सोशलिस्ट पार्टी के 14-15 नवंबर 2016 को लखनऊ में चौथे राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित राजनीतिक प्रस्ताव
देश में लोकसभा
चुनाव हों या राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव, ज्यादातर स्थापित राजनीतिक दल किसी भी तरह देश की सत्ता पर
काबिज होने की होड़ लगाते हैं। झूठे वायदों, व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप, सांप्रदायिक उन्माद, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, व्यक्तिवाद, परिवारवाद, धनबल, बाहुबल, छल-कपट का इस्तेमाल
बिना किसी शर्म के किया जाता है। वंचित समूहों के प्रति दिखावटी सहानुभूति के
सहारे ये पार्टियाँ गरीब और मेहनतकश जनता को गुमराह कर अपने-अपने पक्ष में लामबंद
करने का दांव खेलती हैं। मीडिया ‘जो दिखता है वह बिकता है‘ की तर्ज पर चौबीस घंटे इस लोकतंत्र विरोधी राजनीति को लोगों के सामने परोसता
है। इस पूरे शोर-शराबे के बीच गरीबी, गरीबों और अमीरों के बीच मौजूद विषमता की लाखों गुनी खाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, कुपोषण, लाखों किसानों की आत्महत्या, नागरिक अधिकारों का दमन, आदिवासियों-दलितों-स्त्रियों-अल्पसंख्यकों
की बढ़ती असुरक्षा, पर्यावरण विनाश जैसे
बुनियादी मुद्दों पर कोई सार्थक चर्चा नही हो पाती। दरअसल, मुख्यधारा पार्टियाँ नब्बे के दशक से लागू की गईं
नवउदारवादी आर्थिक नीतियों, भूमंडलीकरण, बाजारवादी
उपभोक्तावाद, केंद्रवाद, अंधराष्ट्रवाद के पक्ष में
एकमत हैं। ये विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन जैसी कारपोरेट पूंजीवाद की पुरोधा संस्थाओं के आदेश पर बड़े
देशी-विदेशी कॉरपोरेट घरानों के हितों के अनुसार अपनी नीतियाँ बनाती हैं। इस तरह
ज्यादातर मुख्यधारा राजनीतिक पार्टियाँ देश की धरोहर - जल, जंगल, जमीन - को कारपोरेट घरानों को बेचने वाली एजेंट बन गई हैं।
दुनिया के स्तर
भी पूंजीवाद के नवउदारवादी-बाजारवादी दौर ने तबाही मचाई हुई है। ताकतवर और अपने को
सभ्य कहने वाले देशों ने तेल, गैस, खनिजों आदि पर
कारपोरेट का कब्जा जमाने, हथियार बेचने, ठेके हथियाने के
मकसद से अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया, इजिप्ट, सूडान, कोंगो, माली, मोजांबिक, आदि कई देशों को लंबे
गृहयुद्ध अथवा सशस्त्र संघर्ष की आग में धकेला हुआ है। ये देश हिंसा और दमन पर
आमादा तालिबान, इस्लामिक स्टेट, अलशबाब, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे
संगठनों को हिंसा फैलाने के लिए धन और हथियारों की कमी नहीं होने देते। जबकि अमेरिका
और यूरोप के देशों में भी आतंकवादी और अन्य तरह की वारदातें हो रही हैं। इस सबके
चलते करोड़ों नर-नारी-बच्चे सालों-साल शरणार्थी शिविरों में रहने को अभिशप्त हैं।
पिछले कुछ सालों में यूरोप जाने के लिए निकले कई हजार लोग मेडिटेरेनियन सागर में
डूब चुके हैं। दुनिया भर में फैला माफिया तंत्र हिंसा और गृहयृद्ध से परेशान एशिया
और अफ्रीका के लोगों को धन लेकर अवैध रूप से यूरोप भेजने, स्त्रियों को जबरन वेश्यावृत्ति में धकेलने, युवा पीढी को नशे की लत लगा
कर नाकारा बनाने में बडे पैमाने पर सक्रिय है। तमाम देशों के नेताओं, उद्योगपतियों, उच्चाधिकारियों, दलालों का काला धन
स्विटजरलैंड से लेकर ओफ शोर टैक्स हैवंस में जमा होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ, सुरक्षा परिषद, यूरोपीय संघ आदि मानव सभ्यता
को नष्ट करने वाली इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाल पा रहे हैं।
इस राष्ट्रीय सम्मेलन
