एक
हैदराबाद, 10-12-1955
संलग्न 'फोल्डर' खुद स्पष्ट है।
मैनकाइंड पुरे
मन से जाति समस्या को अपनी सम्पूर्णता में खोलकर रखने प्रयत्न करेगा। इसीलिए, आप उसके लिए अपना कोई लेख भेज सकें तो
प्रसन्नता होगी। लेख 2,500
और 4,000 शब्दों के बीच हों तो अच्छा। आप
जिस विषय पर चाहें चाहें,
लिखिए। हमारे
देश में प्रचलित जाती-प्रथा के किसी पहलू पर अगर आप लिखना पसंद करें, तो मैं चाहूंगा कि आप कुछ ऐसा लिखें कि
हिंदुस्तान की जनता न सिर्फ क्रोधित हो बल्कि आश्चर्य भी करे। मैं नहीं जानता कि
मध्य प्रदेश में लोकसभा के चुनाव भाषणों में आपके बारे में मैंने जो कहा, उसे आपके अनुयायी ने, जो मेरे साथ रहा, आपको बतलाया या नहीं। अब भी मैं चाहता हूँ कि
क्रोध के साथ दया भी जोड़नी चाहिए और कि आप न सिर्फ अनुसूचित जातियों के नेता बनें, बल्कि पूरी हिन्दुस्तानी जनता के भी नेता
बनें।
हमारे क्षेत्रीय
शिक्षण शिविर में यदि आप आ सकें तो हमें बड़ी ख़ुशी होगी। यह सोचकर कि इसके साथ वाली
विषय-सूची सहायक होगी,
उसे भेजा रहा
है। अगर आप अपने भाषण का सार पहले ही भेज दें, तो बाद में उसे प्रकाशित करना अच्छा होगा। हम चाहते हैं कि एक घंटे के भाषण के
बाद उस पर एक घंटे तक चर्चा भी हो।
मैं नहीं जानता
कि समाजवादी दल के के स्थापना सम्मेलन में आपको कोई दिलचस्पी होगी या नहीं। आप
पार्टी के सदस्य नहीं हैं पर फिर भी सम्मेलन में आप विशेष आमंत्रित होकर आ सकते
हैं। अन्य विषयों के अलावा,
सम्मेलन में खेत
मजदूरों,
कारीगरों, औरतों और संसदीय काम से सम्बंधित समस्याओं पर
भी विचार होगा और इनमें से किसी एक पर आपको कुछ महत्वपूर्ण बात कहनी ही है | किसी बात को बतलाने लिए यदि आप सम्मेलन की
कार्यवाही में हिस्सा लेना चाहें, तो मैं समझता हूँ कि सम्मेलन और विशेष रूप से अनुमति देगा।
सप्रेम अभिवादन के साथ,
आपका,
राममनोहर लोहिया
दो
कानपुर, 27-09-1956
प्रिय डॉक्टर साहब,
एक दोस्त के
जरिए हम लोगों को दिल्ली जाकर डॉ. अम्बेडकर से मिलने का न्यौता मिला। ये डॉ.
अंबेडकर के बहुत विश्वसनीय आदमी हैं। हम लोग दिल्ली जाकर उनसे मिले और 75 मिनट बातचीत हुई। यह साफ कर दिया गया था कि हम
लोग बिल्कुल व्यक्तिगत रूप में आए हैं।
जब आप दिल्ली
में हों,
डॉ. अंबेडकर
आपसे जरूर मिलना चाहेंगे। वे बूढ़े हैं और उनकी तबियत ठीक नहीं हैं। वे सहारा लेकर
चलते फिरते हैं।
वे पार्टी का पूरा साहित्य चाहते हैं और
मैनकाइंड के सभी अंक। वे इसका पैसा देंगे (विधान, नीति और कार्यक्रम भी).
