Wednesday 12 September 2018

राफेल विमान सौदा : जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाए

12 अगस्त 2018
प्रेस रिलीज़



फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान खरीद का मामला लगातार संदेह के घेरे में बना हुआ है. इस सौदे के बारे में आरोप है कि यह भारत में अब तक का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला है। हजारों करोड़ रुपए के आकार के इस घोटाले के सामने 64 करोड़ रुपए का बोफर्स तोप घोटाला कहीं नहीं ठहरता। यह बात निरंतर छन-छन कर आ रहे तथ्यों से प्रमाणित होती जा रही है कि इस सौदे में निर्धारित नियमों का उल्लंघन करके खुद प्रधानमंत्री ने एक उद्योगपति विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए देश की रक्षा व्यवस्था के साथ खिलवाड़ किया है और सरकारी खज़ाना लुटाया है। सरकार पर यह भी आरोप है उसने इस पूरे मामले में अंतर्विरोधी बयान दियी हैं और संसद को गुमराह किया है। जो तथ्य प्रथम द्रष्टया आ रहे हैं उनसे लगता है कि इस सौदे के भीतर काफी गड़बड़ है। मोदी सरकार के पास आरोपों का संतोषजनक उत्तर नहीं है। वह सौदे से जुड़े सारे तथ्यों को 2008 के गोपनीयता प्रावधानों के आवरण में ढंकने की कोशिश में लगी है। फ्रांस की सरकार भी ऐसा ही कर रही है।
पिछली यूपीए सरकार अपनी वायुसेना की मजबूती के लिए फ्रांस की कंपनी डसाल्ट से 126 राफेल विमान खरीदना चाहती थी। चूंकि कांग्रेस सरकार बोफर्स तोप सौदे के दूध से जल चुकी थी, इसलिए उसने छाछ को फूंक मारकर पीना उचित समझा। इसीलिए रक्षा सौदों के लिए बाकायदा रक्षा मंत्रालय और सेनाओं के संबंधित विभागों की समितियां बनाई गई थीं, जिनकी संस्तुति के बिना कोई सौदा नहीं हो सकता। इस व्यवस्था के तहत हर रक्षा सौदा कई चरणों से होकर गुजरता है। राफेल विमानों का सौदा इन सभी चरणों से होकर गुजरा था और वायुसेना के छह स्वाड्रनों के नवीकरण की जरूरत को देखते हुए एक साथ 126 विमान खरीदने का फैसला किया गया था। राफेल विमान परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है और इसमें दो इंजन लगे हैं। इसमें अमेरिका में विकसित राडार भी लगा है।
उस समय सरकार की मंशा घरेलू उद्योगों को रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी लाने की भी  थी। उसने वाजिब दरों पर विमान खरीदने के लिए 2012 में लंबी वार्ता चलाई जिसमें तय हुआ कि हर विमान की कीमत 670 करोड़ रुपए पड़ेगी। 18 विमान सीधे फ्रांस से तैयार हालत में लाए जाएंगे और 108 विमान फ्रांस से लाये गए कल-पुर्जों से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हिंदुस्तान एअरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) भारत में तैयार किये जायेंगे। इस बीच सरकार बदल गई। एनडीए की सरकार ने वार्ता जारी रखी. 2015 में विमान निर्माता कंपनी डसाल्ट के सीईओ भारत आए और उन्होंने कहा कि सारी वार्ताएं खत्म हो गई हैं और दाम की बात भी पक्की हो गई है। लेकिन एक पूंजीपति को फायदा पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वायु सेना, रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय को विश्वास में लिए बिना सौदे की समस्त प्रक्रिया और शर्तों को मात्र दो दिनों में पलट दिया। सरकार ने 126 विमानों की जगह 36 विमान लेने का फैसला किया। वह भी 670 करोड़ रुपए प्रति विमान की जगह 1660 करोड़ रुपये प्रतिविमान की दर से। पहले यह तय था कि विमान के कलपुर्जे बाहर से आएंगे और एचएएल उन्हें जोड़ेगा। अब यह तय हुआ कि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण होना जरूरी नहीं है। वे 36 विमान डसाल्ट्स ही बनाकर देगा।
'मेक इन इंडिया' का मजाक उड़ाते हुए एचएएल जैसी सार्वजनिक उपक्रम की कंपनी को सौदे की प्रक्रिया से बाहर कर दिया और उसकी जगह अनिल अंबानी की केवल इस सौदे को हथियाने के लिए बनाई गई नई व अनुभवहीन कंपनी रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को जोड़ लिया। रिलायंस के मालिक अनिल अम्बानी ने प्रधानमंत्री की मिलीभगत से डलास्टस के साथ एक संयुक्त उपक्रम गठित कर लिया। यह भी तथ्य सामने आया कि रिलायंस ने फ्रांस के राष्ट्रपति होलंदे की अभिनेत्री पार्टनर जूली गैएट की फिल्म के निर्माण के लिए सहयोग करने का 200 करोड़ रुपए का समझौता किया था।
प्रति विमान पर अचानक 1000 करोड़ रुपए बढ़ाए जाने के पीछे दलील दी गई कि इसमें भारत के लिए विशेष प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। लेकिन उन उपकरणों की उपयोगिता को सेना की समितियों ने प्रमाणित नहीं किया है। सोशलिस्ट पार्टी इस विवाद पर सरकार के बचाव में आये एयर चीफ मार्शल और एयर मार्शल के बयानों पर टिप्पणी नहीं करना चाहती। लेकिन उनके द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एचएएल की जगह निजी कंपनी का खुला पक्ष लेने पर चिंता प्रकट करती है। सरकार ने दूसरी दलील यह दी है कि विमान खऱीदा जाना तत्काल जरूरी है। लेकिन इसके लिए सौदे की प्रक्रिया को पलट देने क्या औचित्य है? सौदे के साथ की गई सारी उठा-पटक के बावजूद पहला विमान सितंबर 2019 में फ्रांस से बन कर आएगा।
सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि संदेह के घेरे में आये राफेल विमान सौदे की सच्चाई देश की जनता के सामने आनी चाहिए. इसके लिए सबसे पहली जिम्मेदारी केंद्र सरकार और खुद प्रधानमन्त्री की है। केंद्र की भाजपानीत सरकार में शामिल राजनैतिक दलों का भी राष्ट्र के प्रति यह दायित्व बनता है कि इस सौदे को लेकर जनता में फैले संदेह का आगे आकर निवारण करें।
सोशलिस्ट पार्टी की मांग है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच के लिए सरकार की ओर से तुरंत संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाए।

डॉ. प्रेम सिंह
अध्यक्ष

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