सोशलिस्ट युवजन सभा WTO के जरिए उच्च शिक्षा पर अब
तक के सबसे बड़े हमले का विरोध करती है । भारत सरकार ने उच्च शिक्षा क्षेत्र को
वैश्विक बाज़ार के लिए खोलने का मन बना लिया है। यही वजह है कि WTO के
पटल पर प्रस्ताव भी रख दिया गया है। WTO में रखे गए प्रस्ताव
के मंज़ूर होते ही शिक्षा का अधिकार क़ानून पूरी तरह से ख़त्म हो जाएगा। इसी के
साथ शिक्षा ज्ञान प्राप्ती का जरिया ना होके मुनाफ़ा कमाने का धंधा हो जाएगी। उच्च
शिक्षा ग़रीब छात्रों से दूर होकर सामर्थ्यवानों छात्रों को भी नाम मात्र की ही
मिलेगी। बाज़ारीकरण के कारण उच्च शिक्षा के स्तर में गिरावट होगी और ये अपने मूल
मक़सद से भटक जाएगी । इसके साथ ही अकादेमिक स्वतंत्रता, शोध की आज़ादी और
लोकतांत्रिक परंपराएं बीते दिनों की बात हो जाएगी । अगर हम WTO में दिए गए भारत सरकार के प्रस्ताव को वापस कराने में सफल नहीं होते तो
हमारा शिक्षा तंत्र हमेशा के लिए वैश्विक बाज़ार के चंगुल में फंस कर रह जाएगा।
इसी साल दिसंबर में
केन्या के नैरोबी में 10वां मंत्रीस्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। WTO की
योजना है कि इसी सम्मेलन से विकासशील और अल्प विकसित देशों में शिक्षा को बाज़ार
में तब्दील कर मुनाफ़ा कमाया जाए। ज़ाहिर है ऐसे देशों में इस योजना के दूरगाम
दुष्परिणाम होंगे। शिक्षा का बाज़ारीकरण दुनियाभर के मेहनतकश आवाम के लिए अत्यंत
घातक साबित होगा।
सोशलिस्ट युवजन सभा
मानती है, कि WTO का गठन विकसित देशों के हितों को संरक्षित करने और साधने कि
लिए किया गया है। और भारत जैसे देश WTO में केवल कॉर्पोरेट
घरानों के हितों को साधने के मकसद के साथ शामिल हुई है। भारत का उच्च शिक्षा
क्षेत्र जैसे ही दुनिया भर के बाज़ारों के लिए खुलेगा भारत के सारे छात्र
धीरे-धीरे ग्राहक में तब्दील हो जाएंगे। और दुनिया भर के संस्थान भारत में आकर
केवल मुनाफा बटोरेंगे। WTO के इस प्रस्ताव के बाद जितने भी
शिक्षण संस्थान भारत का रूख करेंगे, उनका एकमात्र मक़सद लाभ कमाना होगा । विश्व
बैंक की तरफ से 2000 में कराए गए एक सर्वे रिपोर्ट में ये साबित भी हो चुका है, कि
विकसित देशों के जाने-माने विश्वविद्यालयों ने पिछड़े देशों में घटिया दर्जे की
शाखाएं खोली।
WTO के इस प्रस्ताव
के जरिए ना केवल विकसित देश मुनाफ़ा कमाएंगे, बल्कि वे पिछड़े देशों के नज़रिए को
भी अपने अनुरूप ढालने की कोशिश करेंगे । इसका गंभीर असर हमारी शिक्षा प्रणाली और शिक्षा
के स्तर पर पड़ेगा। WTO का मक़सद शिक्षा को उपभोग का माल और
विद्यार्थियों को उपभोक्ता में बदलने की है। इस प्रस्ताव के मंज़ूर होते ही शिक्षा
से बदलाव और सशक्तिकररण की ताक़त भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।
सोशलिस्ट युवजन सभा देश
की शिक्षा व्यवस्था पर हो रहे इस नव उदारवादी हमले को रोकने की मांग करती है। साथ
ही देश के सभी प्रबुद्ध, प्रगतिशील और जागरूक लोगों से अपील करती है, कि वे आगे
आएं और WTO-GATS को दिए गए प्रस्ताव को वापस
कराएं।
नीरज सिंह
राष्ट्रिय सचिव
सोशलिस्ट युवजन सभा
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