वे हमारी राय से
सहमत थे कि श्री नेहरू हरेक दल को तोड़ना चाहते हैं और कि विरोधी पक्ष को मजबूत
होना चाहिए।
वे मजबूत जड़ों
वाले एक नए राजनीतिक दल के पक्ष में हैं।
वे नहीं समझते
कि मार्क्सवादी ढंग का साम्यवाद या समाजवाद हिन्दुस्तान के लिए लाभदायक होगा, लेकिन जब हम लोगों ने अपना दृष्टिकोण रखा, तो उनकी दिलचस्पी बढ़ी।
हम लोगों ने उन्हें कानपुर के आम क्षेत्र से
लोकसभा का चुनाव लड़ने का न्यौता दिया। इस ख्याल को उन्होंने नापसंद नहीं किया, लेकिन कहा कि वे आपसे पुरे हिन्दुस्तान के
पैमाने पर बात करना चाहते हैं। हम लोगों ने यह साफ़ कर दिया कि हम लोग अपनी नीति के
कारण कोई समझौता नहीं कर सकते। ऐसा लगा कि वे अनुसूचित जातिसंघ से बहुत मोह नहीं
रखते। कार्यकारिणी की बैठक दिल्ली में 30 को हो रही है। श्री नेहरू के बारे में जानकारी करने उन्हें बहुत दिलचस्पी थी।
(सिनेमा आउटफिट आदि की मैनकाइंड वाली चर्चा) उन्होंने कहा कि इन बातों का यथेष्ट
प्रचार होना चाहिए। वे दिल्ली से एक अंग्रेजी दैनिक निकालना चाहते हैं।
वे हम लोगों के दृष्टिकोण को बहुत सहानुभूति, तबियत और उत्सुकता के साथ, पुरे विस्तार में, समझना चाहते थे। उन्होंने थोड़े विस्तार में
इंग्लैंड की प्रजातांत्रिक प्रणाली की चर्चा की, जिससे उम्मीदवार चुने जाते हैं और लगता है कि जनतंत्र में उनका दृढ विश्वास
है।
यह सार है। हम लोग खुद नहीं आ सके क्यूंकि यह
पता नहीं था कि आप कहाँ हैं और हमारे पास पैसा नहीं था। 23-09-1956 को हैदराबाद दफ्तर में टेलीफोन से बात करने
की कोशिश की,
कोई जवाब नहीं
मिला,
क्यूंकि वहां पर
किसी ने टेलीफोन ही नहीं उठाया।
डॉ. अंबेडकर का
पता : 26
अलीपुर रोड, नई दिल्ली।
आपका,
विमल मेहरोत्रा
धर्मवीर गोस्वामी
तीन
दिल्ली, 24-09-1956
प्रिय डॉक्टर लोहिया
आपके दो मित्र मुझसे मिलने आए थे। मैंने उनसे
काफी देर तक बातचीत की,
हालांकि हम
लोगों में आपके चुनाव कार्यक्रम के बारे में कोई बात नहीं हुई।
अखिल भारतीय परिगणित जातिसंघ की कार्यसमिति
की बैठक 30
सितम्बर, 1956 को होगी और मैं समिति के सामने आपके मित्रों
का प्रस्ताव रख दूंगा। कार्यसमिति की बैठक के बाद मैं चाहूंगा कि आपकी पार्टी के
प्रमुख लोगों से बातचीत हो ताकि हम लोग अंतिम रूप से तय कर सकें कि साथ होने के
लिए हम लोग क्या कर सकते हैं। मुझे बहुत ख़ुशी होगी अगर आप दिल्ली में मंगलवार, 2 अक्टूबर, 1956 को मेरे यहां आ सकें। अगर आप आ रहे हों तो
कृप्या तार से सूचित करें ताकि मैं कार्यसमिति के कुछ लोगों को भी आपसे मिलने के
लिए रोक सकूँ।
आपका,
बी. आर. अंबेडकर
चार
हैदराबाद, 01-10-1956
प्रिय
डॉ. अंबेडकर
आपके 24 सितम्बर के कृपा-पत्र के लिए बहुत धन्यवाद। हैदराबाद लौटने पर मैंने आज आपका
