Wednesday 5 September 2018

सोशलिस्ट पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति बैठक (8 अगस्त 2018), दिल्ली में पास राजनीतिक प्रस्ताव

सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)
राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति बैठकदिल्ली
8 अगस्त 2018



        राजनीतिक प्रस्ताव  

        भारत का संविधान देश के शासक-वर्ग की ओर से खड़े किये गए गंभीर खतरों के संकट से गुजर रहा है। वर्तमान सरकार न सिर्फ संविधान में शामिल समाजवादधर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के बुनियादी मूल्यों को नष्ट कर रही हैबल्कि सरकार में शामिल इसके नेता खुलेआम घोषणा कर रहे हैं कि वे संविधान बदलने के लिए यह सरकार चला रहे हैं। वे संविधान की मूल प्रकृति के खिलाफ खुले तौर पर एक कॉर्पोरेट परस्त,धर्म-आधारित और तानाशाही भारत बनाने की वकालत कर रहे हैं। इस सरकार ने न केवल सबसे बड़े अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज पर हमला बोल दिया है, बल्कि अन्य अल्पसंख्यकों तथा दलितोंआदिवासियोंमहिलाओं जैसे समाज के कमजोर समूहों के जीवन के अधिकार और गरिमा का भी हनन करने में लगी है। जो लोग सरकार के इस संवैधानिक-विरोधी मंसूबों का विरोध करते हैं, उनकी सरेआम हत्या कर दी जाती है और हत्यारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती।
        मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कीमत पर निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है और उद्योगपतियों के पक्ष में श्रम कानूनों को बदल रही है। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र, जो समाजवादी व्यवस्था की दिशा में बढ़ने का मूलाधार है, को नष्ट करने पर आमादा है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में सत्ता का केंद्रीकरण लोकतंत्र और विकेंद्रीकरण की संवैधानिक भावना को कुचलने का एक और उदाहरण है। अब यह सरकार 'एक राष्ट्र एक चुनावअभियान का प्रचार कर रही है। यह विचार संविधान की संघीय और लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ है।
        प्रत्येक भारतीय नागरिक, जो संविधान की सत्ता में विश्वास करता है, उसे देश में बढ़ रहीं इन खतरनाक प्रवृत्तियों के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए। सोशलिस्ट पार्टी कड़े शब्दों में सरकार के असंवैधानिकअमानवीय और लोकतंत्र विरोधी कृत्यों की निंदा करती है।
        यह सरकार आर्थिक क्षेत्र में में पूरी तरह से विफल रही है। सरकार के चहेते कार्पोरेट घराने देश की दौलत को हड़प रहे हैं। भाजपा, सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जुड़े लोग देश की दौलत लूट कर विदेश भाग रहे हैं। विदेशी पूँजी को अनेक सहूलियतें दी जा रही हैं, लेकिन न अर्थव्यवस्था को फायदा हो रहा है न रोजगार पैदा हो रहा है। किसानों की कर्जमाफी और उपज के किफायती दामों को लेकर सरकार ढुलमुल रवैया अपनाये हुए। श्रम कानून बदल कर मजदूरों का जीवन पूरी तरह असुरक्षित बना दिया गया है।
        सरकार की स्थायी रोजगार विरोधी नीतियों के चलते शिक्षित बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने का मोदी का चुनावी वादा खोखला साबित हो चुका है। सरकरी विभागों में तीसरी और चौथी श्रेणी के पद खाली होने पर भरे नहीं जाते। सरकारी विभागों में करीब 25 लाख रिक्त पद हैं। ऊपर से सरकार प्राइवेट कंपनियों के उच्चाधिकारियों को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में सीधे संयुक्त सचिव के पद पर बिठाने के मंसूबे पर काम कर रही है। सरकार का ध्यान देहातों/कस्बों में सड़क, पानी, बिजली, परिवहन, अस्पताल, स्कूल/कॉलेज जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने पर नहीं है। वह स्मार्ट सिटी, बड़े-बड़े हवाई अड्डे, फ्लाई ओवर, बुलेट ट्रेन बनाने में ही सबका विकास मानती। सरकार ने मुंबई-अहमदबाद बुलेट ट्रेन के लिए एक लाख करोड़ का क़र्ज़ जापान से लिया। इतने खर्च में करीब 12 हज़ार किमी रेल लाइन बिछाई जा सकती है।
       देश के सभी बच्चों को समान, गुणवत्तायुक्त और मुफ्त शिक्षा देने का दायित्व सरकार का है। लेकिन मोदी सरकार ने हजारों सरकारी स्कूल बंद कर दिए हैं। उच्च शिक्षा का तेज़ी से निजीकरण किया जा रहा है। आदिवासी और दलित छात्रों को पहले से मिलने वाली छात्रवृत्तियों में कटौती की जा रही है और छात्रवृत्तियां देने में विलम्ब किया जा रहा है। निजीकरण के अलावा यह सरकार तेज़ी से पाठ्यक्रमों का साम्प्रदायिकरण कर रही है।
