर इस साल मई के षुरुआत में हिलेरी क्लिंटन के भारत आने और उन्हीं दिनों वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद षर्मा से फ्रांस की कंपनी कारफुर के सीईओ के मिलने तक विदेषी दबाव की सच्चाई भी जगजाहिर है।
सोषलिस्ट पार्टी ने इन सारे तथ्यों की रोषनी में पिछले साल मई महीने में इस फैसले को हमेषा के लिए खारिज करने की अपील के साथ राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा था और बसपा समेत सभी कांग्रेसेतर पार्टियों के पदाधिकारियों और मुख्यमंत्रियों को एक लंबे पत्र के साथ वह ज्ञापन भेजा था। सोषलिस्ट पार्टी ने केरल के मुख्यमंत्रयी ओमेन चांडी समेत कांग्रेस षासित राज्यों के अन्य मुख्यमंत्रीयों से भी इस फैसले का विरोध करने की लगातार अपील की है। लेकिन दलितों के नाम पर देष की प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाली मायावती ने इस फैसले के प्रभावों का अभी आकलन ही नहीं किया है! जाहिर है, इस गंभीर मुद्दे पर राजनीति करने के सिवाय उनकी नजर में कोई अहमियत नहीं है।
कल उन्होंने एक नया सुझाव रखा कि कांग्रेस पहले उन राज्यों में यह फैसला लागू करे जहां उसकी अपनी सरकारें हैं। उनका तर्क है कि ऐसा करने से खुदरा में प्रत्यक्ष विदेषी निवेष के प्रभावों का सही अध्ययन हो जाएगा। यह तर्क उनकी खंडित दृष्टि का तो परिचायक है ही, साथ ही लोगों को ऐसे जानवर, जिन पर तरह-तरह के परीक्षण किए जाते हैं, समझने की मानसिकता को भी सामने लाता है। 
सभी अगड़े सवर्ण और पिछड़े दबंग नेताओं की तरह मायावती की आंखों में भी अमेरिका बसा है। सोषलिस्ट पार्टी का जोर देकर कहना है कि अमेरिका की चमक-दमक की बुनियाद में वहां के मूल निवासी रेड इंडियनों और गुलाम बना कर लाए गए अफ्रीकी अष्वेतों का खून और हड्डियां दफन हैं। ‘षाइनिंग इंडिया’ की बुनियाद भी करोड़ों गरीबों/कमजोरों के खून और हड्डियों से भरी जा रही है। यह फैसला बुनियाद भराई के काम को तेजी से आगे बढ़ाएगा।
एफडीआई पर बात करते हुए मायावती ने कहा है कि विकास के लिए वे विदेषी कंपनियों की मार्फत विदेषी निवेष को जरूरी मानती हैं। देष के कारपोरेट घरानों का धन तो उन्हें चाहिए ही। सोषलिस्ट पार्टी लोगों को बताना चाहती है कि मायावती और भारत के षासक वर्ग को विदेषी और देषी कंपनियों के निवेष से भारी-भरकम हिस्सा मिलता है। वैष्विक आर्थिक संस्थाओं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मार्फत जो कर्ज और निवेष आता है, वह उनके पास कई षताब्यिों से तीसरी दुनिया के संसाधनों और श्रम के दोहन और लूट से जमा हुआ है। नवउदारवादी नीतियों के तहत आने वाला कर्ज और निवेष मुनाफाखोरी के लिए है, न कि यहां कि अर्थव्यवस्था और लोगों की भलाई के लिए। मायावती को गरीबों की नहीं, अपनी भलाई का वास्ता देकर एफडीआई का समर्थन करना चाहिए।    
मायावती तीन बार भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री रह चुकीं है। गुजरात में मुसलमानों का राज्य प्रायोजित नरसंहार कराने वाले नरेंद्र मोदी का चुनाव प्रचार कर चुकी हैं। इसके बावजूद उन्होंने पुराना और पिटा हुआ राग अलापा है कि वे सांप्रदायिक षक्तियों को दूर रखने के लिए एफडीआई पर सरकार का साथ दे रही हैं। सोषलिस्ट पार्टी की देष के मुसलमानों से अपील है कि वे धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करने वाले ऐसे नेताओं को सबक सिखाने के लिए सोषलिस्ट पार्टी के साथ एकजुट हों जो समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध है।

डाॅ. प्रेम सिह
महासचिव व प्रवक्ता

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