यूपीए सरकार का 2013-2014 का रेल और आम बजट नवउदारवादी नीतियों के तहत कारपोरेट घरानों और अमीरों के हित में तैयार किया गया है। नवउदारवादी नीतियों से लाभान्वित मध्यवर्ग को भी किसी हद तक साथ रखने की कोशिश की गई है। बाकी महंगाई और बेरोजगारी की मार झेलने वाली देश की अधिकांश निम्न और निम्नमध्यवर्गीय मेहनतकश जनता के लिए बजट में कुछ भी नहीं है। वह हो भी नहीं सकता क्योंकि नवउदारवादी नीतियों के तहत उन्हें देश की अर्थव्यवस्था से बाहर रखा जाता है।
26 फरवरी को रेलमंत्री पवन कुमार बंसल द्वारा पेश किए गए रेल बजट से जो एक साफ संदेश मिलता है वह यह है कि रेलवे के निजीकरण की मुहिम और तेज होगी। रेल बजट में घोशित लगभग सभी योजनाएं और सुविधाएं महानगर केंद्रित हैं। बजट में समग्र दृष्टिकोण का अभाव है। ज्यादातर पिछड़े राज्यों की कीमत पर कुछ चुनींदा राज्यों को तरजीह दी गई है। रेल भूमि विकास प्राधिकरण के गठन की घोषणा से रेलवे की मौजूदा जमीन अथवा नई ली जाने वाली जमीन को कारपोरेट घरानों को सौंपने का रास्ता खोला दिया गया है। रेलवे के आधुनिकीकरण के नाम पर पीपीपी (प्राईवेट पब्लिक पार्टनरशिप) का रास्ता भी खोला गया है। रेलवे के मौजूदा तंत्र को प्रभावी और जवाबदेह बनाने के बजाय रेलवे वित्त प्रबंधन संस्थान और रेलवे किराया निर्धारण प्राधिकरण जैसी नई संस्थाओं के गठन से केवल खर्च बढ़ेगा। इन पदों पर बड़े अधिकारी नियुक्त होंगे जबकि छोटे कर्मचारियों के लाखों पद खाली पड़े हैं। रेलवे के बड़े अफसर अपनी सुविधाएं न केवल बढ़ाते जाते हैं, उनका बेजा इस्तेमाल भी करते हैं। सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि सुरक्षित और प्रभावी रेल व्यवस्था के लिए निजीकरण नहीं, अच्छी कार्य-संस्कृति विकसित करने की जरूरत है। उसके लिए जरूरी है कि निचली श्रेणी के कर्मचारियों को समुचित सुविधाएं दी जाएं और सभी रिक्त पद अविलंब भरे जाएं। सोशलिस्ट पार्टी की रेलवे यूनियनों से अपील है कि वे रेलवे के नौकरशाहों और सरकार की रेलवे की निजीकरण की मुहिम को निरस्त करें।
वित्तमंत्री पी चिदंबरम द्वारा पेश आम बजट में अमीरोन्मुख नवउदारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने की पहले से जारी कवायद की गई हैं। सारा जोर इस बात पर है कि देश के 10-20 करोड़ लोगों के हित-पोषण के लिए चलाई जा रही नवउदारवादी व्यवस्था बाकी एक अरब आबादी के लिए स्वीकृत मान ली जाए। किसानों, आदिवासियों, लघु उद्यमियों, छोटे दुकानदारों, मजदूरों, छात्रों, बेरोजगारों, जो देश की आबादी का अधिकांश हिस्सा हैं, बजट में सबसे पीछे और सबसे कम स्थान दिया गया है। वित्तमंत्री ने सुपर अमीरों पर अस्थायी रूप से 10 प्रतिशत सरचार्ज लगा कर और लग्जरी चीजों पर टैक्स बढ़ा कर गरीबों को गुमराह करने की कोशिश की है। सोशलिस्ट पार्टी सरकार से पूछना चाहती है कि भुखमरी, कुपोषण, बीमारी, अशिक्षा, बेरोजगारी के विकराल जबड़े में फंसी अधिकांश आबादी वाले देश में सुपर अमीर और उनकी अय्याशी क्यों होनी चाहिए? कारपोरेट ओर अमीरों के पास देश के संसाधनों और मेहनतकश जनता की लूट का धन है जो सरकारी सरपरस्ती में चल रही है।
