Sunday 29 April 2018

1857 के बलिदानियों की याद में - कूच-ए-आज़ादी

1857 के बलिदानियों की याद में - कूच-ए-आज़ादी
11 मई 2018  


10 मई 1857 को मेरठ में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई और 11 मई 1857 को सिपाही दिल्‍ली पहुंचे. देश पर साम्राज्‍यवादी कब्‍जे  के खिलाफ बलिदानी सिपाही और जनता दो साल तक लड़ते रहे. कई लाख लोगों ने देश की आज़ादी के संघर्ष में अपने प्राण न्‍यौछावर किएहर साल महान मई का महीना आता हैदेश के किसी अखबारपत्रिकाचैनल में यह चर्चा देखने-सुनने को नहीं मिलतीसामाजिक-राजनीतिक संगठन या सरकारें इस मौके पर कार्यक्रमों का आयोजन नहीं करते. अलबत्‍ता सरकारी धन मिलेजैसा कि 2007 में 1857 के विद्रोह के डेढ़  सौ साल पूरे होने पर मिलातो वह एक से बढ़ कर एक सेमिनार और उत्‍सव आयोजित कर सकता है!
किशन पटनायक ने विकल्‍पहीन नहीं है दुनिया’ में एक जगह लिखा हैभारत के बुद्धिजीवी की आज तक यह धारणा बनी हुई है कि अगर 1857के लड़ाके जीत जाते तो देश अंधकार के गर्त में चला जाता!  
कारपोरेट की लहर पर सवार 2014 के चुनावों में मनमोहन सिंह/कांग्रेस ने बैनट अपने सर्वश्रेष्‍ठ उत्‍तराधिकारी को थमा दियासही उत्‍तराधिकारी के राज्‍याभिषेक’ में एनजीओ सरगनाओं और नागरिक समाज (समाजवादियों-साम्यवादियों समेत) ने बखूबी अपनी भूमिका निभाईउन्‍होंने नवसाम्राज्यवाद के खिलाफ देश की आज़ादी और संप्रभुता को बचाने की लड़ाई को छिन्‍न-भिन्‍न करके सचमुच देश कारपोरेट घरानों के लिए बचा लिया. नवसाम्राज्‍यवादी निजाम में उन्‍हें खिलअतें और पदवियां मिली हैंजैसे उपनिवेशवादियों ने 1857 की क्रांति को कुचलने में मदद करने वाले राजे-रजवाड़ोंदलालोंजासूसों को दी थीं.     
कांग्रेस ने पिछले करीब तीन दशकों में आजादी के संघर्ष की विरासत को धो-पोंछ कर साफ कर दिया है. आरएसएस/भाजपा अंग्रेजों के साथ ही थे तो ज़ाहिर है, अब भी मुस्तैदी से नवसाम्राज्यवाद की ताबेदारी कर रहे हैं. तब एक ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी थीअब अनेक कारपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शिकंजा संसाधनों, संस्थानों और समाज पर कसा हुआ है. रक्षा क्षेत्र में सौ प्रतिशत विदेशी निवेश से लेकर रेलवे स्टेशनों और अब लाल किला बेचने तक यह आलम देखा जा सकता है. और पाखंडी आधुनिकता से पैदा हुए नए डिज़िटल इंडिया के चरण तेज़ी से बढ़ रहे हैं!

1857 के क्रांतिकारियों की सेना का यह झंडा सलामी गीत अजीमुल्‍लाह खान ने लिखा था। आइए इसे पढ़ते हैं -


हम हैं इसके मालिक हिंदुस्‍तान हमारा,
पाक वतन है कौम का जन्‍नत से भी प्‍यारा।
यह हमारी मिल्कियत हिंदुस्‍तान हमारा,
इसकी रूहानियत से रौशन है जग सारा।
कितना कदीम कितना नईम सब दुनिया से न्‍यारा,
करती है जरखेज जिसे गंगो-जमुन की धारा।
ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा,
नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्‍कारा।
इसकी खानें उगल रहीं सोना हीरा पारा,
इसकी शान-शौकत का दुनिया में जयकारा।
आया फिरंगी दूर से ऐसा मंतर मारा,
लूटा दोनों हाथों से प्‍यारा वतन हमारा।
आज शहीदों ने है तुमको अहले-वतन ललकारा,
तोड़ो गुलामी की जंजीरें बरसाओ अंगारा।
हिंदू-मुसलमां-सिख हमारा भाई-भाई प्‍यारा,
यह है आजादी का झंडा इसे सलाम हमारा।।

सोशलिस्‍ट पार्टी की ओर से जारी।

सूचना
हर साल की तरह सोशलिस्ट पार्टी 11 मई को 'कूच-ए-आज़ादी' का आयोजन करेगी. पार्टी के कार्यकर्ता शाम 5.30 बजे मंडी हाउस पर एकत्रित होंगे और वहां से 1857 के बलिदानियों की याद में आपसी मोहब्बत और भाईचारे के लिए पार्लियामेंट स्ट्रीट तक मार्च करेंगे. पार्लियामेंट स्ट्रीट पर मशाल जला कर बलिदानियों को सलामी दी जायेगी. आयोजन सामाजिक संगठन खुदाई खिदमतगार के साथ मिल कर किया गया है. जो साथी अथवा संगठन आयोजन में हिस्सेदारी करना चाहें वे नीरज (7703933168) और इनाम (9092137718) से संपर्क करने की कृपा करें.  

सोशलिस्ट पार्टी का नारा समता और भाईचारा

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