से सोशलिस्ट पार्टी भारत और विश्व के सहमना संगठनों और लोगों का आह्वान करती है
कि प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और ताकतवर देशों/कारपोरेट घरानों की
लूटपाट पर आधारित पूंजीवादी-उपभोक्तवादी विकास के मौजूदा मॉडल को खारिज करें। मानवता
को हिंसा और दमन के दुश्चक्र से निजात दिलाने और पर्यावरण का विनाश रोकने के लिए
समता, सादगी, विकेंद्रीकरण, सहकारिता और पर्यावरण संरक्षा
पर आधारित विकास के वैकल्पिक मॉडल को भारत और दुनिया के स्तर पर कारगर बनाएं।
नवउदारवादी
नीतियों की शुरुआत के साथ श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी और उद्योगपतियों के हक
में तेजी से परिवर्तन किए गए हैं। सोशलिस्ट पार्टी की मांग है कि मूलभूत श्रम
कानूनों का पूरी तरह और सख्ती से पालन किया जाए, श्रम कानूनों में कोई भी बदलाव ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करके
मजदूरों की बेहतरी के लिए हो। हिंद मजदूर सभा समेत ट्रेड यूनियनों की तरफ से सरकार
को सौंपे गए 12 सूत्री मांगपत्र का सोशलिस्ट पार्टी समर्थन करती है।
विधानसभाओं
तथा लोकसभा मे धनबल से तीन-चौथाई सदस्य करोडपति चुने जा रहे है जिन्हें गरीब
मेहनतकश जनता की समस्याओं से कोई लेना-देना नही है। जाहिर है, चुनाव प्रणाली मे मौलिक सुधारों की जरूरत है।
सोशलिस्ट पार्टी की मांग है कि उम्मीदवारों के खर्च के साथ राजनीतिक पार्टियों का
खर्च भी जोड़ा जाए, सभी राजनीतिक पार्टियों की संपत्तियों और आय-व्यय को सूचना अधिकार कानून के
तहत लाया जाए, पहले स्थान पर आने वाले उम्मीदवार को विजयी मानने की प्रणाली के स्थान वोट के
अनुपात में सीटों (प्रपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन) की प्रणाली अपनायी जाए।
वर्तमान केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को
लक्ष्य करके समान नागरिक संहिता पर बहस चलाई है। सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि
भारत जैसे आचार-विचारों की विविधता वाले समाज में, जहां कई अल्पसख्यक
धर्म और आदिवासी कबीले हैं, समान नागरिक संहिता न तो संभव है, न जरूरी। बहुसंख्यक
हिंदुओं में भी भिन्न-भिन्न रिवाज प्रचलित हैं। उत्तर भारत में लडकी की मामा से
शादी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जबकि दक्षिण भारत में यह आम रिवाज है।
तीन तलाक के
सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है और समान नागरिक संहिता, जो एक अलग विषय है, के सवाल के साथ उसकी
प्रासंगिकता नहीं है। इस मसले में असली सवाल औरतों के साथ भेदभाव का है। कई
मुस्लिम देशों में तीन तलाक वैध नहीं है। भारत में कई मुस्लिम विद्वानों ने स्पष्ट
किया है कि भारत में तीन तलाक जिस रूप में प्रचलित है उसकी मान्यता इस्लाम नहीं
देता। पाकिस्तान और बंगला देश में भी तत्काल तीन तलाक की अनुमति नहीं है। सोशलिस्ट
पार्टी आरएसएस और दूसरे सांप्रदायिक संगठनों द्वारा इस मुद्दे पर सांप्रदायिक
भावनाएं उभारने की निंदा करती है। यह ध्यान दिया जा सकता है कि बंगला देश में
हिंदू अल्पसंख्यक अभी भी 1947 पूर्व के हिंदू लॉ को मानते हैं और हमारे यहां हिंदू
लॉ में 1956 में हुए सुधारों को अस्वीकार करते हैं।
सोशलिस्ट पार्टी जम्मू और कश्मीर में मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों की
बिगडती स्थिति पर गहरी चिंता जाहिर करती है। हुरियत के निर्देश पर बच्चों के स्कूल
बंद हैं, कुछ जला दिए गए हैं। पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत बच्चों
को हिरासत में लिया जाना, सुरक्षा बलों द्वारा बच्चों को भी मारा जाना, उन्हें पैलेट
