दिनांक : 15 जुलाई 2013
प्रैस रिलीज
जातिवादी राजनीति
की धुरंधर हैं सपा और बसपा
मोदी की समर्थक
हैं मायावती
राजनीतिक पार्टियों
द्वारा जातिसम्मेलनों पर रोक लगाने संबंधी इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के फैसले
से सत्ताऱु समाजवादी पार्टी और मुख्य विपक्षी बहुजन समाज पार्टी एकदूसरे पर
बौखलाने का आरोप लगा रही हैं। जबकि फैसले से दोनों ही बौखलाई हुई हैं। यह सच्चाई
सबके सामने है कि ये दोनों पार्टियां उत्तर प्रदेश में जमकर जातिवाद की राजनीति
करती हैं। लेकिन दोनों पार्टियों ने अदालत के फैसले पर पैंतरा लिया है कि वे
जातिवादी राजनीति नहीं करतीं। दोनों पार्टियों के नेता कह रहे हैं कि जातिसम्मेलन
आयोजित करने के पीछे उनका उद्देश्य सामाजिक न्याय और सामाजिक भाईचारा ब़ाना है। यह
अलग बात है कि दोनों केवल अपने को सामाजिक न्यायवादी बताते हैं और दूसरे को
जातिवादी करार देते हैं।
बसपा नेता मायावती ने
फैसले के बाद एलान किया है कि अब वे अपनी पार्टी के आयोजन को सीधे जाति विशोष का
सम्मेलन न कह कर सर्वसमाज सम्मेलन कहेंगी। उनका कहना है कि ऐसे सम्मेलनों से वे
सदियों से चली आ रही जातिगत विषमता को दूर करके समता की स्थापना का काम कर रही हैं
जो संविधान का भी लक्ष्य है। लेकिन मायावती यह नहीं बतातीं कि बिना पूंजीवादी
आर्थिक-राजनीतिक संरचना को बदले समता का संवैधानिक
उद्देश्य कैसे पाया जा सकता है?
सपा के प्रवक्ता राजेंद्र
चौधरी अखिलेश यादव सरकार को विकास की गंगा बहाने वाली और मुलायम सिंह यादव को
समाजवाद का साक्षात अवतार बताते नहीं थकते। लेकिन उनके वक्तव्यों से उत्तर प्रदेश
सरकार का जातिवादी-परिवारवादी और कारपोरेटपरस्त
चरित्र नहीं छिप सकता। उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय, समाजवाद, संविधान की हवाई
बातें करने वाली ये दोनों पार्टियां केंद्र में देश पर कारपोरेट पूंजीवादी
व्यवस्था थोपने वाली कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की समर्थक हैं।
डॉ. लोहिया और डॉ.
अंबेडकर ने सामंतयुगीन जातिवाद के विनाश की प्रेरणा दी थी और इस दिशा में लगातार
प्रयास किया था। सपा और बसपा जातिवाद को पूंजीवादी व्यवस्था में मजबूती से जमाने
का काम कर रही हैं। बाकी मुख्यधारा राजनीतिक पार्टियों का भी कमोबेस वही रवैया है।
सोशलिस्ट पार्टी मांग करती है कि इलाहाबाद कोर्ट के फैसले की रोशनी में राजनीतिक
पार्टियों के जातिसम्मेलनों पर प्रतिबंध लगाने का पुख्ता कानून बनाया जाना चाहिए।
मायावती ने अपने बयान में
आरएसएस, विश्व हिंदू
परिषद और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की है। साथ ही उन्होंने गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की है। सोशलिस्ट पार्टी देश की जनता को एक बार
फिर बताना चाहती है कि मायावती तीन बार भाजपा की मदद से मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। 2002 के गुजरात दंगों
के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में वे अकेली ॔धर्मनिरपेक्ष’ नेता थीं
जिन्होंने गुजरात जाकर मोदी के साथ उनके समर्थन में चुनाव प्रचार किया था।
हिंदुत्ववादी ताकतों से गठजोड़ करके देश का प्रधानमंत्री बनने का उनका मंसूबा छिपा
नहीं है। सोशलिस्ट पार्टी जातिवाद और संप्रदायवाद के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई लड़ रही
है। पार्टी संविधान में आस्था रखने वाले समस्त नागरिकों से इस संघर्ष में सहयोग की
अपील करती है।
डॉ. प्रेम सिंह
प्रवक्ता व महासचिव
No comments:
Post a Comment