पत्र पढ़ा और इसलिए आपके सुझाए समय पर दिल्ली पहुँच सकने में बिल्कूल असमर्थ हूँ।
फिर भी जल्दी-से-जल्दी मैं आपसे मिलना चाहूँगा। मैं उत्तर प्रदेश में
अक्टूबर के बीच में रहूंगा और आपसे दिल्ली में 19 या 20
अक्टूबर को मिल
सकूंगा। कृपया मुझे तार से सूचित करें कि इन दो तारीखों में कौन-सी आपको ठीक
रहेगी।
अन्य मित्रों से आपकी सेहत के बारे में जानकर
चिंता हुई। आशा है कि आप आवश्यक सावधानी बरत रहे होंगे।
मैं अलग से मैनकाइंड के तीन अंक आपको भिजवा
रहा हूँ। विषय का सुझाव देने का मेरा विचार था, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैनकाइंड के तीनो अंक आपको विषय चुनने में मदद
करेंगे। मैं केवल इतना ही कहूंगा कि हमारे देश में बौद्धिकता निढाल चुकी है, मैं आशा करता हूँ कि यह वक्ती है, और इसलिए आप जैसे लोगों का बिना रोके बोलना
बहुत जरुरी है।
आपका,
राममनोहर लोहिया
पांच
हैदराबाद, 01-10-1956
प्रिय विमल और धर्मवीर,
तुम्हारी चिट्ठी मुझे मिली। मैं चाहूंगा कि
तुम लोग डॉ. अंबेडकर से बातचीत जारी रखो, लेकिन याद रखना कि जिस दिशा का तुम लोगों ने खुद अपनी चिट्ठी में उल्लेख किया
है,
उससे इधर-उधर
नहीं होना।
डॉ. अम्बेडकर की सबसे बड़ी दिक्कत रही है कि
वे सिद्धांत में अटलांटिक गुट से नजदीकी महसूस करते हैं। मैं नहीं समझता कि इस
निकटता के पीछे सिद्धांत के अलावा और भी कोई बात है। लेकिन इसमें हमलोगों को बहुत
सतर्क रहना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि डॉ. अंबेडकर समान दुरी के खेमे की स्थिति में
आ जाएँ। तुम लोग अपने मित्र के जरिए सिद्धांत की थोड़ी-बहुत बहस भी चलाओ।
डॉ. अंबेडकर को लिखी चिट्ठी की एक नकल भिजवा
रहा हूँ। अगर वे चाहते हैं कि मैं उनसे दिल्ली में मिलूं तो तुम लोग भी यहां रह
सकते हो। मेरा डॉ. अंबेडकर से मिलना राजनैतिक नतीजों के साथ-साथ इस बात की भी
तारीफ होगी कि पिछड़ी और परिगणित जातियां उनके जैसे विद्वान पैदा कर सकती हैं।
तुम्हारा,
राममनोहर लोहिया
छह
दिल्ली, 05-10-1956
प्रिय
डॉ. लोहिया
आपका एक अक्टूबर, 1956 का पत्र संख्या 8821 मिला। अगर आप 20 अक्टूबर को मुझसे मिलना चाहते हैं तो मैं दिल्ली में रहूँगा, आपका स्वागत है। समय के लिए टेलीफोन कर
लेंगे।
आपका,
बी. आर. अंबेडकर
सात
कानपुर, 15-10-1956
आदरणीय
डॉक्टर साहब,
पिछले महीने मैं और मेरे मित्र श्री धर्मवीर
गोस्वामी आपसे दिल्ली में मिले थे। उसके बाद अपनी बातचीत की खबर हमने डॉ. लोहिया
को दी।
मैंने बहुत ध्यान से परिगणित जाति संघ की
कार्यसमिति के फैसले का अध्ययन किया है। उसमें से देश की जनता के लिए विशेष
दिलचस्पी की तीन चीजें निकलतीं हैं।