बुलेट के प्रयोग से अंधा कर देना – वहां रोजमर्रा का दर्दनाक अनुभव है। सोशलिस्ट
पार्टी मांग करती है कि हिरासत में लिए गए बच्चों को तुरंत छोडा जाए और
शांतिपूर्ण संवाद कायम करके स्कूलों को जल्द से जल्द खोला जाए। पार्टी केंद्र
सरकार से अपील करती है कि वह सभी राजनीतिक पार्टियों, समूहों और हुरियत के
साथ तुरंत बातचीत शुरू करे। बातचीत के लिए सरकार या अन्य पक्षों की ओर से कोई
पूर्व शर्त नहीं होनी चाहिए। पार्टी की मांग है कि कश्मीर से सशस्त्र बल विशेष
अधिकार कानून (अफ्सपा) हटाया जाए, जिसकी मांग लंबे समय से नागरिक अधिकार संगठन कर
रहे हैं। साथ ही कश्मीर के लोगों को आश्वस्त किया जाए कि वहां धारा 370 बनी रहेगी
और किसी भी रूप में उसे कमजोर नहीं बनाया जाएगा।
जब से भाजपा की
सरकार केंद्र में आई है समाज में सांप्रदायिक तनाव तेज हुआ है। अल्पसंख्यक
मुसलमानों, दलितों और
आदिवासियों पर हिंसक और जानलेवा हमले हुए हैं, जिनमें कई लोगों की
जानें गई हैं। पहले लव जिहाद और उसके बाद गोरक्षा के नाम पर सांप्रदायिक उन्माद
फैलाया गया है, जिससे अल्पसंख्यकों और दलितों में असुरक्षा की भावना है।
आरएसएस और उसके सहयोगी संगठन यह सब कर रहे हैं। भाजपा, सरकार और प्रधानमंत्री का उन्हें समर्थन है। यह देश के
बहुसंख्यक हिंदू समाज को अपना वोट बनाने की रणनीति के तहत किया जा रहा है। यह
सरकार तिरंगा ध्वज और सेना पर भी वोट की राजनीति करने पर उतर आई है। स्वाधीनता
संग्राम में अंग्रेजों का साथ देने वाला आरएसएस खुद को देशभक्त और अपने राजनीतिक
विरोधियों को देशद्रोही घोषित कर रहा है। ऐसा लगता ही नहीं कि एक संविधान सम्मत
सरकार देश में चल रही है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने ज्यादातर मुख्यधारा
मीडिया को सरकारी सत्ता और कारपोरेट घरानों की मार्फत अपने पक्ष में कर लिया है।
इस सरकार ने
पूरी अर्थव्यवस्था कारपोरेट घरानों के हवाले और समाज आरएसएस के उत्पातियों के
हवाले कर दिया है। सरकार ने आरएसएस का एजेंडा लागू करने की नीयत से स्कूल, उच्च शिक्षा और शोध के
संस्थानों में न केवल अनुचित हस्तक्षेप किया है, दलित व कमजोर तबकों के छात्रों को प्रताडि़त कर हरी है।
भाजपा में शामिल कई ऐसे दलित, पिछड़े, मुस्लिम नेता, जिनका आरएसएस से संबंध नहीं
है, चुपचाप बैठे हैं। कांग्रेस
तथा अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के नेता और सरकारें भी भारत के संवैधानिक स्वरूप को
विकृत करने वाली आरएसएस की हरकतों पर प्रभावी रोक लगाने की कोशिश नहीं करते हैं।
उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार ने राज्य में होने वाली आरएसएस
प्रायोजित कई अपराधी घटनाओं पर प्रभावी कार्रवाई नहीं की है। सोशलिस्ट पार्टी इस
सम्मेलन से देश की जनता को आगाह करना चाहती है कि वह भाजपा/आरएसएस के राष्ट्र और
समाज को तोड़ने वाले मंसूबों और कृत्यों को गंभीरता से समझे और उनका विरोध करे।
आचार्य
नरेंद्रदेव, गांधी, डॉ. अंबेडकर, भगत सिंह, जेपी, डॉ. लोहिया, एसएम जोशी, युसुफ मेहरअली, अच्युत पटवर्द्धन, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, सरोजिनी नायडू, कर्पूरी ठाकुर, मधु लिमये, किशन पटनायक सरीखे महान नेताओं व चिंतकों की विरासत से प्रेरित सोशलिस्ट
पार्टी इस राष्ट्रीय सम्मेलन में समाजवाद के बुनियादी सिद्धान्तों में दृढ़ आस्था
रखते हुए मेहनतकश जनता की एकजुटता से नवउदारवादी व्यवस्था को जड़ से उखाड कर
समाजवादी व्यवस्था कायम करने का संकल्प दोहराती है।
सोशलिस्ट पार्टी का नारा
समता और भाईचारा
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