डॉक्टर प्रेम सिंह
महासचिव व प्रवक्ता
26 फरवरी को रेलमंत्री पवन कुमार बंसल द्वारा पेश किए गए रेल बजट से जो एक साफ संदेश मिलता है वह यह है कि रेलवे के निजीकरण की मुहिम और तेज होगी। रेल बजट में घोशित लगभग सभी योजनाएं और सुविधाएं महानगर केंद्रित हैं। बजट में समग्र दृष्टिकोण का अभाव है। ज्यादातर पिछड़े राज्यों की कीमत पर कुछ चुनींदा राज्यों को तरजीह दी गई है। रेल भूमि विकास प्राधिकरण के गठन की घोषणा से रेलवे की मौजूदा जमीन अथवा नई ली जाने वाली जमीन को कारपोरेट घरानों को सौंपने का रास्ता खोला दिया गया है। रेलवे के आधुनिकीकरण के नाम पर पीपीपी (प्राईवेट पब्लिक पार्टनरशिप) का रास्ता भी खोला गया है। रेलवे के मौजूदा तंत्र को प्रभावी और जवाबदेह बनाने के बजाय रेलवे वित्त प्रबंधन संस्थान और रेलवे किराया निर्धारण प्राधिकरण जैसी नई संस्थाओं के गठन से केवल खर्च बढ़ेगा। इन पदों पर बड़े अधिकारी नियुक्त होंगे जबकि छोटे कर्मचारियों के लाखों पद खाली पड़े हैं। रेलवे के बड़े अफसर अपनी सुविधाएं न केवल बढ़ाते जाते हैं, उनका बेजा इस्तेमाल भी करते हैं। सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि सुरक्षित और प्रभावी रेल व्यवस्था के लिए निजीकरण नहीं, अच्छी कार्य-संस्कृति विकसित करने की जरूरत है। उसके लिए जरूरी है कि निचली श्रेणी के कर्मचारियों को समुचित सुविधाएं दी जाएं और सभी रिक्त पद अविलंब भरे जाएं। सोशलिस्ट पार्टी की रेलवे यूनियनों से अपील है कि वे रेलवे के नौकरशाहों और सरकार की रेलवे की निजीकरण की मुहिम को निरस्त करें।
वित्तमंत्री पी चिदंबरम द्वारा पेश आम बजट में अमीरोन्मुख नवउदारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने की पहले से जारी कवायद की गई हैं। सारा जोर इस बात पर है कि देश के 10-20 करोड़ लोगों के हित-पोषण के लिए चलाई जा रही नवउदारवादी व्यवस्था बाकी एक अरब आबादी के लिए स्वीकृत मान ली जाए। किसानों, आदिवासियों, लघु उद्यमियों, छोटे दुकानदारों, मजदूरों, छात्रों, बेरोजगारों, जो देश की आबादी का अधिकांश हिस्सा हैं, बजट में सबसे पीछे और सबसे कम स्थान दिया गया है। वित्तमंत्री ने सुपर अमीरों पर अस्थायी रूप से 10 प्रतिशत सरचार्ज लगा कर और लग्जरी चीजों पर टैक्स बढ़ा कर गरीबों को गुमराह करने की कोशिश की है। सोशलिस्ट पार्टी सरकार से पूछना चाहती है कि भुखमरी, कुपोषण, बीमारी, अशिक्षा, बेरोजगारी के विकराल जबड़े में फंसी अधिकांश आबादी वाले देश में सुपर अमीर और उनकी अय्याशी क्यों होनी चाहिए? कारपोरेट ओर अमीरों के पास देश के संसाधनों और मेहनतकश जनता की लूट का धन है जो सरकारी सरपरस्ती में चल रही है।
डॉक्टर प्रेम सिंह
महासचिव व प्रवक्ता