(क) आपकी समिति
ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के नाम से एक नई पार्टी बनाने की जरुरत महसूस की
है। हम लोगों को इस नई पार्टी की नीति और कार्यक्रम या इसके सिद्धांत के बारे में
अब तक कुछ पता नहीं। लोगों के लिए यह संभव नहीं कि अभी इसके बारे में राय कायम कर
सकें,
हालांकि देश
उत्सुकता के साथ,
मौजूदा दोषों को
दूर करने के इलाज के लिए,
आपके जैसी
विद्वता वाले पुरुष के विचार जानना चाहता है। मुझ जैसे आदमी का आपको कोई सलाह देना
धृष्टता होगी,
लेकिन देश के
लिए अच्छा होता कि देश के मौजूदा राजनैतिक दलों के नीति और कार्यक्रम को आप देख
लेते और इनकी कथनी और करनी के बारे में अपनी राय देते।
(ख) मुझे क्षमा
करेंगे यदि मैं साफ तौर पर कहूं कि चुनाव समझौते पर आपकी समिति की नीति मैं समझ
नहीं सका हूँ। मैं पूरी तौर पर दुविधा में हूँ। उत्तर प्रदेश परिगणित जाती संघ के
पार्लियामेंट्री बोर्ड के प्रवक्ता ने कहा कि संघ किसी वामपक्षी दल से समझौता नहीं
चाहता,
जबकि यदि मैंने
ठीक समझा है तो,
छपी ख़बरों के
अनुसार आपकी केंद्रीय समिति ने चुनाव समझौता या इसी तरह के किसी गठबंधन को पसंद
किया है। सोशलिस्ट पार्टी ने अपनी नीति में तय किया है कि हम लोग कोई समझौता या
गठबंधन नहीं करेंगे,
लेकिन उन
क्षेत्रों के अलावा और कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे जहां कुल मतदाताओं के एक प्रतिशत
पार्टी सदस्य न हों और जो कम -से-कम एक तिहाई मतदान केंद्रों में फैले न
हों। सोशलिस्ट पार्टी का विश्वास है कि दरअसल कोई और पार्टी विरोधी पार्टी है ही
नहीं। लेकिन उपर्युक्त फैसले से दूसरी तथाकथित विरोधी पार्टियों से खुद-ब-खुद
चुनाव समझौते का एक रास्ता निकल आता है, क्यूंकि हम लोग अपने को लगभग तीन हजार क्षेत्रों से अलग रखेंगे और 5 सौ या 6 सौ क्षेत्रों में चुनाव लड़ेंगे।
(ग) स्वेज के बारे में आपकी समिति का प्रस्ताव
राष्ट्रिय स्वार्थ की दृष्टि से भले ही सोचा गया हो, लेकिन मुझे बहुत शक है कि दूर की दृष्टि से यह हिंदुस्तान के लोगों के सचमुच
स्वार्थ में होगा। इसका मतलब यह होगा कि हिन्दुस्तान में लगी विदेशी पूंजी का
राष्ट्रीयकरण बिना उन देशों की सहमति के नहीं किया जाएगा जिनके पूंजीपतियों का
पैसा लगा हो।
मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि परिगणित जाति संघ
के दफ्तर को कृपया इन प्रस्तावों को हमें भेजने के लिए कहें।
मुझे पता चला है कि डॉ. लोहिया आपसे मिलने
वाले हैं। लेकिन मैं समझता हूँ कि निकट भविष्य में उनके लिए यह संभव नहीं होगा।
अगर आप अपना कुछ कीमती समय दे सकें, तो मैं आकर आपसे सारी बातें कर सकूं।
मुझे आशा है कि आपकी सेहत ठीक होगी और आप समय
