Monday 10 July 2017

चंदा और सरकारी धन के खर्च का हिसाब क्यों नहीं देती 'आप'?



आम आदमी पार्टी का ताज़ा विवाद गौर तलब है. इससे एक बार फिर टीम अन्ना और अरविंद केजरीवाल की चौकड़ी के भ्रष्टाचार से लड़ने के उन खोखले दावों की पोल खुल कर सामने आ गई है, जो वे पिछले सालों से करते आ रहे थे. कपिल मिश्रा के आरोपों से पहले दिल्ली से लेकर पंजाब तक आम आदमी पार्टी पर तरह-तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं. भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के दौरान खुद अन्ना हजारे ने केजरीवाल द्वारा चंदे का हिसाब नहीं देने का सवाल उठाया था. उससे भी पहले यह सच्चाई सबके सामने आ चुकी थी कि केजरीवाल सरकार का 9 लाख रूपया दबा कर बैठे थे. दरअसल, ज्ञात और अज्ञात स्रोतों सेदेश-विदेश से जो करोड़ों की रकम का अम्बार आम आदमी पार्टी ने खड़ा किया, उसका कहां, कब, किस मकसद के लिए, किस रूप में इस्तेमाल किया - ये सवाल सबके जेहन में है। केजरीवाल ने बतौर मुख्यमंत्री अपनी छवि चमकाने के लिए 5-6 सौ करोड़ और नरेन्द्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री 11 अरब रुपये खर्च कर डाले हैं. सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि यह सरकारी धन की डाकाजनी है, जो  मेहनतकशों और करदाताओं से आता है. सोशलिस्ट पार्टी ने दिल्ली विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के वक्त कांग्रेस और भाजपा समेत 'आप' को विदेशी स्रोतों से मिलने वाले धन की जांच की मांग गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग से की थी. लेकिन उसकी बात सुनी नहीं गई.  

दूसरे दलों में पारदर्शिता के हिमायती 'आप' सुप्रीमो को अपनी पार्टी के चंदे का हिसाब देने के नाम पर सांप सूंघ जाता है। केजरीवाल देश की जनता को चंदे का हिसाब कभी नहीं बताते। उन्होंने चंदा देने वाले लोगों की रजामंदी के बगैर बनारस, गोवा और पंजाब के चुनावों में करोड़ों रुपया खर्च कर डाला. भ्रष्टाचार की पोल खुलने पर वे स्वम्भू ईमानदार होने का पैंतरा चलते हैं, जिसका कुछ स्वार्थी तत्व आँख मूँद कर समर्थन करते हैं. इनमें कई लेखक और बुद्धिजीवी भी शामिल है. इन्हीं लोगों के बल पर केजरीवाल न चंदे का हिसाब देते हैं, न विदेशी यात्राओं पर खर्च किये गए सरकारी धन का.  

सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि 'आप' शुरु से ही जिस तरह के तत्वों का जमावड़ा रही है, उसमें यह संभव है कि कल तक केजरीवाल के करीबी और 'आप' सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा को भाजपा ने खरीदा हुआ हो. लेकिन अकूत चंदे का हिसाब तथा मंत्रियों की विदेश यात्राओं पर खर्च किये गए सरकारी धन का सवाल अपनी जगह बना हुआ है.   

सोशलिस्ट पार्टी एक बार फिर देशवासियों के सामने यह सच्चाई रखना चाहती है कि 'आप' कार्पोरेट राजनीति का अभिन्न अंग है. नवसाम्राज्यवाद विरोधी प्रतिरोध को निष्क्रिय करने के लिए कांग्रेस-भाजपा के बाद वह कार्पोरेट का नया हथियार है, जो देश की मेहनतकश जनता के खिलाफ चलाया गया है.   

योगेश पासवान
महासचिव व प्रवक्ता
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) दिल्ली प्रदेश     

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