जस्टिस राजेंद्र सच्चर की याद में जालंधर में सेमिनार

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पीयूसीएल के उपाध्यक्ष एनडी पंचोली ने जस्टिस सच्चर की संविधान के प्रति अटूट निष्ठा को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी. उन्होंने बताया की 1984 के सिख नरसंहार पर पीयूसीएल और पीयूडीआर ने दिल्ली उच्च न्यायालय में पेटीशन दायर की थी. जस्टिस सच्चर ने बतौर न्यायधीश सरकार को जवाब देने का नोटिस दिया. लेकिन पेटीशन की सुनवाई की बेंच बदल दी गई और उच्च न्यायालय ने पेटीशन खारिज कर दी. उच्चतम न्यायालय ने भी वही किया. पंचोली ने संविधान पर दरपेश गंभीर संकट को विस्तार से रेखांकित किया. उन्होंने खास तौर पर कांग्रेस के 1931 के कराची अधिवेशन का हवाला देते हुए बताया कि भारत के संविधान में आज़ादी के संघर्ष के दौर के मूल्यों का योगदान है. जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष का विरोध किया, वे ही सबसे ज्यादा संवैधानिक संस्थाओं और मूल्यों को चोट पहुंचा रहे हैं. देश की जनता की ताकत को एकजुट करके ही संवैधानिक संस्थाओं और मूल्यों को बचाया जा सकता है.
लोहियावादी विचारक प्रोफेसर एसएस छीना ने सेमीनार को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य का तेजी से निजीकरण संवैधानिक मूल्यों और संस्थाओं का सीधा उल्लंघन है. पंजाब में 12 और जालंधर में 3 प्राइवेट यूनिवर्सिटीज हैं. क्रांतिकारी समाजवादी विचारधारा से जुड़े विद्वान/एक्टिविस्ट प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने कहा कि समाजवाद का नारा सबसे पहले भगत सिंह और उनके साथियों ने लगाया था. उन्होंने संवैधानिक मूल्यों और संस्थाओं को बचाने के लिए क्रांतिकारी चेतना जगाने पर बल दिया. कई श्रोताओं ने भी चर्चा में हिस्सा लिया और सेमिनार में अपने विचार रखे.
सेमिनार की अध्यक्षता सोशलिस्ट पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बलवंत सिंह खेडा ने की. सोशलिस्ट पार्टी की पंजाब इकाई के अध्यक्ष हरेन्द्र सिंह मानसाइया ने अतिथियों का स्वागत किया और महासचिव ओम सिंह सटीयाना ने कार्यक्रम का संचालन किया.
डॉ. हिरण्य हिमकर
No comments:
Post a Comment