        मोदी सरकार की विदेश-नीति को दक्षिण-एशिया और विश्व के अन्य भागों में कामयाबी नहीं मिली है। मोदी ने देश की जनता का अरबों रूपया खर्च करके एक के बाद एक विदेश दौरे किये। लेकिन उनकी विदेश-नीति राष्ट्र-हित को सुरक्षित रखने में असफल रही है। पड़ोसी नेपाल और श्रीलंका भारत से असंतुष्ट होकर चीन के करीब जा रहे हैं। म्यांमार का रवैया भी वैसा ही बना हुआ है। बांग्लादेश के साथ सम्बन्ध कुछ ठीक हैं, लेकिन आरएसएस/भाजपा नेताओं के मुस्लिम-विरोधी बयानों और खुद सरकार की साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति के चलते वातावरण बिगड़ रहा है। ईरान और फिलिस्तीन सरीखे पुराने सहयोगियों को लेकर भी सरकार अमेरिकी दबाव में काम करती नज़र आती है। इंडोनेशिया और मिश्र भी भारत से खुश नहीं हैं। चीन की महत्वाकांक्षाएं बढ़ती जा रही हैं। अमेरिका, रूस और जापान भी उसके सामने परेशानी का अनुभव कर रहे हैं। ऐसे में पूरे विश्व में भारत का कोई दोस्त नज़र नहीं आता। वैश्विक मामलों में भारत की कोई पूछ नहीं होती है।
        असम में अवैध रूप से रहने वाले बंग्लादेशी नागरिकों की मौजूदगी की समस्या काफी जटिल और पुरानी है। असम में बांग्लादेशी घुसपैठ के विरुद्ध अस्सी के दशक में जब वहां के छात्रों ने आंदोलन किया था तो उनका समर्थन पूरे देश के समाजवादियों और गांधीवादियों ने किया था। मौजूदा सरकार ने जो राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जारी किया हैउसमें 40 लाख से ऊपर लोगों के नाम नहीं हैं। उनके परिवारों को जोड़ा जाए तो यह संख्या एक करोड़ से ज्यादा होगी। ऐसा बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से बाहर किये गए 40 लाख लोगों में से ज्यादातर भारतीय नागरिक हैं। इनमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल हैं। एक राज्य में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को असुरक्षा की स्थिति में डाल देना बताता है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार करने में कर्तव्य का सही तरह से निर्वाह नहीं किया गया है। ऐसा लगता है कि सरकार को समस्या के समुचित समाधान के बजाय चुनावी फायदे के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जारी करने की जल्दी थी। इस आवश्यक कार्य को गैर-राजनीतिक तरीके से किया जाना चाहिए था। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने वैसी परिपक्वता का प्रमाण नहीं दिया।
        सोशलिस्ट पार्टी देश के राजनैतिक नेतृत्व से अपील करती है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर वोट की राजनीति करने के बजाय मिल कर सुनिश्चित करें कि एक भी भारतीय नागरिक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से बाहर नहीं रहे। चाहे वह किसी भी धर्मजाति अथवा प्रदेश का हो.    
        जम्मू और कश्मीर राज्य के नागरिकों ने संविधान के अनुच्छेद 35ए, जिसे 1954 में राष्ट्रपति की अधिघोषणा द्वारा धारा 370 के साथ रखा गया था, को बचाने की मांग के समर्थन में 2 दिन का बंद रखा. सोशलिस्ट पार्टी जम्मू और कश्मीर राज्य के नागरिकों की मांग का इस आधार पर समर्थन करती है कि राज्य में रहने वाले जो लोग 1947 में पाकिस्तानी हमले के पहले पाक-अधिकृत कश्मीर में रहते थे, उन्हें इस अनुच्छेद द्वारा जम्मू और कश्मीर राज्य का स्थायी नागरिक का दर्ज़ा दिया गया था, और जिन्हें स्थायी संपत्ति खरीदने जैसे अधिकार दिए जाएं. जो लोग 1947 और 1954 के बीच की अवधि में पाक-अधिकृत कश्मीर से जम्मू और कश्मीर राज्य में आकर बसे उन्हें विदेशी (पकिस्तानी) नागरिक समझ कर कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ता था. इस कानूनी अड़चन को दूर करने के लिए राष्ट्रपति की अधिघोषणा में उनकी नागरिकता का प्रावधान किया गया. यह प्रावधान उन कुछ हज़ार परिवारों के लिए सीधे प्रासंगिक है जो पाक-अधिकृत कश्मीर से जम्मू और कश्मीर राज्य में लौट कर आये थे. सोशलिस्ट पार्टी माननीय उच्चतम न्यायालय और भारत सरकार से अपील करती है कि अनुच्छेद 35ए की वैधता को बरकरार रखा जाए.
        सोशलिस्ट पार्टी एक बार फिर अपनी यह मांग दोहराती है कि लम्बे से समय ले लटके महिला आरक्षण विधेयक को अविलम्ब पारित किया जाए.   
        भाजपा और सरकार दोनों जगह मोदी और अमित शाह की चलती है। इन दोनों को पता चल गया है कि देश की जनता सरकार से खुश नहीं है। नौजवानों का भरोसा सरकार से टूट चुका है। 2019 का चुनाव जीतने के लिए ये दोनों तीन रणनीतियों पर काम कर रहे हैं - पहली, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करना, दूसरी, नीतियों की जगह नेता की बात करना, तीसरी, 2019 में पहली बार वोट डालने वाले नवयुवकों को अपने पक्ष में करना।  
        देश की जनता और विपक्ष के सामने यह चुनौतीपूर्ण स्थिति है। उन्हें आगामी चुनाव में नेता नहीं, नीतियों पर जोर देना चाहिए। विपक्षी एकता का स्वरुप ऐसा होना चाहिए कि एनडीए विरोधी वोटों का बंटवारा न हो। सोशलिस्ट पार्टी इस दिशा में सकारात्मक भूमिका निभाएगी।      

(डॉ. प्रेम सिंह, अध्यक्ष, द्वारा तैयार, बैठक में मंजू मोहन, महासचिव, द्वारा पेशरामबाबू अग्रवाल, उपाध्यक्ष, द्वारा समर्थित.) 

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