निकाल सकेंगे।
आपका,
विमल मल्होत्रा
आठ
हैदराबाद, 1-7-1957
प्रिय मधु,
मुझे डॉ. अम्बेडकर से हुई और उनसे
संबंधित चिट्ठी-पत्री मिल गई है, और मैं उसे
तुम्हारे पास भिजवा रहा हूँ | तुम समझ सकते हो
कि डॉ. अम्बेडकर की अचानक मौत का दुख मेरे लिए थोड़ा-बहुत व्यक्तिगत रहा है, और अब भी है | मेरी बराबर आकांक्षा थी कि वे हमारे साथ
आएं, केवल संगठन में ही नहीं बल्कि पूरी तौर
से सिद्धान्त में भी, और वह मौका करीब मालूम होता था |
मैं एक पल के लिए भी नहीं चाहूँगा कि तुम इस
पत्र-व्यवहार को हम लोगों के व्यक्तिगत नुकसान की नजर से देखो | मेरे लिए डॉ. अम्बेडकर हिन्दुस्तान की
राजनीति के एक महान आदमी थे और गांधी जी को छोड़कर, बड़े-से-बड़े स्वर्ण हिंदुओं के बराबर | इससे मुझे बराबर संतोष और विश्वास मिला है कि हिन्दू धर्म की जाती-प्रथा
एक-न-एक दिन खत्म की जा सकती है |
मैं बराबर कोशिश करता रहा हूँ कि हिन्दुस्तान
के हरिजनों के सामने एक विचार रखूं | मेरे लिए यह बुनियादी बात है | हिन्दुस्तान के आधुनिक हरिजनों में दो प्रकार हैं, एक डॉ. अम्बेडकर और दूसरे जगजीवन राम | डॉ. अम्बेडकर विद्वान थे, उनमें स्थिरता, साहस और स्वतंत्रता थी;
वे बाहरी दुनिया
को हिन्दुस्तान की मजबूती के प्रतीक के रूप में दिखाए जा सकते थे, लेकिन उनमें कटुता थी और वे अलग रहना चाहते
थे |
गैर-हरिजन के
नेता बनने से उन्होंने इंकार किया | पिछले पांच हज़ार वर्ष की तकलीफ और हरिजनों पर उसका असर मैं भली प्रकार समझ
सकता हूँ |
लेकिन वास्तव
में तो यही बात थी |
मुझे आशा थी कि
डॉ. अम्बेडकर जैसे महान भारतीय किसी दिन इससे ऊपर उठ सकेंगे | लेकिन इसके बीच मौत आ गई | श्री जगजीवन राम ऊपरी तौर पर हर हिन्दुस्तानी
और हिन्दू के लिए सद्भावना रखते हैं और हालांकि स्वर्ण हिंदुओं से बातचीत में उनकी
तारीफ और चापलूसी करते हैं पर यह कहा जाता है कि केवल हरिजनों की सभाओं में घृणा
की कटु ध्वनि भी फैलाते हैं | इस बुनियाद पर न हरिजन और न हिन्दुस्तानी ही उठ सकता है | लेकिन डॉ. अम्बेडकर जैसे लोगों में भी सुधार
की जरूरत है |
परिगणित जाति संघ के चलाने वालों को मैं अब
नहीं जानता |
लेकिन में चाहता
हूँ कि हिन्दुस्तान की परिगणित जाति के लोग देश की पिछली चालीस साल की राजनीति के
बारे में विवेक से सोचें |
में चाहूँगा कि
श्रद्धा और सिख के लिए वे डॉ. अम्बेडकर को प्रतीक मानें, डॉ. अम्बेडकर की कटुता को छोड़कर उनकी
स्वतंत्रता को लें,
एक ऐसे डॉ.
अम्बेडकर को देखें जो केवल हरिजनों के ही नहीं, बल्कि पूरे हिन्दुस्तान के नेता बनें |
सप्रेम तुम्हारा,
राममनोहर लोहिया
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